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*उपवास के साथ [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] से आरम्भ होता है। | *उपवास के साथ [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] से आरम्भ होता है। | ||
*यह व्रत एक वर्ष तक चलता है। | *यह व्रत एक वर्ष तक चलता है। | ||
*गन्ध, पुष्प आदि उपचारों से कुबेर (यहाँ पर इन्हें महाराज कहा गया है) की पूजा की जाती है। | *गन्ध, पुष्प आदि उपचारों से कुबेर (यहाँ पर इन्हें महाराज कहा गया है) की पूजा की जाती है। | ||
*अन्त में ब्राह्मण को स्वर्ण का दान दिया जाता है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|184|1-3 | *अन्त में ब्राह्मण को स्वर्ण का दान दिया जाता है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|184|1-3</ref> | ||
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12:50, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- उपवास के साथ फाल्गुन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से आरम्भ होता है।
- यह व्रत एक वर्ष तक चलता है।
- गन्ध, पुष्प आदि उपचारों से कुबेर (यहाँ पर इन्हें महाराज कहा गया है) की पूजा की जाती है।
- अन्त में ब्राह्मण को स्वर्ण का दान दिया जाता है।[1]
- हेमाद्रि[2] ने इसे नन्दव्रत की संज्ञा दी है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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