"आदमी जो चौक़ उठता है नींद में -सुभाष रस्तोग़ी": अवतरणों में अंतर
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'''एक''' | |||
आदमी जो बार-बार | |||
चौक़ उठता है नींद में | |||
ज़रूर उसका खोया होगा कहीं / घर | |||
घर / ताश के पत्तों का भी | |||
घर होता है | |||
ढहें तो नीवें | |||
हिल जाती हैं सपनों की | |||
सोता-सोता जो आदमी | |||
चौंकता है नींद में | |||
भरभराकर | |||
गिर सकता है ज़मीन पर भी | |||
और लहुलुहान हो सकता है | |||
सँभालो / संभालो उसे ! | |||
'''दो''' | |||
आदमी जो बार-बार | |||
चौंक उठता है नींद में | |||
अर्से पहले | |||
उसने रहन रख दिए थे पंख | |||
अब वह पंखों के बिना ही | |||
आसमानों के पार जाना चाहता है | |||
आकाँक्षा तो उड़ सकती है | |||
पंखों के बिना | |||
पर आदमी | |||
बिना पंख कैसे उड़ सकता है । | |||
18:23, 24 जून 2012 के समय का अवतरण
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एक |
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