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'''जटातीर्थ''' [[रामेश्वरम]] ([[चेन्नई]]) के निकट स्थित एक कुंड है। कहा जाता है कि [[लंका]] से युद्ध के पश्चात [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] ने अपने केशों का 'प्रक्षालन'<ref>पूर्ण सफाई</ref> इसी स्थान पर किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=353|url=}}</ref>
'''जटातीर्थ''' [[रामेश्वरम]] ([[चेन्नई]]) के निकट स्थित एक कुंड है। कहा जाता है कि [[लंका]] से युद्ध के पश्चात् [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] ने अपने केशों का 'प्रक्षालन'<ref>पूर्ण सफाई</ref> इसी स्थान पर किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=353|url=}}</ref> जटातीर्थ में जटाशंकर [[शिव]] का एक मंदिर भी है।


*जटातीर्थ में जटाशंकर [[शिव]] का एक मंदिर भी है।
*[[लंका]] के राजा [[रावण]] के मारे जाने पर जिस जल में श्रीराम ने अपनी जटाएँ धोयी थीं, वही जटातीर्थ कहलाया।
*[[गंधमादन पर्वत]] पर स्वयं भगवान शिव ने अज्ञान के नाश हेतु इस तीर्थ को प्रकट किया था।
*[[व्यास]] के कहने से [[शुकदेव]] यहाँ गये थे। [[भृगु]] भी यहाँ आकर अपनी बुद्धि को शुद्ध कर आये थे।<ref>स्कन्दपुराण, ब्रह्मपुराण सेतु-माहात्म्य</ref>
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*यहाँ से एक मील दक्षिण की ओर जंगल में [[काली देवी|देवी काली]] का अति प्राचीन मंदिर भी है।


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07:48, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

जटातीर्थ रामेश्वरम (चेन्नई) के निकट स्थित एक कुंड है। कहा जाता है कि लंका से युद्ध के पश्चात् रामचन्द्रजी ने अपने केशों का 'प्रक्षालन'[1] इसी स्थान पर किया था।[2] जटातीर्थ में जटाशंकर शिव का एक मंदिर भी है।

  • लंका के राजा रावण के मारे जाने पर जिस जल में श्रीराम ने अपनी जटाएँ धोयी थीं, वही जटातीर्थ कहलाया।
  • गंधमादन पर्वत पर स्वयं भगवान शिव ने अज्ञान के नाश हेतु इस तीर्थ को प्रकट किया था।
  • व्यास के कहने से शुकदेव यहाँ गये थे। भृगु भी यहाँ आकर अपनी बुद्धि को शुद्ध कर आये थे।[3]
  • यहाँ से एक मील दक्षिण की ओर जंगल में देवी काली का अति प्राचीन मंदिर भी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूर्ण सफाई
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 353 |
  3. स्कन्दपुराण, ब्रह्मपुराण सेतु-माहात्म्य

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