"महेश्वर व्रत": अवतरणों में अंतर

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*दक्षिणा मूर्ति को वर्ष भर प्रतिदिन पायस एवं घी का अर्पण करना चाहिए।
*दक्षिणा मूर्ति को वर्ष भर प्रतिदिन पायस एवं घी का अर्पण करना चाहिए।
*अन्त में उपवास; भूमि, गाय एवं पलंग का दान करना चाहिए।
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*दक्षिणा मूर्ति शिव का एक रूप है;।  
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*[[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] की लिखित 'दक्षिणामूर्तिस्तोत्र '(19 श्लोकों में) की बात कही जाती है।
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12:46, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी से प्रारम्भ होता है।
  • उस दिन उपवास एवं शिव पूजा; अन्त में गोदान किया जाता है।
  • यदि यह व्रत वर्ष भर किया जाए तो 'पौण्डरीक यज्ञ' की फल प्राप्ति होती है।
  • यदि यह व्रत मास की दोनों चतुर्दशियों पर किया जाय तो सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।[1]
  • दक्षिणा मूर्ति को वर्ष भर प्रतिदिन पायस एवं घी का अर्पण करना चाहिए।
  • अन्त में उपवास; भूमि, गाय एवं पलंग का दान करना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि नन्दी (शिव वाहन) की स्थिति की प्राप्ति होती है।[2];
  • दक्षिणा मूर्ति शिव का एक रूप है;।
  • शंकराचार्य की लिखित 'दक्षिणामूर्तिस्तोत्र '(19 श्लोकों में) की बात कही जाती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 152);
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 867, स्कन्द पुराण से उद्धरण

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