"परशुराम की प्रतीक्षा -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) (''''परशुराम की प्रतीक्षा''' राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह दि...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा पुस्तक | |||
|चित्र=Parashuram ki Pratiksha.jpg | |||
|चित्र का नाम='परशुराम की प्रतीक्षा' रचना का आवरण पृष्ठ | |||
|लेखक= | |||
|कवि= [[रामधारी सिंह दिनकर]] | |||
|मूल_शीर्षक = परशुराम की प्रतीक्षा | |||
|मुख्य पात्र = [[परशुराम]] | |||
|कथानक = | |||
|अनुवादक = | |||
|संपादक = | |||
|प्रकाशक = लोकभारती प्रकाशन | |||
|प्रकाशन_तिथि = [[24 मार्च]] [[2005]] | |||
|भाषा = [[हिंदी]] | |||
|देश = [[भारत]] | |||
|विषय = | |||
|शैली = | |||
|मुखपृष्ठ_रचना = सजिल्द | |||
|विधा = | |||
|प्रकार = काव्य संग्रह | |||
|पृष्ठ = | |||
|ISBN = 81-85341-13-3 | |||
|भाग = | |||
|विशेष =इसमें कुल 18 कविताएँ, जिनमें से 15 ऐसी हैं जो पहले किसी भी संग्रह में नहीं निकली थीं। | |||
|टिप्पणियाँ = | |||
}} | |||
'''परशुराम की प्रतीक्षा''' राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह दिनकर]] का प्रसिद्ध [[काव्य संग्रह]] हैं। इसमें कुल 18 कविताएँ, जिनमें से 15 ऐसी हैं जो पहले किसी भी संग्रह में नहीं निकली थीं। केवल तीन रचनाएँ ‘सामधेनी’ से लेकर यहाँ मिला दी गयी हैं। | '''परशुराम की प्रतीक्षा''' राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह दिनकर]] का प्रसिद्ध [[काव्य संग्रह]] हैं। इसमें कुल 18 कविताएँ, जिनमें से 15 ऐसी हैं जो पहले किसी भी संग्रह में नहीं निकली थीं। केवल तीन रचनाएँ ‘सामधेनी’ से लेकर यहाँ मिला दी गयी हैं। | ||
==कथानक== | ==कथानक== |
11:45, 22 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
परशुराम की प्रतीक्षा -रामधारी सिंह दिनकर
| |
कवि | रामधारी सिंह दिनकर |
मूल शीर्षक | परशुराम की प्रतीक्षा |
मुख्य पात्र | परशुराम |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 24 मार्च 2005 |
ISBN | 81-85341-13-3 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | काव्य संग्रह |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
विशेष | इसमें कुल 18 कविताएँ, जिनमें से 15 ऐसी हैं जो पहले किसी भी संग्रह में नहीं निकली थीं। |
परशुराम की प्रतीक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं। इसमें कुल 18 कविताएँ, जिनमें से 15 ऐसी हैं जो पहले किसी भी संग्रह में नहीं निकली थीं। केवल तीन रचनाएँ ‘सामधेनी’ से लेकर यहाँ मिला दी गयी हैं।
कथानक
नेफ़ा-युद्ध के प्रसंग में भगवान् परशुराम का नाम अत्यन्त समीचीन है। जब परशुराम पर मातृ-हत्या का पाप चढ़ा, वे उससे मुक्ति पाने को सभी तीर्थों में फिरे, किन्तु, कहीं भी परशु पर से उनकी वज्रमूठ नहीं खुली यानी उनके मन में से पाप का भान नहीं दूर हुआ। तब पिता ने उनसे कहा कि कैलास के समीप जो ब्रह्मकुण्ड है, उसमें स्नान करने से यह पाप छूट जायगा। निदान, परशुराम हिमालय पर चढ़कर कैलास पहुँचे और ब्रह्मकुण्ड में उन्होंने स्नान किया। ब्रह्मकुण्ड में डुबकी लगाते ही परशु उनके हाश से छूट कर गिर गया अर्थात् उनका मन पाप-मुक्त हो गया। तीर्थ को इतना जाग्रत देखकर परशुराम के मन में यह भाव जगा कि इस कुण्ड के पवित्र जल को पृथ्वी पर उतार देना चाहिए। अतएव, उन्होंने पर्वत काट कर कुण्ड से एक धारा निकाली, जिसका नाम, ब्रह्मकुण्ड से निकलने के कारण, ब्रह्मपुत्र हुआ। ब्रह्मकुण्ड का एक नाम लोहित-कुण्ड भी मिलता है। एक जगह यह भी लिखा है कि ब्रह्मपुत्र की धारा परशुराम ने ब्रह्मकुण्ड से ही निकाली थी, किन्तु, आगे चलकर वह धारा लोहित-कुण्ड नामक एक अन्य कुण्ड में समा गयी। परशुराम ने उस कुण्ड से भी धारा को आगे निकाला, इसलिए, ब्रह्मपुत्र का एक नाम लोहित भी मिलता है। स्वयं कालिदास ने ब्रह्मपुत्र को लोहित नाम से ही अभिहित किया है। और जहाँ ब्रह्मपुत्र नदी पर्वत से पृथ्वी पर अवतीर्ण होती है, वहाँ आज भी परशुराम-कुण्ड मौजूद है, जो हिन्दुओं को परम पवित्र तीर्थ माना जाता है। लोहित में गिर कर जब परशुराम का कुठार-पाप-मुक्त हो गया, तब उस कुठार से उन्होंने एक सौ वर्ष तक लड़ाइयाँ लड़ीं और समन्तपंचक में पाँच शोणित-ह्रद बना कर उन्होंने पितरों का तर्पण किया। जब उनका प्रतिशोध शान्त हो गया, उन्होंने कोंकण के पास पहुँच कर अपना कुठार समुद्र में फेंक दिया और वे नवनिर्माण में प्रवृत्त हो गये। भारत का वह भाग, जो अब कोंकण और केरल कहलाता है, भगवान् परशुराम का ही बसाया हुआ है। लोहित भारतवर्ष का बड़ा ही पवित्र भाग है। पुरा काल में वहाँ परशुराम का पाप-मोचन हुआ था। आज एक बार फिर लोहित में ही भारतवर्ष का पाप छूटा है। इसीलिए, भविष्य मुझे आशा से पूर्ण दिखाई देता है।[1]
हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !
जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा। -रामधारी सिंह ‘दिनकर’
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ परशुराम की प्रतीक्षा (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख