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*कुछ पुष्पों आदि के विषय में ऐसे नियम प्रतिपादित हैं कि वे कुछ देवों एवं देवियों की पूजा में प्रयुक्त नहीं होते हैं, यथा [[दुर्गा]] पूजा में दूर्वा, [[सूर्य देवता|सूर्य]] के लिए बिल्व दल, महाभिषेक में जल शंख द्वारा चढ़ाया जाता है, किन्तु [[शिव]] एवं सूर्य की पूजा में ऐसा नहीं किया जाता है सामान्य <ref>विधि के लिए देखिए व्रतराज (47-49 | *कुछ पुष्पों आदि के विषय में ऐसे नियम प्रतिपादित हैं कि वे कुछ देवों एवं देवियों की पूजा में प्रयुक्त नहीं होते हैं, यथा [[दुर्गा]] पूजा में दूर्वा, [[सूर्य देवता|सूर्य]] के लिए बिल्व दल, महाभिषेक में जल शंख द्वारा चढ़ाया जाता है, किन्तु [[शिव]] एवं सूर्य की पूजा में ऐसा नहीं किया जाता है सामान्य <ref>विधि के लिए देखिए व्रतराज (47-49</ref>। | ||
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12:52, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- कर्मकांड में जब भावना अपना महत्त्व बढ़ाने लगे तो वह पूजा का सही स्वरूप है।
- जीवन में पूजा से मनुष्य में चार गुण स्थापित होंगे-
- अनुशासन,
- परिश्रम,
- धैर्य और
- दूरदर्शिता।
- इसीलिए न सिर्फ़ हिंदुओं ने बल्कि सभी धर्मो ने पूजा की एक निश्चित विधि बनाई है। कब, क्या, कितना करना है इसमें एक अनुशासन छिपा है।
- अधिकांश व्रतों में उपचार, यथा–गंध, पुष्प, धूप, दीप, एवं नैवेद्य कार्यान्वित होते हैं[1]।
- कुछ पुष्पों आदि के विषय में ऐसे नियम प्रतिपादित हैं कि वे कुछ देवों एवं देवियों की पूजा में प्रयुक्त नहीं होते हैं, यथा दुर्गा पूजा में दूर्वा, सूर्य के लिए बिल्व दल, महाभिषेक में जल शंख द्वारा चढ़ाया जाता है, किन्तु शिव एवं सूर्य की पूजा में ऐसा नहीं किया जाता है सामान्य [2]।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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