"अनुभव -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर
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खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा है। | |||
लहर जो लेता है उसकी, वही दुनिया से न्यारा है।। | |||
भाव की नौका कर बैठे, पथिक सच्चे अरु स्याने हो। | |||
कहो उस आनंद की सीमा, मिले जब दीवाने ही दो।। | |||
रगड़ कर दूर हटाया है, जमा जो भ्रम रूपी मैला। | |||
पथिक तो सब ही अच्छे हैं, खुला पर उसका ही गैला।। | |||
किया स्नान ऐसा जो, विवेकी पहन कर वस्तर। | |||
कहो शिवदीन वह प्राणी, जायेंगे क्यों न भव से तर।। | |||
करे हद आनंद की बातें, मस्त बनकर मतवाले से। | |||
राम रस का ये चस्का है, कम क्या मद के प्याले से।। | |||
खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा | जिन्होंने मुक्ति का साधन, किया है जीते जी ऐसा। | ||
लहर जो लेता है उसकी, वही | मुक्ति जीवन में ही है, तरेगा मर कर फिर कैसा।। | ||
भाव की नौका कर बैठे,पथिक सच्चे | समझलो सोचनीय बातें, सही ही जीवन में करता। | ||
कहो उस आनंद की सीमा, मिले जब | वही फल अक्षय है सच्चा, कर्म शुभ करके नर मरता।। | ||
रगड़ कर दूर हटाया है, जमा जो भ्रम रूपी | मिटा कर वासना दिल से, दूर से आशा जो त्यागी। | ||
पथिक तो सब ही अच्छे हैं,खुला पर उसका ही | वही है भक्त निष्केवल, प्रभु का सच्चा अनुरागी।। | ||
किया स्नान ऐसा जो, विवेकी पहन कर | तडपना छोड़ दी जिसने, नहीं स्वारथ में जो रत है। | ||
कहो शिवदीन वह प्राणी, जायेंगे क्यों न भव से | संत है महात्मा वही, अटल उसका ही तो मत है।। | ||
करे हद आनंद की बातें, मस्त बनकर मतवाले | बुरा करता ना कोई का, भला कोई ही करता है। | ||
राम रस का ये चस्का है,कम क्या मद के प्याले | समझ कर बात ऐसी ही, समझ अपनी में धरता है।। | ||
जिन्होंने मुक्ति का साधन, किया है जीते जी | दया का भाव रख दिल में, विचरता भूमि के ऊपर। | ||
मुक्ति जीवन में ही है, तरेगा मर कर फिर | क्षमा संतोष ही धन है, रहा इस प्रण पर ही निर्भर।। | ||
समझलो सोचनीय बातें, सही ही जीवन में | कहो क्यों नां अपनाएंगे, दयालु भक्त वत्सल है। | ||
वही फल अक्षय है सच्चा,कर्म शुभ करके नर | उन्हीं के नाम पर मस्ता, किया मन को जो निश्छल है।। | ||
मिटा कर वासना दिल से, दूर से आशा जो | कवि है पंडित है वह ही, वही है ज्ञानेश्वर ज्ञानी। | ||
वही है भक्त निष्केवल, प्रभु का सच्चा | जिन्होंने मन को समझाया, ज्ञान जो आत्म का जानी।। | ||
तडपना छोड़ दी जिसने, नहीं स्वारथ में जो रत | और सब भूले भटकाए, बिना मन के समझाने से। | ||
संत है महात्मा वही, अटल उसका ही तो मत | ताल और लय से बाहर है, कहो क्या मतलब गाने से।। | ||
बुरा करता ना कोई का, भला कोई ही करता | बना मन में तो पंडित है, मगर ये मन तो शठ वोही। | ||
समझ कर बात ऐसी ही,समझ अपनी में धरता | कहो क्या होगा पढ़ने से, समय सब व्यर्थ ही खोई।। | ||
दया का भाव रख दिल में, विचरता भूमि के | रटना तोते की सी में, नहीं कुछ लाभ ही होता। | ||
क्षमा संतोष ही धन है, रहा इस | बिना जाने मनाने मन, मैल क्या भीतर से धोता।। | ||
कहो क्यों नां अपनाएंगे, दयालु भक्त वत्सल | मिले जब सद्गुरु आकर के, भाग्य का खुलना ही जानू। | ||
उन्हीं के नाम पर मस्ता, किया मन को जो निश्छल | भरम के परदे फट जाते, सच्ची मुक्ति वह मानू।। | ||
कवि है पंडित है वह ही, वही है ज्ञानेश्वर | |||
जिन्होंने मन को समझाया,ज्ञान जो आत्म का | |||
और सब भूले भटकाए, बिना मन | |||
ताल और लय से बाहर है,कहो क्या मतलब गाने | |||
बना मन में तो पंडित है,मगर ये मन तो शठ | |||
कहो क्या होगा पढ़ने से, समय सब | |||
रटना तोते की सी में, नहीं | |||
बिना जाने मनाने मन, मैल क्या | |||
मिले जब सद्गुरु आकर के, भाग्य का खुलना ही | |||
भरम के परदे फट जाते, सच्ची | |||
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14:57, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण
खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा है। |
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