"राग यमन (कल्याण)": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
छो (Adding category Category:संगीत (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
इस [[राग]] को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण [[थाट]] से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है। जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो तो उसे कल्याण राग कहा जाता है। इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम और अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। ग वादी और नि सम्वादी माना जाता है। इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह दोनों में सातों स्वर प्रयुक्त होते हैं, इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण है। | इस [[राग]] को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण [[थाट]] से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है। जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो तो उसे कल्याण राग कहा जाता है। इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम और अन्य [[स्वर (संगीत)|स्वर]] शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। ग वादी और नि सम्वादी माना जाता है। इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह दोनों में सातों स्वर प्रयुक्त होते हैं, इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण है। | ||
{| width=100% | {| width=100% | ||
पंक्ति 10: | पंक्ति 9: | ||
|} | |} | ||
==विशेषतायें== | ==विशेषतायें== | ||
*[[मुग़ल]] शासन काल के दौरान, [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना | *[[मुग़ल]] शासन काल के दौरान, [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरू किया। | ||
* इस राग के दो नाम है यमन अथवा कल्याण। यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते | * इस राग के दो नाम है यमन अथवा कल्याण। यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं। यमन कल्याण में शुद्ध म केवल अवरोह में दो गंधारों के बीच प्रयोग किया जाता है जैसे- प म॑ ग म ग रे, नि रे सा है। अन्य स्थानों पर आरोह-अवरोह दोनों में तीव्र म प्रयोग किया जाता है, जैसे- ऩि रे ग म॑ प, प म॑ ग म ग रे, नि रे सा। | ||
* कल्याण और यमन राग की चलन अधिकतर मन्द्र ऩि से प्रारम्भ करते हैं और जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तो पंचम छोड़ देते हैं। जैसे- ऩि रे ग, म॑ ध नि सां इसलिये इसका आरोह दो प्रकार से लिखा गया है। दोनो प्रकारों में केवल पंचम का अंतर है और कुछ नहीं। | * कल्याण और यमन राग की चलन अधिकतर मन्द्र ऩि से प्रारम्भ करते हैं और जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तो पंचम छोड़ देते हैं। जैसे- ऩि रे ग, म॑ ध नि सां इसलिये इसका आरोह दो प्रकार से लिखा गया है। दोनो प्रकारों में केवल पंचम का अंतर है और कुछ नहीं। | ||
* इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://bharatiya-sangeet.blogspot.com/2009/09/blog-post.html |title= राग यमन |accessmonthday=[[3 सितम्बर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=संगीत |language=हिन्दी }}</ref> | * इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://bharatiya-sangeet.blogspot.com/2009/09/blog-post.html |title= राग यमन |accessmonthday=[[3 सितम्बर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=संगीत |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
* इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है। इसमें बड़ा और छोटा ख्याल, [[तराना]], [[ध्रुपद]], तथा [[मसीतख़ानी]] और [[रज़ाख़ानी]] गतें सभी सामान्य रूप से गाई-बजाई जाती है। | * इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है। इसमें बड़ा और छोटा ख्याल, [[तराना]], [[ध्रुपद]], तथा [[मसीतख़ानी]] और [[रज़ाख़ानी]] गतें सभी सामान्य रूप से गाई-बजाई जाती है। | ||
*इस राग को तीनों [[सप्तक|सप्तकों]] में गाया-बजाया जाता है। कई राग सिर्फ़ [[मन्द्र सप्तक|मन्द्र]], [[मध्य सप्तक|मध्य]] या [[तार सप्तक]] में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है। | *इस राग को तीनों [[सप्तक|सप्तकों]] में गाया-बजाया जाता है। कई राग सिर्फ़ [[मन्द्र सप्तक|मन्द्र]], [[मध्य सप्तक|मध्य]] या [[तार सप्तक]] में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है। | ||
*कल्याण राग को आश्रय राग भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि जिस थाट से इसका जन्म माना गया है। | *कल्याण राग को आश्रय राग भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि जिस थाट से इसका जन्म माना गया है। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
}} | }} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{संगीत के अंग}} | |||
[[Category:राग-रागनियाँ]] | [[Category:राग-रागनियाँ]] | ||
[[Category:संगीत कोश]] | [[Category:संगीत कोश]] | ||
[[Category:संगीत]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:23, 8 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है। जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो तो उसे कल्याण राग कहा जाता है। इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम और अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। ग वादी और नि सम्वादी माना जाता है। इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह दोनों में सातों स्वर प्रयुक्त होते हैं, इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण है।
आरोह- सा रे ग, म॑ प, ध नि सां अथवा ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां । अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा । |
प्रथम पहर निशि गाइये गनि को कर संवाद । |
विशेषतायें
- मुग़ल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरू किया।
- इस राग के दो नाम है यमन अथवा कल्याण। यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं। यमन कल्याण में शुद्ध म केवल अवरोह में दो गंधारों के बीच प्रयोग किया जाता है जैसे- प म॑ ग म ग रे, नि रे सा है। अन्य स्थानों पर आरोह-अवरोह दोनों में तीव्र म प्रयोग किया जाता है, जैसे- ऩि रे ग म॑ प, प म॑ ग म ग रे, नि रे सा।
- कल्याण और यमन राग की चलन अधिकतर मन्द्र ऩि से प्रारम्भ करते हैं और जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तो पंचम छोड़ देते हैं। जैसे- ऩि रे ग, म॑ ध नि सां इसलिये इसका आरोह दो प्रकार से लिखा गया है। दोनो प्रकारों में केवल पंचम का अंतर है और कुछ नहीं।
- इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।[1]
- इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है। इसमें बड़ा और छोटा ख्याल, तराना, ध्रुपद, तथा मसीतख़ानी और रज़ाख़ानी गतें सभी सामान्य रूप से गाई-बजाई जाती है।
- इस राग को तीनों सप्तकों में गाया-बजाया जाता है। कई राग सिर्फ़ मन्द्र, मध्य या तार सप्तक में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है।
- कल्याण राग को आश्रय राग भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि जिस थाट से इसका जन्म माना गया है।
|
|
|
|
|