"अशाँत कस्बा -अनूप सेठी": अवतरणों में अंतर
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{{जगत में मेला}} | {{जगत में मेला}} | ||
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'''एक''' | '''एक''' | ||
आएगी सीढ़ियों से धूप | आएगी सीढ़ियों से धूप | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 47: | ||
हर जाड़े में शिखर लेटेंगे | हर जाड़े में शिखर लेटेंगे | ||
बर्फ़ की चादरें ओढ़कर | |||
पेड़ गाढ़े हरे पत्तों को लपेटकर | पेड़ गाढ़े हरे पत्तों को लपेटकर | ||
बैठे रहेंगे घास पर गुमसुम | बैठे रहेंगे घास पर गुमसुम | ||
पंक्ति 59: | पंक्ति 57: | ||
पहाड़ी कस्बा सोएगा रोज रात | पहाड़ी कस्बा सोएगा रोज रात | ||
सैलानी दो चार दिन रुकेंगे | सैलानी दो चार दिन रुकेंगे | ||
अलसाए | अलसाए बाज़ार में टहलती रहेगी ज़िंदगी | ||
सफेद फाहों में चाहे धसक जाए चाँद | सफेद फाहों में चाहे धसक जाए चाँद | ||
पंक्ति 71: | पंक्ति 69: | ||
'''दो''' | '''दो''' | ||
ज़िले के दफ़्तर नौकरियाँ बजाते रहेंगे | |||
ज़िले के | |||
कागजों पर आंकड़ों में खुशहाल होगा जिला | कागजों पर आंकड़ों में खुशहाल होगा जिला | ||
आस-पास के गाँवों से आकर | आस-पास के गाँवों से आकर | ||
कुछ लोग कचहरियों में बैठे रहेंगे दिनों दिन | कुछ लोग कचहरियों में बैठे रहेंगे दिनों दिन | ||
कुछ बजाजों से कपड़ा | कुछ बजाजों से कपड़ा ख़रीदेंगे | ||
लौटते हुए गोभी का फूल ले जाएँगे | लौटते हुए गोभी का फूल ले जाएँगे | ||
पंक्ति 107: | पंक्ति 104: | ||
कुछ को सरकार बागवानी सिखाएगी | कुछ को सरकार बागवानी सिखाएगी | ||
कुछ खस्सी हो जाएंगे सरकारी सेवा में | कुछ खस्सी हो जाएंगे सरकारी सेवा में | ||
कुछ | कुछ फ़ौज से बूढ़े होकर लौटेंगे | ||
कुछ टुच्चे बनिए बनेंगे | कुछ टुच्चे बनिए बनेंगे | ||
पंक्ति 113: | पंक्ति 110: | ||
कुछ बसों में बैठकर मोड़ों से ओझल हो जाएंगे | कुछ बसों में बैठकर मोड़ों से ओझल हो जाएंगे | ||
न भूलेंगे न लौट पाएंगे | न भूलेंगे न लौट पाएंगे | ||
धूल उड़ाते हुए | धूल उड़ाते हुए तक़रीबन हर कोई सीखेगा | ||
दाल भात खाके डकार लेना | दाल भात खाके डकार लेना | ||
सोना और मगन रहना | सोना और मगन रहना | ||
पंक्ति 132: | पंक्ति 129: | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
17:09, 30 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
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