"नृसिंह जयंती": अवतरणों में अंतर
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'''नृसिंह जयंती''' [[वैशाख मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को मनाई जाती है। इस जयंती का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख [[देवता]] हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान [[विष्णु]] ने '[[नृसिंह अवतार]]' लेकर [[दैत्य|दैत्यों]] के राजा [[हिरण्यकशिपु]] का वध किया था। भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई [[अवतार]] लिए तथा [[धर्म]] की स्थापना की। | '''नृसिंह जयंती''' [[वैशाख मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को मनाई जाती है। इस जयंती का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख [[देवता]] हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान [[विष्णु]] ने '[[नृसिंह अवतार]]' लेकर [[दैत्य|दैत्यों]] के राजा [[हिरण्यकशिपु]] का वध किया था। भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई [[अवतार]] लिए तथा [[धर्म]] की स्थापना की। | ||
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प्राचीन काल में [[कश्यप]] नामक [[ऋषि]] हुए थे, उनकी पत्नी का नाम [[दिति]] था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का '[[हिरण्यकशिपु]]' था। हिरण्याक्ष को भगवान [[विष्णु]] ने [[पृथ्वी]] की रक्षा हेतु [[वराह अवतार|वराह]] रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। [[देवता]] निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे। | प्राचीन काल में [[कश्यप]] नामक [[ऋषि]] हुए थे, उनकी पत्नी का नाम [[दिति]] था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का '[[हिरण्यकशिपु]]' था। हिरण्याक्ष को भगवान [[विष्णु]] ने [[पृथ्वी]] की रक्षा हेतु [[वराह अवतार|वराह]] रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। [[देवता]] निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे। | ||
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अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम '[[प्रह्लाद]]' रखा गया। एक [[राक्षस]] कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का [[भक्त]] था। वह अपने [[पिता]] हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था। | अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी [[कयाधु]] ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम '[[प्रह्लाद]]' रखा गया। एक [[राक्षस]] कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का [[भक्त]] था। वह अपने [[पिता]] हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था। | ||
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भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन [[होलिका]] की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि [[अग्नि]] उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान [[विष्णु]] की [[पूजा]] करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की [[भक्ति]] से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है। | भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन [[होलिका]] की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि [[अग्नि]] उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान [[विष्णु]] की [[पूजा]] करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की [[भक्ति]] से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है। | ||
==व्रत विधि== | |||
नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवं [[पूजा]]-अर्चना कि जाती है। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर [[स्नान]] आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए, तत्पश्चात् वेद मंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए [[फल]], [[पुष्प]], पंचमेवा, कुमकुम, [[केसर]], [[नारियल]], अक्षत व पीताम्बर रखना चाहिए। [[गंगाजल]], काले तिल, पंच गव्य व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के पश्चात् एकांत में कुश के आसन पर बैठकर [[रुद्राक्ष]] की माला से नृसिंह भगवान के [[मंत्र]] का जप करना चाहिए। इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार [[तिल]], [[स्वर्ण]] तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है। भगवान नृसिंह अपने [[भक्त]] की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। | |||
====मंत्र==== | |||
नृसिंह जयंती के दिन निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए- | |||
<blockquote><poem>1. ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। | |||
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥</poem></blockquote> | |||
<blockquote>2. ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।</blockquote> | |||
इन मंत्रों का जाप करने से समस्त दुखों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है। | |||
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07:50, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
नृसिंह जयंती
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अनुयायी | हिन्दू |
तिथि | वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी |
धार्मिक मान्यता | वैशाख में शुक्ल चतुर्दशी के दिन नृसिंह भगवान का अवतार हुआ था। |
संबंधित लेख | नृसिंह अवतार, नृसिंह द्वादशी, प्रह्लाद |
व्रत लाभा | 'नृसिंह जयंती' पर व्रत करने से समस्त दुखों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है। |
अन्य जानकारी | पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने 'नृसिंह अवतार' लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। |
नृसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस जयंती का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने 'नृसिंह अवतार' लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई अवतार लिए तथा धर्म की स्थापना की।
कथा
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के इस अवतरण की कथा इस प्रकार है-
प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।
भक्त प्रह्लाद का जन्म
अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'प्रह्लाद' रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था। वह अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था।
हिरण्यकशिपु का वध
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
व्रत विधि
नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवं पूजा-अर्चना कि जाती है। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए, तत्पश्चात् वेद मंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखना चाहिए। गंगाजल, काले तिल, पंच गव्य व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के पश्चात् एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से नृसिंह भगवान के मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है। भगवान नृसिंह अपने भक्त की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
मंत्र
नृसिंह जयंती के दिन निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए-
1. ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
2. ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।
इन मंत्रों का जाप करने से समस्त दुखों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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