"तिल": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Sesame seeds-2.jpg|thumb|तिल]]
[[चित्र:Sesame.jpg|thumb|250px|तिल]]
'''तिल''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Sesamum indicum'') का वानस्पतिक नाम 'सेसामम इंडिकम' हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्घवत्‌ या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके [[पुष्प]] का दलपुंज हलका [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] या [[श्वेत रंग|श्वेत]], 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: [[संस्कृत]] तथा [[अरबी भाषा]] से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में [[भारत]] में उगाया जाता था।
तिल का वानस्पतिक नाम सेवामम ओरियंटेल या इंडिकम हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्धवत्‌ या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके पुष्प का दलपुंज हलका गुलाबी या श्वेत, 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: [[संस्कृत]] तथा [[अरबी भाषा]] से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में [[भारत]] में उगाया जाता था।
==उद्गम==
तिल का उद्गम [[भारत]] या [[अफ्रीका |अफ्रीका]] माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे [[भूमध्य सागर|भूमध्यसागर]] के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, [[चीन]], मंचूरिया तथा [[जापान]] में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट [[मिट्टी]] अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: [[वर्षा]] में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा [[काला रंग|काला]] होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है।


इसका उद्गम भारत या अफ्रीका माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे भूमध्यसागर के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, [[चीन]], मंचूरिया तथा [[जापान]] में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट [[मिट्टी]] अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: [[वर्षा]] में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है।


दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा काला होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है।
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==वीथिका==
<gallery>
चित्र:Sesame-seeds.jpg|तिल
चित्र:Sesame.jpg|तिल
</gallery>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{कृषि}}
{{कृषि}}
[[Category:कृषि]][[Category:फ़सल]][[Category:भूगोल कोश]]
[[Category:कृषि]][[Category:फ़सल]][[Category:भूगोल कोश]]
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:वनस्पति]]
[[Category:वनस्पति कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

14:16, 13 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

तिल

तिल (अंग्रेज़ी:Sesamum indicum) का वानस्पतिक नाम 'सेसामम इंडिकम' हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्घवत्‌ या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके पुष्प का दलपुंज हलका गुलाबी या श्वेत, 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: संस्कृत तथा अरबी भाषा से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में भारत में उगाया जाता था।

उद्गम

तिल का उद्गम भारत या अफ्रीका माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे भूमध्यसागर के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, चीन, मंचूरिया तथा जापान में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: वर्षा में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा काला होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख