"आज़ादी की पूर्व संध्या पर -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर

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वे सारे लोग
वे सारे लोग
जो कल झंडा फहराएंगे  
जो कल झंडा फहराएंगे  
उसके स्कूल में और देष भर में
उसके स्कूल में और देश भर में
और उनकी मुठृी में होंगे  
और उनकी मुट्ठी में होंगे  
करोड़ों गुलाम
करोड़ों ग़ुलाम
जो तालियां पीटेगे  
जो तालियां पीटेगे  
उनके भाषणों पर.
उनके भाषणों पर
जो उन्हे ढो रहे हैं  
जो उन्हे ढो रहे हैं  
कई सालों से अपने कंधों पर.
कई सालों से अपने कंधों पर
कैसे बताऊॅं मैं बेटी को  
कैसे बताऊ मैं बेटी को  
कि गुलामी दिखती थोड़े ही है
कि ग़ुलामी दिखती थोड़े ही है
वह ऐसे ही व्यक्त होती है
वह ऐसे ही व्यक्त होती है
बहुधा आज़ादी के उत्सव पर  
बहुधा आज़ादी के उत्सव पर
 
'''2'''
 
मुाङो बहुत अटपटी लग रही है
उसकी यह जिद्द
मैं अभी भी उलझा हूं
उन ख़बरों में
जो सलामी परेड के समानांतर
दिखाई जा रही हैं एक चैनल पर
मैं बेटी की आंखों में
तिरंगा नही
लेह के मानचित्र से
गुम हुआ एक गांव
ढूंढ रहा हूँ
 
उसे लगता है
कि आज़ादी के आस-पास
होती हैं खुशियां और उत्सव
मैं जानता हूँ कि
आज़ादी के आसपास
होते हैं हादस़े
 
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आज़ादी की पूर्व संध्या पर -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (उना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 
मेरी नन्हीं बेटी
जिद्द कर रही है
कि मैं लिखूँ उसके लिए
आज़ादी पर एक निबंध
वह आज़ादी को लेकर
बहुत उत्साह में है
कल उसके स्कूल में
मनाया जाएगा आज़ादी का उत्सव
बांटी जाएंगी मिठाईयां
गुब्बारों से सजेगा सारा स्कूल


उसके ज़ेहन के आकाश में
आज़ादी के कितने ही अर्थ
उड़ रहे हैं
रंग-बिरंगी पतंगों की तरह
उसकी आंखों में इस समय
एक लहराता हुआ तिरंगा है
उसकी पुतलियों में
दिख रहा है मुङो
लाल किला
और उस पर उड़ते हुए
हज़ारो सफेद कबूतर

 
वह आज़ादी के बारे में
दोहराना चाहती है
वे तमाम अच्छी बातें
जो उसने
पाठ्य पुस्तकों में पढ़ी हैं
उन सारी अव्छी बातों को
लाना चाहती है वह
एक साथ निबंध में

उसे पता भी नहीं है
कितनी अदृष्य जंजीरों में
जकड़े हुए आएंगे
वे सारे लोग
जो कल झंडा फहराएंगे
उसके स्कूल में और देश भर में
और उनकी मुट्ठी में होंगे
करोड़ों ग़ुलाम
जो तालियां पीटेगे
उनके भाषणों पर
जो उन्हे ढो रहे हैं
कई सालों से अपने कंधों पर
कैसे बताऊ मैं बेटी को
कि ग़ुलामी दिखती थोड़े ही है
वह ऐसे ही व्यक्त होती है
बहुधा आज़ादी के उत्सव पर ।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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