"चील (1) -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर
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<poem>बहुत दिनों बाद दिखी | <poem>बहुत दिनों बाद दिखी | ||
एक चील | एक चील | ||
गहरे अनन्त आकाश में | गहरे अनन्त आकाश में | ||
गोल गोल घूमती हुई | गोल गोल घूमती हुई | ||
जैसे विशाल नीली झील में | |||
जैसे | |||
डूबती उतराती काली गेंद | डूबती उतराती काली गेंद | ||
क्या ढूंढ रही है चील | क्या ढूंढ रही है चील | ||
इतनी ऊँचाई से आकाश में | |||
इतनी | |||
पृथ्वी को निशाने में रखकर | पृथ्वी को निशाने में रखकर | ||
जबकि इतने मृत पशु हैं | जबकि इतने मृत पशु हैं | ||
असंख्य लाशें | असंख्य लाशें | ||
चील अपने भोजन की | चील अपने भोजन की | ||
प्रचुरता से डरी हुई | प्रचुरता से डरी हुई | ||
घूम रही है गोल गोल | घूम रही है गोल गोल | ||
भूगोल की थाह लेती हुई | भूगोल की थाह लेती हुई | ||
कई बरस पहले | कई बरस पहले | ||
जब बहुत थी चीलें | जब बहुत थी चीलें | ||
बहुत कम मरते थे पशु | बहुत कम मरते थे पशु | ||
चीलों के झुण्ड के झुण्ड | चीलों के झुण्ड के झुण्ड | ||
मंडराते थे आकाश में | मंडराते थे आकाश में | ||
क्रोध से काला पड़ जाता था आसमान | क्रोध से काला पड़ जाता था आसमान | ||
हवा को गोली की तरह चीरती | हवा को गोली की तरह चीरती | ||
साँ की आवाज़ से | साँ की आवाज़ से | ||
झपटती थीं चीलें मृत पशु पर | झपटती थीं चीलें मृत पशु पर | ||
असंभव था उन्हें शिकार से दूर रखना | असंभव था उन्हें शिकार से दूर रखना | ||
माँ बताती थी | माँ बताती थी | ||
कि चिड़िया नहीं | कि चिड़िया नहीं | ||
चील अकेला ऐसा पक्षी है | चील अकेला ऐसा पक्षी है | ||
जो उड़ते उड़ते सशरीर | जो उड़ते उड़ते सशरीर | ||
चला जाता है स्वर्ग तक | चला जाता है स्वर्ग तक | ||
मैं चीलों को मृत पशु के पास | मैं चीलों को मृत पशु के पास | ||
कुत्तों से लड़ते देखता था | कुत्तों से लड़ते देखता था | ||
तो झूठ लगती थी माँ की बात | तो झूठ लगती थी माँ की बात | ||
यह गंदा मांसाहारी पक्षी | यह गंदा मांसाहारी पक्षी | ||
कैसे जा सकता है स्वर्ग तक | कैसे जा सकता है स्वर्ग तक | ||
जबकि स्वर्ग में नहीं होता मांस | जबकि स्वर्ग में नहीं होता मांस | ||
पर अब जबकि सारी चीलें | पर अब जबकि सारी चीलें | ||
लुप्त हो गई हैं हमारे आकाश से | |||
लुप्त हो गई हैं हमारे | |||
तो लगता है | तो लगता है | ||
कहीं सचमुच खो गया है हमारा स्वर्ग | कहीं सचमुच खो गया है हमारा स्वर्ग | ||
और जाने कहां से | और जाने कहां से | ||
इतनी सड़ांध उतर आई है धरती पर | इतनी सड़ांध उतर आई है धरती पर | ||
जहां ढेर सा जमा हो गया है | जहां ढेर सा जमा हो गया है | ||
चीलों का भोजन | चीलों का भोजन | ||
और चीलें हैं कि कहीं दिख नहीं रहीं | |||
और चीलें हैं कि कहीं दिख नहीं | |||
अब एक अकेली चील | अब एक अकेली चील | ||
जो शायद पृथ्वी की चिन्ता में | जो शायद पृथ्वी की चिन्ता में | ||
भूल गई है स्वर्ग का रास्ता | भूल गई है स्वर्ग का रास्ता | ||
हमें याद दिला रही है | हमें याद दिला रही है | ||
कि जब नहीं रहते | कि जब नहीं रहते | ||
नरक उठाने वाले हाथ | नरक उठाने वाले हाथ | ||
तब भी खो जाता है स्वर्ग़ | तब भी खो जाता है स्वर्ग़ | ||
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[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | [[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | ||
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12:09, 22 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
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बहुत दिनों बाद दिखी |