"ललिता षष्ठी": अवतरणों में अंतर
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'''ललिता षष्ठी''' का पर्व [[भाद्रपद|भाद्रपद माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] तिथि को मनाया जाता है। यह [[हिन्दू]] धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। इस व्रत का कथन [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] ने स्वयं किया है। भगवन कहते हैं कि- "भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को किया गया यह व्रत शुभ सौभाग्य एवं योग्य संतान को प्रदान करने वाला होता है।" [[पंचांग|हिन्दू पंचांग]] अनुसार शक्तिस्वरूपा [[ललिता सखी|देवी ललिता]] को समर्पित 'ललिता षष्ठी' शुक्ल पक्ष के सुअवसर पर भक्तगण व्रत रखते हैं। | |||
*एक नवीन बाँस की फुफेली (पात्र) में किसी नदी का बालू एकत्र करके उससे पाँच पिण्ड बनाकर उस पर ललिता देवी की पूजा विभिन्न प्रकार के 28 या 108 पुष्पों एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों के नैवेद्य से की जाती है। उस दिन सखियों के साथ रात्रि में जागरण करना चाहिए। | *एक नवीन [[बाँस]] की फुफेली (पात्र) में किसी नदी का बालू एकत्र करके उससे पाँच पिण्ड बनाकर उस पर ललिता देवी की पूजा विभिन्न प्रकार के 28 या 108 पुष्पों एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों के नैवेद्य से की जाती है। उस दिन सखियों के साथ रात्रि में जागरण करना चाहिए। | ||
*[[सप्तमी]] को सभी नैवेद्य किसी ब्राह्मण को अर्पित, कुमारियों को भोजन, 5 या 10 ब्राह्मण गृहणियों को भोजन कराना | *[[सप्तमी]] को सभी नैवेद्य किसी [[ब्राह्मण]] को अर्पित कर, कुमारियों को भोजन, 5 या 10 ब्राह्मण गृहणियों को भोजन कराना चाहिए तथा 'ललिता मुझ पर प्रसन्न होवें' के साथ उनकी विदाई करनी चाहिए।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 617-620, भविष्योत्तरपुराण 41|1-18 से उद्धरण</ref> | ||
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ललिता षष्ठी का पर्व भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। इस व्रत का कथन भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं किया है। भगवन कहते हैं कि- "भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को किया गया यह व्रत शुभ सौभाग्य एवं योग्य संतान को प्रदान करने वाला होता है।" हिन्दू पंचांग अनुसार शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित 'ललिता षष्ठी' शुक्ल पक्ष के सुअवसर पर भक्तगण व्रत रखते हैं।
- एक नवीन बाँस की फुफेली (पात्र) में किसी नदी का बालू एकत्र करके उससे पाँच पिण्ड बनाकर उस पर ललिता देवी की पूजा विभिन्न प्रकार के 28 या 108 पुष्पों एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों के नैवेद्य से की जाती है। उस दिन सखियों के साथ रात्रि में जागरण करना चाहिए।
- सप्तमी को सभी नैवेद्य किसी ब्राह्मण को अर्पित कर, कुमारियों को भोजन, 5 या 10 ब्राह्मण गृहणियों को भोजन कराना चाहिए तथा 'ललिता मुझ पर प्रसन्न होवें' के साथ उनकी विदाई करनी चाहिए।[1]
- 'व्रतरत्नाकर'[2] का कथन है कि यह गुर्जर देश में अति प्रसिद्ध है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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