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*आवाहन से आरम्भ कर सोलह उपचारों के साथ शिव पूजा | *आवाहन से आरम्भ कर सोलह उपचारों के साथ शिव पूजा की जाती है। | ||
*मोती एवं अन्य बहुमूल्य पत्थरों से युक्त, सोने को आसन का प्रयोग करना चाहिए। | |||
*उपचारों के उपरान्त मेखला में गण्डा बाँधना चाहिए। | *उपचारों के उपरान्त मेखला में गण्डा बाँधना चाहिए। | ||
*1100 मण्डकों एवं वेष्टकों का दान करना चाहिए। | *1100 मण्डकों एवं वेष्टकों का दान करना चाहिए। | ||
*ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति होती | *ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति होती है।<ref>निर्णयसिन्धु (134</ref>, <ref>व्रतरत्नाकर (241-247</ref> | ||
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12:52, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- भाद्र शुक्ल सप्तमी पर होता है।
- यह व्रत तिथिव्रत होता है।
- देवता, शिव एवं उमा की पूजा करनी चाहिए।
- शिव प्रतिमा के समक्ष एक डोरक (धागों से बना गण्डा) रखना चाहिए।
- आवाहन से आरम्भ कर सोलह उपचारों के साथ शिव पूजा की जाती है।
- मोती एवं अन्य बहुमूल्य पत्थरों से युक्त, सोने को आसन का प्रयोग करना चाहिए।
- उपचारों के उपरान्त मेखला में गण्डा बाँधना चाहिए।
- 1100 मण्डकों एवं वेष्टकों का दान करना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति होती है।[1], [2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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