"श्रेयांसनाथ": अवतरणों में अंतर
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*फाल्गुन कृष्ण पक्ष की [[त्रयोदशी]] को भगवान श्रेयांसनाथ ने सिंहपुरी में दीक्षा ग्रहण की थी। | *फाल्गुन कृष्ण पक्ष की [[त्रयोदशी]] को भगवान श्रेयांसनाथ ने सिंहपुरी में दीक्षा ग्रहण की थी। | ||
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् इन्होनें जब दो महीने तक कठोर तप किया, तब सिंहपुरी में ही 'तंदूक' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई। | *दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् इन्होनें जब दो महीने तक कठोर तप किया, तब सिंहपुरी में ही 'तंदूक' वृक्ष के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई। | ||
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13:42, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
श्रेयांसनाथ जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर थे। श्रेयांसनाथ जी का जन्म सिंहपुरी में इक्ष्वाकु वंश के राजा विष्णुराज की पत्नी विष्णु देवी के गर्भ से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को श्रवण नक्षत्र में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण जबकि चिह्न गेंडा था।
- श्रेयांसनाथ के यक्ष का नाम कुमार और यक्षिणी का नाम महाकाली था।
- जैन मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 76 थी, जिनमें कच्छप स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान श्रेयांसनाथ ने सिंहपुरी में दीक्षा ग्रहण की थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् इन्होनें जब दो महीने तक कठोर तप किया, तब सिंहपुरी में ही 'तंदूक' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- श्रावण कृष्ण पक्ष की तृतीया को श्रेयांसनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया.[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री श्रेयांसनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।
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