"धरणी व्रत": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
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*[[कार्तिक]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] पर आरम्भ होता है।
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*इस व्रत में नारायण की मूर्ति की पूजा की जाती है।
*इस व्रत में नारायण की मूर्ति की पूजा की जाती है।
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*उस रात्रि जागर (जागरण) किरा जाता है।
*उस रात्रि जागर (जागरण) किरा जाता है।
*दूसरे दिन प्रातः पाँच ब्राह्मण बुलाये जाते हैं, उन्हें भोजन एवं दक्षिणा से सम्मानित किया जाता है।
*दूसरे दिन प्रातः पाँच ब्राह्मण बुलाये जाते हैं, उन्हें भोजन एवं दक्षिणा से सम्मानित किया जाता है।
*इस व्रत को प्रजापति, बहुत से प्रसिद्ध राजाओं तथा स्वयं धरती (पृथ्वी) ने किया था, इससे इसका ऐसा नाम पड़ा।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1041-44, [[वराह पुराण]] 50|1-29 से उद्धरण)</ref>  
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12:50, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर आरम्भ होता है।
  • इस व्रत में नारायण की मूर्ति की पूजा की जाती है।
  • मूर्ति के समक्ष चार घड़े रखे जाते हैं, जिनमें रत्न रखे जाते हैं, जिनके ताम्र-ढक्कनों पर स्वर्ण एवं तिल रख दिये जाते हैं।
  • ये चारों घड़े समुद्र समझे जाते हैं।
  • स्वर्ण प्रतिमा इनके बीच में प्रतिस्थापित की जाती है।
  • उस रात्रि जागर (जागरण) किरा जाता है।
  • दूसरे दिन प्रातः पाँच ब्राह्मण बुलाये जाते हैं, उन्हें भोजन एवं दक्षिणा से सम्मानित किया जाता है।
  • इस व्रत को प्रजापति, बहुत से प्रसिद्ध राजाओं तथा स्वयं धरती (पृथ्वी) ने किया था, इससे इसका ऐसा नाम पड़ा।[1]
  • कृत्यरत्नाकर[2] ने इसे योगीश्वर द्वारशी कहा है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1041-44, वराह पुराण 50|1-29 से उद्धरण
  2. कृत्यरत्नाकर (426-430

अन्य संबंधित लिंक

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