"तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-6": अवतरणों में अंतर
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14:07, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
- तैत्तिरीयोपनिषद के भृगुवल्ली का यह छठा अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- इस बार तप करने के पश्चात् भृगु मुनि ने जाना कि 'आनन्द' ही 'ब्रह्म' है।
- सब प्राणी इसी से उत्पन्न होते हैं, जीवित रहते हैं और मृत्यु होने पर इसी में समा जाते हैं।
- इस बार वरुण ऋषि ने उसे बताया कि वे 'ब्रह्मज्ञान' से पूर्ण हो गये हैं।
- जिस समय साधक 'ब्रह्म' के 'आनन्द-स्वरूप' को जान जाता है, उस समय वह प्रचुर अन्न, पाचन-शक्ति, प्रजा, पशु, ब्रह्मवर्चस तथा महान् कीर्ति से समप्न्न होकर महान् कहलाता है।
- ऋषि उन्हें बताते हैं कि श्रेष्ठतम 'ब्रह्मविद्या' किसी व्यक्ति-विशेष में स्थित नहीं है।
- यह परम व्योम (आकाश) में स्थित है।
- इसे साधना द्वारा ही जाना जा सकता है।
- कोई भी साधक इसे जान सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली |
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