"प्राचीन भारत": अवतरणों में अंतर
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1200 ई.पू से 240 ई. तक का [[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]], प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। इसके बाद के [[भारत]] को [[मध्यकालीन भारत]] कहते हैं जिसमें मुख्यतः मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा था। प्राचीन भारत के इतिहास में मुख्यत: मौर्य काल, शुंग काल, शक एवं कुषाण काल आते हैं। | {{इतिहास}} | ||
1200 ई.पू से 240 ई. तक का [[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]], प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। इसके बाद के [[भारत]] को [[मध्यकालीन भारत]] कहते हैं जिसमें मुख्यतः मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा था। प्राचीन भारत के इतिहास में मुख्यत: [[मौर्य काल]], [[शुंग काल]], [[शक-कुषाण काल|शक एवं कुषाण काल]] आते हैं। | |||
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यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि [[सिकन्दर]] की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति [[सेल्युकस]] को हरा दिया। सेल्युकस ने [[हिन्दूकुश]] तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी [[पाटलिपुत्र]] से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। '''उसका पौत्र [[अशोक]] था, जिसने [[कलिंग]] ([[उड़ीसा]]) को जीता। उसका साम्राज्य [[हिमालय]] के पादमूल से लेकर दक्षिण में [[पन्नार नदी]] तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में [[असम|आसाम]] की सीमा तक विस्तृत था।''' उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को [[मिस्र]], मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन [[यूनान]] की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद [[पुष्यमित्र शुंग|पुष्यमित्र]] ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने [[शुंगवंश]] (लगभग 185 ई. पू.- 73 ई. पू.) की स्थापना की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई. पू.-28 ई. पू.) ने कर दिया। | यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि [[सिकन्दर]] की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति [[सेल्युकस]] को हरा दिया। सेल्युकस ने [[हिन्दूकुश]] तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। [[चित्र:kanishk.jpg|thumb|100px|left|[[कनिष्क]]]] उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी [[पाटलिपुत्र]] से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। '''उसका पौत्र [[अशोक]] था, जिसने [[कलिंग]] ([[उड़ीसा]]) को जीता। उसका साम्राज्य [[हिमालय]] के पादमूल से लेकर दक्षिण में [[पन्नार नदी]] तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में [[असम|आसाम]] की सीमा तक विस्तृत था।''' उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को [[मिस्र]], मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन [[यूनान]] की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद [[पुष्यमित्र शुंग|पुष्यमित्र]] ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने [[शुंगवंश]] (लगभग 185 ई. पू.- 73 ई. पू.) की स्थापना की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई. पू.-28 ई. पू.) ने कर दिया। | ||
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मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और [[सातवाहन]] राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को [[आन्ध्र वंश]] भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में [[मिलिंद (मिनांडर)|मिनाण्डर]] सबसे विख्यात है। इसके बाद ही [[शक]] राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और [[महाराष्ट्र]], [[सौराष्ट्र]] तथा [[मथुरा]] शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] द्वारा [[कुषाण वंश]] की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया। | मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और [[सातवाहन]] राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को [[आन्ध्र वंश]] भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में [[मिलिंद (मिनांडर)|मिनाण्डर]] सबसे विख्यात है। इसके बाद ही [[शक]] राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और [[महाराष्ट्र]], [[सौराष्ट्र]] तथा [[मथुरा]] शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] द्वारा [[कुषाण वंश]] की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया। | ||
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'''इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा [[कनिष्क]] (लगभग 120-144 ई.) था, जिसकी राजधानी [[पुरुषपुर]] अथवा [[पेशावर]] थी। उसने [[बौद्ध धर्म]] ग्रहण कर लिया और [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] तथा [[चरक]] जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया।''' कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में [[गुप्तवंश]] के उदय से समाप्त हुआ। | '''इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा [[कनिष्क]] (लगभग 120-144 ई.) था, जिसकी राजधानी [[पुरुषपुर]] अथवा [[पेशावर]] थी। उसने [[बौद्ध धर्म]] ग्रहण कर लिया और [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] तथा [[चरक]] जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया।''' कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में [[गुप्तवंश]] के उदय से समाप्त हुआ। | ||
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12:06, 6 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
पाषाण युग- 70000 से 3300 ई.पू | |
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मेहरगढ़ संस्कृति | 7000-3300 ई.पू |
सिन्धु घाटी सभ्यता- 3300-1700 ई.पू | |
हड़प्पा संस्कृति | 1700-1300 ई.पू |
वैदिक काल- 1500–500 ई.पू | |
प्राचीन भारत - 1200 ई.पू–240 ई. | |
महाजनपद | 700–300 ई.पू |
मगध साम्राज्य | 545–320 ई.पू |
सातवाहन साम्राज्य | 230 ई.पू-199 ई. |
मौर्य साम्राज्य | 321–184 ई.पू |
शुंग साम्राज्य | 184–123 ई.पू |
शक साम्राज्य | 123 ई.पू–200 ई. |
कुषाण साम्राज्य | 60–240 ई. |
पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई. | |
चोल साम्राज्य | 250 ई.पू- 1070 ई. |
गुप्त साम्राज्य | 280–550 ई. |
पाल साम्राज्य | 750–1174 ई. |
प्रतिहार साम्राज्य | 830–963 ई. |
राजपूत काल | 900–1162 ई. |
मध्यकालीन भारत- 500 ई.– 1761 ई. | |
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आधुनिक भारत- 1762–1947 ई. | |
मराठा साम्राज्य | 1674-1818 ई. |
सिख राज्यसंघ | 1716-1849 ई. |
औपनिवेश काल | 1760-1947 ई. |
1200 ई.पू से 240 ई. तक का भारतीय इतिहास, प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। इसके बाद के भारत को मध्यकालीन भारत कहते हैं जिसमें मुख्यतः मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा था। प्राचीन भारत के इतिहास में मुख्यत: मौर्य काल, शुंग काल, शक एवं कुषाण काल आते हैं।
मौर्य और शुंग
यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि सिकन्दर की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हरा दिया। सेल्युकस ने हिन्दूकुश तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र अशोक था, जिसने कलिंग (उड़ीसा) को जीता। उसका साम्राज्य हिमालय के पादमूल से लेकर दक्षिण में पन्नार नदी तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में आसाम की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को मिस्र, मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन यूनान की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद पुष्यमित्र ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने शुंगवंश (लगभग 185 ई. पू.- 73 ई. पू.) की स्थापना की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई. पू.-28 ई. पू.) ने कर दिया।
इन्हें भी देखें: अशोक के शिलालेख, अशोक, बुद्ध, बौद्ध दर्शन, बौद्ध धर्म, फ़ाह्यान, पाटलिपुत्र एवं तक्षशिला
शक, कुषाण और सातवाहन
मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और सातवाहन राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में मिनाण्डर सबसे विख्यात है। इसके बाद ही शक राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और महाराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा मथुरा शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में कुजुल कडफ़ाइसिस द्वारा कुषाण वंश की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क (लगभग 120-144 ई.) था, जिसकी राजधानी पुरुषपुर अथवा पेशावर थी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और अश्वघोष, नागार्जुन तथा चरक जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में गुप्तवंश के उदय से समाप्त हुआ।
इन्हें भी देखें: राबाटक लेख, कुषाण, कनिष्क, कम्बोजिका एवं कल्हण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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