"राजे ने अपनी रखवाली की -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर

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राजे ने अपनी रखवाली की;
राजे ने अपनी रखवाली की;
क़िला बनाकर रहा;
क़िला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं ।
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।
चापलूस कितने सामन्त आए ।
चापलूस कितने सामन्त आए।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए ।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।
कितने ब्राह्मण आए
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए ।
पोथियों में जनता को बाँधे हुए।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले ।
रंगमंच पर खेले।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का ।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं ।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ ।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।
ख़ून की नदी बही ।
ख़ून की नदी बही ।
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं ।
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।
आँख खुली-- राजे ने अपनी रखवाली की ।
आँख खुली-राजे ने अपनी रखवाली की।
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राजे ने अपनी रखवाली की -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

राजे ने अपनी रखवाली की;
क़िला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।
चापलूस कितने सामन्त आए।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।
ख़ून की नदी बही ।
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।
आँख खुली-राजे ने अपनी रखवाली की।












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