"वैदेही वनवास सप्तदश सर्ग": अवतरणों में अंतर
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उनमें भरी हुई दिखलाती थी व्यथा॥ | उनमें भरी हुई दिखलाती थी व्यथा॥ | ||
खग-कलरव में कलरवता मिलती न थी। | खग-कलरव में कलरवता मिलती न थी। | ||
बोल-बोल वे कहते थे | बोल-बोल वे कहते थे दु:ख की कथा॥13॥ | ||
लतिकायें थीं बड़ी-बलायें बन गईं। | लतिकायें थीं बड़ी-बलायें बन गईं। | ||
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पर दुख-कातरता है प्यारी-सहचरी॥23॥ | पर दुख-कातरता है प्यारी-सहचरी॥23॥ | ||
बड़े-बड़े | बड़े-बड़े दु:ख के अवसर आये तदपि। | ||
कभी नहीं दिखलाई वे मुझको दुखी॥ | कभी नहीं दिखलाई वे मुझको दुखी॥ | ||
मेरा मुख-अवलोके दिन था बीतता। | मेरा मुख-अवलोके दिन था बीतता। | ||
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कभी दिखाते वे ऐसे कुछ भाव थे। | कभी दिखाते वे ऐसे कुछ भाव थे। | ||
जिनसे उर में उठती | जिनसे उर में उठती दु:ख की आग बल॥ | ||
उनकी खग-मृग तक की प्यारी प्रीति को। | उनकी खग-मृग तक की प्यारी प्रीति को। | ||
बतलाते थे मृग-शावक के दृग-सजल॥69॥ | बतलाते थे मृग-शावक के दृग-सजल॥69॥ |
14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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पहन हरित-परिधान प्रभूत-प्रफुल्ल हो। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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