"दूर्वागणपति व्रत": अवतरणों में अंतर
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*रविवार को पड़ने वाली चौथ से आरम्भ होता है।<ref>गणपतिपूजन; व्रतराज (141-143, स्कन्द0 से उद्धरण); व्रतार्क (66-67 | *रविवार को पड़ने वाली चौथ से आरम्भ होता है।<ref>गणपतिपूजन; व्रतराज (141-143, स्कन्द0 से उद्धरण); व्रतार्क (66-67</ref> | ||
*श्रावण शुक्ल पंचमी से श्रावण कृष्ण दशमी तक 16 उपचारों तथा दूर्वा, बिल्व, अपामार्ग आदि के दलों से 21 दिनों तक गणपति पूजन किया जाता है।<ref>व्रतराज (129-141 | *श्रावण शुक्ल पंचमी से श्रावण कृष्ण दशमी तक 16 उपचारों तथा दूर्वा, बिल्व, अपामार्ग आदि के दलों से 21 दिनों तक गणपति पूजन किया जाता है।<ref>व्रतराज (129-141</ref> | ||
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12:49, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- दो या तीन वर्षों के लिए श्रावण या कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यह व्रत होता है।
- लाल पुष्पों, बिल्व, अपामार्ग, शमी, दूर्वा तथा तुलसी के पात्रों तथा अन्य उपचारों के साथ गणेश मूर्ति की पूजा की जाती है।
- गणपति के दस नामों वाले मन्त्र का उच्चारण किया जाता है।[1]
- रविवार को पड़ने वाली चौथ से आरम्भ होता है।[2]
- श्रावण शुक्ल पंचमी से श्रावण कृष्ण दशमी तक 16 उपचारों तथा दूर्वा, बिल्व, अपामार्ग आदि के दलों से 21 दिनों तक गणपति पूजन किया जाता है।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 520-523); व्रतराज (127-129, सौरपुराण से, जहाँ शिव ने स्कन्द को बताया है कि पार्वती देवी ने इसे सम्पादित किया था
- ↑ गणपतिपूजन; व्रतराज (141-143, स्कन्द0 से उद्धरण); व्रतार्क (66-67
- ↑ व्रतराज (129-141
अन्य संबंधित लिंक
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