"ब्रह्मवेद": अवतरणों में अंतर

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*पहला यह कि ब्रह्म विषय होने के कारण इसे 'ब्रह्मवेद' कहा गया।
*पहला यह कि ब्रह्म विषय होने के कारण इसे 'ब्रह्मवेद' कहा गया।
*दूसरा कारण यह है कि इस [[वेद]] में [[मंत्र]] हैं, टोटके हैं, आशीर्वाद है और प्रार्थनाएँ हैं, जिनसे [[देवता|देवताओं]] को प्रसन्न किया जा सकता है। मनुष्य, भूत, प्रेत, [[पिशाच]] आदि आसुरी शत्रुओं को शाप दिया जा सकता और नष्ट किया जा सकता है। इन प्रार्थनात्मिका स्तुतियों को 'ब्रह्मणि' कहा जाता था। इन्हीं का ज्ञानसमुच्चय होने से इसका नाम ब्रह्मवेद पड़ा।
*दूसरा कारण यह है कि इस [[वेद]] में [[मंत्र]] हैं, टोटके हैं, आशीर्वाद है और प्रार्थनाएँ हैं, जिनसे [[देवता|देवताओं]] को प्रसन्न किया जा सकता है। मनुष्य, भूत, प्रेत, [[पिशाच]] आदि आसुरी शत्रुओं को शाप दिया जा सकता और नष्ट किया जा सकता है। इन प्रार्थनात्मिका स्तुतियों को 'ब्रह्मणि' कहा जाता था। इन्हीं का ज्ञानसमुच्चय होने से इसका नाम ब्रह्मवेद पड़ा।
*ब्रह्मवेद कहलाने की तीसरी युक्ति यह है कि जहाँ पर तीनों वेद इस लोक और परलोक में सुख प्राप्ति के उपाय बतलाते हैं और [[धर्म]] पालन की शिक्षा देते हैं, वहाँ ब्रह्मवेद अपने दार्शनिक सूक्तों के द्वारा ब्रह्मज्ञान सिखाता है और मोक्ष के उपायों को बतलाता है। इसीलिए [[अथर्ववेद]] की आध्यात्मविद्याप्रद उपनिषदें बड़ी महत्वपूर्ण हैं।
*ब्रह्मवेद कहलाने की तीसरी युक्ति यह है कि जहाँ पर तीनों वेद इस लोक और परलोक में सुख प्राप्ति के उपाय बतलाते हैं और [[धर्म]] पालन की शिक्षा देते हैं, वहाँ ब्रह्मवेद अपने दार्शनिक सूक्तों के द्वारा ब्रह्मज्ञान सिखाता है और मोक्ष के उपायों को बतलाता है। इसीलिए [[अथर्ववेद]] की आध्यात्मविद्याप्रद उपनिषदें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं।


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13:46, 9 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

ब्रह्मवेद अथर्ववेद का ही एक नाम है। अथर्ववेद का साक्षात्कार 'अथर्वा' नामक ऋषि ने किया था, इसलिए इसका नाम अथर्ववेद हो गया। यज्ञ के ऋत्विजों में से ब्रह्मा के लिए अथर्ववेद का उपयोग होता था, अत: इसको 'ब्रह्मवेद' भी कहते हैं।

नामकरण

ग्रिफ़िथ ने इसके अंग्रेज़ी अनुवाद की भुमिका में ब्रह्मवेद कहलाने के तीन कारण कहे हैं-

  • पहला यह कि ब्रह्म विषय होने के कारण इसे 'ब्रह्मवेद' कहा गया।
  • दूसरा कारण यह है कि इस वेद में मंत्र हैं, टोटके हैं, आशीर्वाद है और प्रार्थनाएँ हैं, जिनसे देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है। मनुष्य, भूत, प्रेत, पिशाच आदि आसुरी शत्रुओं को शाप दिया जा सकता और नष्ट किया जा सकता है। इन प्रार्थनात्मिका स्तुतियों को 'ब्रह्मणि' कहा जाता था। इन्हीं का ज्ञानसमुच्चय होने से इसका नाम ब्रह्मवेद पड़ा।
  • ब्रह्मवेद कहलाने की तीसरी युक्ति यह है कि जहाँ पर तीनों वेद इस लोक और परलोक में सुख प्राप्ति के उपाय बतलाते हैं और धर्म पालन की शिक्षा देते हैं, वहाँ ब्रह्मवेद अपने दार्शनिक सूक्तों के द्वारा ब्रह्मज्ञान सिखाता है और मोक्ष के उपायों को बतलाता है। इसीलिए अथर्ववेद की आध्यात्मविद्याप्रद उपनिषदें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 456 |


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