निर्वाण
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निर्वाण संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ विलोपन या बुझा देना होता है। पालि भाषा में निब्बान, भारतीय धार्मिक चिंतन में ध्यान विधाओं का परम लक्ष्य है। यह अवधारणा सबसे ज़्यादा बौद्ध धर्म की विशिष्टता है, जिसमें यह कामनाओं के अंत तथा आत्मचेतना के माध्यम से इंद्रियातीय मुक्ति को इंगित करती है। बौद्ध मानवीय स्थिती के विश्लेषण के अनुसार, आत्मकेंद्रण के मोह और इनसे उत्पन्न कामनाएँ मनुष्य को पुनर्जन्म के सतत चक्र तथा इसके दु:ख के बंधन में बांधे रखती हैं। इन बंधनों से मुक्ति ही बोधप्राप्ति या निर्वाण का अनुभव है।
पुनर्जन्म में मुक्ति का अर्थ तत्काल दैहिक मृत्यु नहीं है, एक अर्हत[1] या एक बुद्ध की मृत्यु को सामान्यत: परिनिर्वाण या संपूर्ण निर्वाण कहते हैं। महायान या एक बुद्ध परंपरा के अनुसार, बोधिसत्व[2] निर्वाण प्राप्ति को टालते रहते हैं, ताकि वह करुणावश अन्य लोगों की मुक्ति के लिए काम करते रहें।
बौद्ध धर्म के विभिन्न मतों में निर्वाण की अलग-अलग कल्पना है। थेरवाद परंपरा में यह शांति और मुक्ति है। महायान परंपर में निर्वाण की तुलना शून्यता, धर्मकाया[3] तथा धर्म-धातु[4] से की गई है।