"विजया व्रत": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
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*यह नाम कई तिथियों को प्राप्त है, यथा- [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] जो [[रविवार]] को पड़ती है।<ref>भविष्योत्तरपुराण 43|2; वर्षक्रियाकौमुदी 9; हेमाद्रि, काल, 625; पुरुषार्थचिन्तामणि 105;</ref>  
*यह नाम कई तिथियों को प्राप्त है, यथा- [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] जो [[रविवार]] को पड़ती है।<ref>भविष्योत्तरपुराण 43|2; वर्षक्रियाकौमुदी 9; हेमाद्रि, काल, 625; पुरुषार्थचिन्तामणि 105;</ref>  
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*विजयविधि के अंतर्गत [[गरुड़ पुराण]]<ref>गरुड़पुराण (1|136|1-2</ref> के अनुसार [[द्वादशी]] या [[एकादशी]] [[श्रवण नक्षत्र]] से युक्त हो तो उसे विजया कहते हैं।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड, 349); कृत्यरत्नाकर (287-291)।</ref>  
*एपिग्रैफिया इण्डिका, इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, वर्षक्रियाकौमुदी<ref>एपिग्रैफिया इण्डिका (3, 53-56) एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी (25, पृष्ट 345); वर्षक्रियाकौमुदी (36)</ref> में आया है कि जब विजया सप्तमी में [[सूर्य देवता|सूर्य]] [[हस्त नक्षत्र]] में हो तो इसे महा-महा कहते हैं।  
*एपिग्रैफिया इण्डिका, इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, वर्षक्रियाकौमुदी<ref>एपिग्रैफिया इण्डिका (3, 53-56) एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी (25, पृष्ट 345); वर्षक्रियाकौमुदी (36</ref> में आया है कि जब विजया सप्तमी में [[सूर्य देवता|सूर्य]] [[हस्त नक्षत्र]] में हो तो इसे महा-महा कहते हैं।  
*पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त शुक्ल पक्ष [[एकादशी]] विजया के नाम से घोषित है।<ref>हेमाद्रि (काल, 633, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>  
*पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त शुक्ल पक्ष [[एकादशी]] विजया के नाम से घोषित है।<ref>हेमाद्रि (काल, 633, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>  
   
   

13:00, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

विजय व्रत एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- विजय व्रत (बहुविकल्पी)


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भविष्योत्तरपुराण 43|2; वर्षक्रियाकौमुदी 9; हेमाद्रि, काल, 625; पुरुषार्थचिन्तामणि 105;
  2. गरुड़पुराण (1|136|1-2
  3. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड, 349); कृत्यरत्नाकर (287-291)।
  4. एपिग्रैफिया इण्डिका (3, 53-56) एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी (25, पृष्ट 345); वर्षक्रियाकौमुदी (36
  5. हेमाद्रि (काल, 633, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।

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