"वैदेही वनवास एकादश सर्ग": अवतरणों में अंतर
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ने कभी नहीं कलपाया॥ | ने कभी नहीं कलपाया॥ | ||
उनके हाथों से किसने। | उनके हाथों से किसने। | ||
कब कहाँ व्यर्थ | कब कहाँ व्यर्थ दु:ख पाया॥40॥ | ||
पुर नगर ग्राम कब उजड़े। | पुर नगर ग्राम कब उजड़े। | ||
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थीं आप जिन्हें नित करती॥ | थीं आप जिन्हें नित करती॥ | ||
सच्चे जी से वे सारे। | सच्चे जी से वे सारे। | ||
दुखियों का | दुखियों का दु:ख हैं हरती॥81॥ | ||
माताओं की सेवायें। | माताओं की सेवायें। |
14:01, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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बादल थे नभ में छाये। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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