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*तदंतर किसी कारण से क्रुद्ध होकर गुरु याज्ञवल्क्य से बोले कि जो कुछ वेदाध्ययन तुमने किया है उसे वापस करो। याज्ञवल्क्य ने विद्या को मूर्तिमती करके वमन कर दिया। | *तदंतर किसी कारण से क्रुद्ध होकर गुरु याज्ञवल्क्य से बोले कि जो कुछ वेदाध्ययन तुमने किया है उसे वापस करो। याज्ञवल्क्य ने विद्या को मूर्तिमती करके वमन कर दिया। | ||
*उस समय वैशम्पायन के दूसरे शिष्य उपस्थित थे। वैशम्पायन ने उन्हें आज्ञा दी कि इन वांत यजुओं को ग्रहण कर लो। उन्होंने तीतर बनकर मंत्र [[ब्राह्मण]] दोनों को मिश्रित रुप में एक साथ ही चुग लिया, इसीलिए | *उस समय वैशम्पायन के दूसरे शिष्य उपस्थित थे। वैशम्पायन ने उन्हें आज्ञा दी कि इन वांत यजुओं को ग्रहण कर लो। उन्होंने तीतर बनकर मंत्र [[ब्राह्मण]] दोनों को मिश्रित रुप में एक साथ ही चुग लिया, इसीलिए 'तैत्तिरीय संहिता' इसका नाम पड़ा। | ||
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*इसमें मंत्रों के संग-संग क्रियाप्रणाली भी बतायी गयी है और जिस उद्देश्य से मंत्रों का व्यवहार होता है वह भी बताया गया है। | *इसमें मंत्रों के संग-संग क्रियाप्रणाली भी बतायी गयी है और जिस उद्देश्य से मंत्रों का व्यवहार होता है वह भी बताया गया है। | ||
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08:15, 22 जून 2012 के समय का अवतरण
तैत्तिरीय संहिता वैशम्पायन प्रवर्तित की 27 शाखाएँ है। महीघर ने इसके भाष्य में लिखा है कि वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य आदि शिष्यों को वेदाध्ययन कराया।
- तदंतर किसी कारण से क्रुद्ध होकर गुरु याज्ञवल्क्य से बोले कि जो कुछ वेदाध्ययन तुमने किया है उसे वापस करो। याज्ञवल्क्य ने विद्या को मूर्तिमती करके वमन कर दिया।
- उस समय वैशम्पायन के दूसरे शिष्य उपस्थित थे। वैशम्पायन ने उन्हें आज्ञा दी कि इन वांत यजुओं को ग्रहण कर लो। उन्होंने तीतर बनकर मंत्र ब्राह्मण दोनों को मिश्रित रुप में एक साथ ही चुग लिया, इसीलिए 'तैत्तिरीय संहिता' इसका नाम पड़ा।
- बुद्धि की मलिनता के कारण यजुओं का रंग मंत्र ब्राह्मण रुप में अलग न हो सकने से काला हो गया, इसी से 'कृष्ण-यजुर्वेद' नाम चल पड़ा।
- इसमें मंत्रों के संग-संग क्रियाप्रणाली भी बतायी गयी है और जिस उद्देश्य से मंत्रों का व्यवहार होता है वह भी बताया गया है।
- पूरी संहिता ब्राह्मण भाग के ढ़ग पर चलती है। इस शाखा के अन्य उपलब्ध ब्राह्मण परिशिष्ट रुप के हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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