प्रमाणमंजरी

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अभाव
जन्य:
(प्रध्वंस:)
अजन्य:
विनाशी
(प्रागभाव:)
अविनाशी
समानाधकिरणानिषेध:


(इतरेतराभाव:)

असमानाधिकरणनिषेध:


(अत्यन्ताभाव:)

  • प्रमाणमंजरी ग्रन्थ सर्वदेव रचित है।
  • प्रमाणमंजरी ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव का सात प्रकरणों में विश्लेषण किया गया है।
  • इस वैशेषिक ग्रन्थ में भाव और अभाव भेद से पदार्थों का विभाग किया गया है।
  • इसमें छ: हेत्वाभास और दो प्रमाण स्वीकार किए गए हैं।
  • अभाव के प्रकारों के निरूपण में इसमें निम्नलिखित रूप से एक नई पद्धति अपनाई गई है-
  • इसके रचयिता सर्वदेव का समय पन्द्रहवीं शती से पूर्व माना जाता है।
  • प्रमाणमंजरी पर अद्वयारण्य, वामनभट्ट और बलभद्र द्वारा टीकाओं की रचना की गई है।
  • ये टीकाएँ राजस्थान पुरातन ग्रन्थामाला में प्रकाशित हुई हैं।

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