"हो तुम ख़ुद की चाहतों में लिपायमान -वंदना गुप्ता": अवतरणों में अंतर
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मत मढो हम पर कर्म और भाग्य की कुंठाएं | मत मढो हम पर कर्म और भाग्य की कुंठाएं | ||
ये तो हैं बस तुम्हारे | ये तो हैं बस तुम्हारे हृदय की विडंबनायें | ||
जिनसे कुंठित हो तुम थोप देते हो परिणाम | जिनसे कुंठित हो तुम थोप देते हो परिणाम | ||
और परवश हो भुगतने को होते हैं हम मजबूर | और परवश हो भुगतने को होते हैं हम मजबूर |
09:51, 24 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
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बहुत उलटफेर किये तुमने |
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