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बचपन में विनोबा गली में सब बच्चों के साथ खेल रहे थे। वहाँ बातें चली कि अपनी पीढ़ी में कौन-कौन संत बन गये। प्रत्येक बालक ने अपनी पीढ़ी में किसी न किसी पूर्वज का नाम संत के रूप में बताया। अंत में विनोबा जी की बारी आयी। विनोबा ने तब तक कुछ नहीं कहा परन्तु उन्होंने मन-ही-मन दृढ़ संकल्प करके जाहिर किया कि, अगर मेरी पीढ़ी में कोई संत नहीं बना तो मैं स्वयं संत बनकर दिखाऊँगा।  
बचपन में [[विनोबा भावे]] गली में सब बच्चों के साथ खेल रहे थे। वहाँ बातें चली कि अपनी पीढ़ी में कौन-कौन संत बन गये। प्रत्येक बालक ने अपनी पीढ़ी में किसी न किसी पूर्वज का नाम संत के रूप में बताया। अंत में विनोबा जी की बारी आयी। विनोबा ने तब तक कुछ नहीं कहा परन्तु उन्होंने मन-ही-मन दृढ़ संकल्प करके जाहिर किया कि, अगर मेरी पीढ़ी में कोई संत नहीं बना तो मैं स्वयं संत बनकर दिखाऊँगा।  


अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिए उन्होंने प्रखर पुरूषार्थ शुरु कर दिया। लग गये इसकी सिद्धि में और अंत में, एक महान संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। यह है दृढ़संकल्पशक्ति और प्रबल पुरूथार्थ का परिणाम। इसलिए दुर्बल नकारात्मक विचार छोड़कर उच्च संकल्प करके प्रबल पुरूषार्थ में लग जाओ, सामर्थ्य का खजाना तुम्हारे पास ही है। सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी।
अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिए उन्होंने प्रखर पुरुषार्थ शुरु कर दिया। लग गये इसकी सिद्धि में और अंत में, एक महान् संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। यह है दृढ़संकल्पशक्ति और प्रबल पुरुषार्थ का परिणाम। इसलिए दुर्बल नकारात्मक विचार छोड़कर उच्च संकल्प करके प्रबल पुरुषार्थ में लग जाओ, सामर्थ्य का खजाना तुम्हारे पास ही है। सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी।


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14:08, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

कुछ भी असंभव नहीं है -विनोबा भावे
विनोबा भावे
विनोबा भावे
विवरण विनोबा भावे
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक विनोबा भावे के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

बचपन में विनोबा भावे गली में सब बच्चों के साथ खेल रहे थे। वहाँ बातें चली कि अपनी पीढ़ी में कौन-कौन संत बन गये। प्रत्येक बालक ने अपनी पीढ़ी में किसी न किसी पूर्वज का नाम संत के रूप में बताया। अंत में विनोबा जी की बारी आयी। विनोबा ने तब तक कुछ नहीं कहा परन्तु उन्होंने मन-ही-मन दृढ़ संकल्प करके जाहिर किया कि, अगर मेरी पीढ़ी में कोई संत नहीं बना तो मैं स्वयं संत बनकर दिखाऊँगा।

अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिए उन्होंने प्रखर पुरुषार्थ शुरु कर दिया। लग गये इसकी सिद्धि में और अंत में, एक महान् संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। यह है दृढ़संकल्पशक्ति और प्रबल पुरुषार्थ का परिणाम। इसलिए दुर्बल नकारात्मक विचार छोड़कर उच्च संकल्प करके प्रबल पुरुषार्थ में लग जाओ, सामर्थ्य का खजाना तुम्हारे पास ही है। सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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