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*तीसरी अवधि में विष्णुनाम का जप करना चाहिए। | *तीसरी अवधि में विष्णुनाम का जप करना चाहिए। | ||
*देवी सुख एवं [[विष्णुलोक]] की प्राप्ति होती है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1081-1083, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 3|215|4-22 से उद्धरण | *देवी सुख एवं [[विष्णुलोक]] की प्राप्ति होती है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1081-1083, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 3|215|4-22 से उद्धरण</ref> | ||
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13:01, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वादशी से प्रारम्भ करना चाहिए।
- तिथिव्रत यह कृष्ण देवता का व्रत है।
- उस दिन उपवास करना चाहिए।
- कृष्ण जी की पूजा करनी चाहिए।
- 108 बार कृष्ण के नाम का जाप करना चाहिए।
- एक वर्ष तक करना चाहिए।
- चार-चार मासों के क्रम से तीन अवधियों में विभाजित करना चाहिए।
- फाल्गुन से आरम्भ होने वाले चार मासों में कृष्ण नामजप एवं कृष्ण प्रतिमा पर जल की तीन धाराएँ अर्पित करनी चाहिए।
- आषाढ़ से आश्विन तक की दूसरी अवधि में केशव नामजप (जिससे की मृत्यु के समय केशव नाम स्मरण हो सके) करना चाहिए।
- तीसरी अवधि में विष्णुनाम का जप करना चाहिए।
- देवी सुख एवं विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1081-1083, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 3|215|4-22 से उद्धरण
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