"गहन है यह अंधकार -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर

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गहन है यह अंधकारा;
गहन है यह अंधकार;
स्वार्थ के अवगुंठनों से
स्वार्थ के अवगुंठनों से,
हुआ है लुंठन हमारा।
हुआ है लुंठन हमारा।


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बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर
बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर
इस गगन में नहीं दिनकर;
इस गगन में नहीं दिनकर;
नही शशधर, नही तारा।
नही शशधर, नहीं तारा।


कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
कुछ नही आता समझ में
कुछ नहीं आता समझ में,
कहाँ है श्यामल किनारा।
कहाँ है श्यामल किनारा।



12:47, 2 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

गहन है यह अंधकार -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

गहन है यह अंधकार;
स्वार्थ के अवगुंठनों से,
हुआ है लुंठन हमारा।

खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,
बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर
इस गगन में नहीं दिनकर;
नही शशधर, नहीं तारा।

कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
कुछ नहीं आता समझ में,
कहाँ है श्यामल किनारा।

प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की,
याद जिससे रहे वंचित गेह की,
खोजता फिरता न पाता हुआ,
मेरा हृदय हारा।












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