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'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक अर्थ में यह वेदवाङ्मय से इतर ग्रन्थों, यथा पाणिनि के व्याकरण, श्रौत, [[गृह्यसूत्र]] एवं [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]], [[महाभारत]], मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है। किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है।<ref>श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृति:। मनुस्मृति, 2।10</ref>  [[तैत्तिरीय आरण्यक]] में भी 'स्मृति' शब्द आया है<ref>तैत्तिरीय आरण्यक, 1.2</ref> गौतम<ref>गौतम, 1.2</ref> तथा वसिष्ठ<ref>वसिष्ठ, 1.4</ref> ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है।  
'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक अर्थ में यह वेदवाङ्मय से इतर ग्रन्थों, यथा पाणिनि के व्याकरण, श्रौत, [[गृह्यसूत्र]] एवं [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]], [[महाभारत]], मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है। किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है।<ref>श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृति:। मनुस्मृति, 2।10</ref>  [[तैत्तिरीय आरण्यक]] में भी 'स्मृति' शब्द आया है<ref>तैत्तिरीय आरण्यक, 1.2</ref> गौतम<ref>गौतम, 1.2</ref> तथा वसिष्ठ<ref>वसिष्ठ, 1.4</ref> ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है।  
==धर्मशास्त्रों का उल्लेख==
==धर्मशास्त्रों का उल्लेख==
आरम्भ में स्मृति-ग्रन्थ कम ही थे। गौतम<ref>गौतम, 11.19</ref> ने मनु को छोड़कर किसी अन्य स्मृतिकार का नाम नहीं लिया है; यद्यपि उन्होंने धर्मशास्त्रों का उल्लेख किया है। [[बौधायन धर्मसूत्र|बौधायन]] ने अपने को छोड़कर सात धर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं- औपजंघनि, कात्य, काश्यप, [[गौतम धर्मसूत्र|गौतम]], प्रजापति, मौद्गल्य एवं [[हारीत धर्मसूत्र|हारीत]]। [[वासिष्ठ धर्मसूत्र|वासिष्ठ]] ने केवल पाँच नाम गिनाये हैं-- गौतम, प्रजापति, मनु, [[यमराज|यम]] एवं हारीत। [[आपस्तम्ब धर्मसूत्र|आपस्तम्ब]] ने दस नाम लिखे हैं, जिनमें एक, कुणिक, पुष्करसादि केवल व्यक्ति-नाम हैं। मनु ने अपने को छोड़कर छ: नाम लिखे हैं-[[अत्रि]], उतथ्य के पुत्र, [[भृगु]], [[वसिष्ठ]], वैखानस (या विखनस) एवं शौनक। याज्ञवल्क्य ने सर्वप्रथम एक स्थान पर 20 धर्मवक्याओं के नाम दिये हैं जिनमें वे स्वयं एवं शंख तथा लिखित दो पृथक्-पृथक् व्यक्ति के रूप में सम्मिलित हैं। याज्ञवल्क्य ने बौधायन का नाम छोड़ दिया है। पराशर ने अपने को छोड़कर 19 नाम गिनाये हैं। किन्तु यज्ञवल्क्य एवं पराशर की सूची में कुछ अन्तर है। [[पराशर]] ने [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]], यम एवं [[व्यास]] को छोड़ दिया है किन्तु [[कश्यप]], [[गार्ग्य]] एवं [[प्रचेता]] के नाम सम्मिलित कर लिये हैं।
आरम्भ में स्मृति-ग्रन्थ कम ही थे। गौतम<ref>गौतम, 11.19</ref> ने मनु को छोड़कर किसी अन्य स्मृतिकार का नाम नहीं लिया है; यद्यपि उन्होंने धर्मशास्त्रों का उल्लेख किया है। [[बौधायन धर्मसूत्र|बौधायन]] ने अपने को छोड़कर सात धर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं- औपजंघनि, कात्य, काश्यप, [[गौतम धर्मसूत्र|गौतम]], प्रजापति, मौद्गल्य एवं [[हारीत धर्मसूत्र|हारीत]]। [[वासिष्ठ धर्मसूत्र|वासिष्ठ]] ने केवल पाँच नाम गिनाये हैं-- गौतम, प्रजापति, मनु, [[यमराज|यम]] एवं हारीत। [[आपस्तम्ब धर्मसूत्र|आपस्तम्ब]] ने दस नाम लिखे हैं, जिनमें एक, कुणिक, पुष्करसादि केवल व्यक्ति-नाम हैं। मनु ने अपने को छोड़कर छ: नाम लिखे हैं-[[अत्रि]], [[उतथ्य]] के पुत्र, [[भृगु]], [[वसिष्ठ]], वैखानस (या विखनस) एवं शौनक। याज्ञवल्क्य ने सर्वप्रथम एक स्थान पर 20 धर्मवक्याओं के नाम दिये हैं जिनमें वे स्वयं एवं शंख तथा लिखित दो पृथक्-पृथक् व्यक्ति के रूप में सम्मिलित हैं। याज्ञवल्क्य ने बौधायन का नाम छोड़ दिया है। पराशर ने अपने को छोड़कर 19 नाम गिनाये हैं। किन्तु यज्ञवल्क्य एवं पराशर की सूची में कुछ अन्तर है। [[पराशर]] ने [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]], यम एवं [[व्यास]] को छोड़ दिया है किन्तु [[कश्यप]], [[गार्ग्य]] एवं [[प्रचेता]] के नाम सम्मिलित कर लिये हैं।


==धर्म-संहिता==
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==काल-निर्णय==
==काल-निर्णय==
उपर्युक्त स्मृतियों के अतिरिक्त अन्य 400 ई. से 1000 ई. के बीच की हैं। सबका काल-निर्णय सरल नहीं है। कुछ तो प्राचीन सूत्रों के पद्यों में संशोधन मात्र हैं, यथा शंख। कभी-कभी दो या तीन स्मृतियाँ एक ही नाम के साथ चलती हैं, यथा शातातप, हारीत, अत्रि। कुछ में तो पूर्णरूपेण साम्प्रदायिकता पायी जाती है, यथा हारीतस्मृति, जो वैष्णव है। कुछ स्मृतियों के प्रणेता हैं प्रमुख स्मृतिकार; किन्तु वृद्ध, बृहत् एवं लघु की उपाधियों के साथ, यथा वृद्ध-याज्ञवल्क्य, वृद्ध-गार्ग्य, वृद्ध-मनु, वृद्ध-वसिष्ठ, बृहत्-पराशर आदि।
उपर्युक्त स्मृतियों के अतिरिक्त अन्य 400 ई. से 1000 ई. के बीच की हैं। सबका काल-निर्णय सरल नहीं है। कुछ तो प्राचीन सूत्रों के पद्यों में संशोधन मात्र हैं, यथा शंख। कभी-कभी दो या तीन स्मृतियाँ एक ही नाम के साथ चलती हैं, यथा शातातप, हारीत, अत्रि। कुछ में तो पूर्णरूपेण साम्प्रदायिकता पायी जाती है, यथा हारीतस्मृति, जो वैष्णव है। कुछ स्मृतियों के प्रणेता हैं प्रमुख स्मृतिकार; किन्तु वृद्ध, बृहत् एवं लघु की उपाधियों के साथ, यथा वृद्ध-याज्ञवल्क्य, वृद्ध-गार्ग्य, वृद्ध-मनु, वृद्ध-वसिष्ठ, बृहत्-पराशर आदि।
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10:57, 4 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक अर्थ में यह वेदवाङ्मय से इतर ग्रन्थों, यथा पाणिनि के व्याकरण, श्रौत, गृह्यसूत्र एवं धर्मसूत्रों, महाभारत, मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है। किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है।[1] तैत्तिरीय आरण्यक में भी 'स्मृति' शब्द आया है[2] गौतम[3] तथा वसिष्ठ[4] ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है।

धर्मशास्त्रों का उल्लेख

आरम्भ में स्मृति-ग्रन्थ कम ही थे। गौतम[5] ने मनु को छोड़कर किसी अन्य स्मृतिकार का नाम नहीं लिया है; यद्यपि उन्होंने धर्मशास्त्रों का उल्लेख किया है। बौधायन ने अपने को छोड़कर सात धर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं- औपजंघनि, कात्य, काश्यप, गौतम, प्रजापति, मौद्गल्य एवं हारीतवासिष्ठ ने केवल पाँच नाम गिनाये हैं-- गौतम, प्रजापति, मनु, यम एवं हारीत। आपस्तम्ब ने दस नाम लिखे हैं, जिनमें एक, कुणिक, पुष्करसादि केवल व्यक्ति-नाम हैं। मनु ने अपने को छोड़कर छ: नाम लिखे हैं-अत्रि, उतथ्य के पुत्र, भृगु, वसिष्ठ, वैखानस (या विखनस) एवं शौनक। याज्ञवल्क्य ने सर्वप्रथम एक स्थान पर 20 धर्मवक्याओं के नाम दिये हैं जिनमें वे स्वयं एवं शंख तथा लिखित दो पृथक्-पृथक् व्यक्ति के रूप में सम्मिलित हैं। याज्ञवल्क्य ने बौधायन का नाम छोड़ दिया है। पराशर ने अपने को छोड़कर 19 नाम गिनाये हैं। किन्तु यज्ञवल्क्य एवं पराशर की सूची में कुछ अन्तर है। पराशर ने बृहस्पति, यम एवं व्यास को छोड़ दिया है किन्तु कश्यप, गार्ग्य एवं प्रचेता के नाम सम्मिलित कर लिये हैं।

धर्म-संहिता

कुभारिल के तन्त्रवार्तिक में 18 धर्म-संहिताओं के नाम आये हैं। विश्वरूप ने वृद्ध-याज्ञवल्क्य के श्लोक को उद्धृत कर याज्ञवल्क्य की सूची में दस नाम जोड़ दिये हैं। चतुविंशतिमत नामक ग्रन्थ में 24 धर्नशास्त्रकारों के नाम उल्लिखित हैं। इस सूची में याज्ञवल्क्य वाली सूची के दो नाम, यथा कात्यायन एवं लिखित छूट गये हैं, किन्तु छ: नाम अधिक हैं, यथा गार्ग्य, नारद, बौधायन, वत्स, विश्वामित्र, शंख (शांख्यायन)। अंगिरा ने जिसे स्मृतिचन्द्रिका, हेमाद्रि, सरस्वती विलास तथा अन्य ग्रन्थों ने उद्धृत किया है, उपस्मृतियों के नाम भी गिनाये हैं। एक अन्य स्मृति का नाम है षट्त्रिंशन्मत, जिसे मिताक्षरा, अपरार्क तथा अन्य ग्रन्थों ने उल्लिखित किया है। पैठीनसि ने 36 स्मृतियों के नाम गिनाये हैं। अपरार्क के अनुसार भविष्य पुराण में 36 स्मृतियों के नाम आये हैं। वृद्ध-गौतमस्मृति में 57 धर्मशास्त्रों के नाम आये हैं। वीरमित्रोदय में उद्धृत प्रयोगपारिजात ने 18 मुख्य स्मृतियों, 18 उपस्मृतियों तथा 21 अन्य स्मृतिकारों के नाम लिये हैं।[6]
मनुस्मृति के अतिरिक्त निम्न स्मृतियाँ हैं-

  • व्यास स्मृति,
  • लघु विष्णु स्मृति,
  • आपस्तम्ब स्मृति,
  • वसिष्ठ स्मृति,
  • पाराशर स्मृति,
  • वृहत्पाराशर स्मृति,
  • अत्रि स्मृति,
  • लघुशंख स्मृति,
  • विश्वामित्र स्मृति,
  • यम स्मृति,
  • लघु स्मृति,
  • बृहद्यम स्मृति,
  • लघुशातातप स्मृति,
  • वृद्ध शातातप स्मृति,
  • शातातप स्मृति,
  • वृद्ध गौतम स्मृति,
  • बृहस्पति स्मृति,
  • याज्ञवलक्य स्मृति और
  • बृहद्योगि याज्ञवल्क्य स्मृति।

गद्य-पद्य स्मृति

यदि बाद में आने वाले निबन्धों, यथा निर्णयसिन्धु, नीलकण्ड एवं वीरमित्रोदय की मयूख-सूचियों को देखा जाय तो स्मृतियों की संख्या लगभग 100 हो जायगी। विश्वसनीय स्मृतियाँ कई युगों की कृतियाँ हैं। कुछ तो पूर्णतया गद्य में, कुछ मिश्रित अर्थात् गद्य-पद्य में हैं और अधिकांश पद्य में हैं। कुछ अति प्राचीन हैं और ईसा से कई सौ वर्ष पूर्व प्रणीत हूई थीं, यथा गौतम, आपस्तम्ब, बौधायन के धर्मसूत्र एवं मनुसृति। कुछ का प्रणयन ईसा की प्रथम शताब्दी में हुआ, यथा याज्ञवल्क्य, पराशर एवं नारद।

काल-निर्णय

उपर्युक्त स्मृतियों के अतिरिक्त अन्य 400 ई. से 1000 ई. के बीच की हैं। सबका काल-निर्णय सरल नहीं है। कुछ तो प्राचीन सूत्रों के पद्यों में संशोधन मात्र हैं, यथा शंख। कभी-कभी दो या तीन स्मृतियाँ एक ही नाम के साथ चलती हैं, यथा शातातप, हारीत, अत्रि। कुछ में तो पूर्णरूपेण साम्प्रदायिकता पायी जाती है, यथा हारीतस्मृति, जो वैष्णव है। कुछ स्मृतियों के प्रणेता हैं प्रमुख स्मृतिकार; किन्तु वृद्ध, बृहत् एवं लघु की उपाधियों के साथ, यथा वृद्ध-याज्ञवल्क्य, वृद्ध-गार्ग्य, वृद्ध-मनु, वृद्ध-वसिष्ठ, बृहत्-पराशर आदि।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृति:। मनुस्मृति, 2।10
  2. तैत्तिरीय आरण्यक, 1.2
  3. गौतम, 1.2
  4. वसिष्ठ, 1.4
  5. गौतम, 11.19
  6. 18 मुख्य स्मृतिकार हैं-मनु, बृहस्पति, दक्ष, गौतम, यम, अंगिरा, योगीश्वर, प्रचेता, शातातप, पराशर, संवर्त, उशना, शंख, लिखित, अत्रि, विष्णु, आपस्तम्ब, हारीत।
    • उपस्मृतियों के लेखक हैं- नारद: पुलहौ गार्ग्य: पुलस्त्य: शौनक: कतु:। बौधायनो जातकर्णो विश्वामित्र: पितामह:॥
      जाबालिर्नाचिकेतश्च स्कन्दो लौगाक्षिकश्यपौ। व्यास: सनत्कुमारश्च शन्तनुर्जनकस्तथा॥
      व्याघ्र: कात्यायनश्चैव जातूकर्ण्य: कपिञ्जल:। बौधायनश्च काणादो विश्वामित्रस्तचैव च। पैठोनसिर्गोभिलश्चेत्युपस्मृतिविधायका:॥
      अन्य 21 स्मृतिकार हैं-
      वसिष्ठो नारदश्चैव सुमन्तुश्च पितामह:। विष्णु: कार्ष्णजिनि: सत्यव्रतो गार्ग्यश्च देवल:॥
      जमदग्निर्भरद्वाज: पुलस्त्य; पुलह: ॠतु:। आत्रेयश्च गवेयश्च मरीचिर्वत्स एव च॥
      पारस्करश्चर्ष्यशृङो वैजवापस्तथैव च। इत्येते स्मृतिकर्तार एकविंशतिरोरिता:॥
      वीरमित्रोदय, परिभाषा प्र्., पृष्ठ 18। धर्म 6

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