"राजस्थान की हस्तकला": अवतरणों में अंतर
आरुष परिहार (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "साफा " to "साफ़ा ") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
# [[रंगाई-छपाई कला, राजस्थान|रंगाई व छपाई कला]] | # [[रंगाई-छपाई कला, राजस्थान|रंगाई व छपाई कला]] | ||
# [[चर्म कला, राजस्थान|चर्म कला]] | # [[चर्म कला, राजस्थान|चर्म कला]] | ||
# [[मूर्तिकला | # [[राजस्थानी मूर्तिकला|मूर्तिकला]] | ||
# [[थेवा कला]] | # [[थेवा कला]] | ||
# [[टेराकोटा कला]] | # [[टेराकोटा कला]] | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
* लहरिया, चुनरी व पौमचे जयपुर के प्रसिद्ध है। | * लहरिया, चुनरी व पौमचे जयपुर के प्रसिद्ध है। | ||
* सर्वोत्तम किस्म की बन्धेज के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं | * सर्वोत्तम किस्म की बन्धेज के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं | ||
; | ; साफ़ा - | ||
* बावरा:- पांच रंग युक्त बन्धेज का साफा। | * बावरा:- पांच रंग युक्त बन्धेज का साफा। | ||
* मोठडा - दो रंग युक्त बंधेज का साफा। | * मोठडा - दो रंग युक्त बंधेज का साफा। | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 95: | ||
*[http://rajasthangyan.com/notes_explain.jsp?nid=22 राजस्थान की हस्तकलाऐं] | *[http://rajasthangyan.com/notes_explain.jsp?nid=22 राजस्थान की हस्तकलाऐं] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{राजस्थान की हस्तकला}} | {{राजस्थान की हस्तकला}}{{राजस्थान की कला}} | ||
[[Category:राजस्थान]] | [[Category:राजस्थान]] | ||
[[Category:राजस्थान की संस्कृति]][[Category:हस्तशिल्प कला]][[Category:हस्तशिल्प उद्योग]] | [[Category:राजस्थान की संस्कृति]][[Category:हस्तशिल्प कला]][[Category:हस्तशिल्प उद्योग]] |
12:16, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
राजस्थान की हस्तकला पूरे भारत में प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी से राजस्थान की शिल्पकला में राजपूत प्रशासन का प्रभाव हमें शक्ति और भक्ति के विविध पक्षों द्वारा प्राप्त होता है। जयपुर ज़िले में स्थित आभानेरी का मन्दिर (हर्षत माता का मंदिर), जोधपुर में ओसिया का सच्चियां माता का मन्दिर, जोधपुर संभाग में किराडू का मंदिर, इत्यादि और भिन्न प्रांतों के प्राचीन मंदिर कला के विविध स्वरों की अभिव्यक्ति संलग्न राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डालने वाले स्थापत्य के नमूने हैं। उल्लेखित युग में निर्मित चित्तौड़, कुम्भलगढ़, रणथंभोर, गागरोन, अचलगढ़, गढ़ बिरली (अजमेर का तारागढ़) जालौर, जोधपुर आदि के दुर्ग-स्थापत्य कला में राजपूत स्थापत्य शैली के दर्शन होते हैं। सुरक्षा प्रेरित शिल्पकला इन दुर्गों की विशेषता कही जा सकती है जिसका प्रभाव इनमें स्थित मन्दिर शिल्प-मूर्ति लक्षण एवं भवन निर्माण में आसानी से परिलक्षित है।
राजस्थान की हस्तकलाएँ
- मीनाकारी
- पॉटरी कला
- आला गिल्ला कारीगरी
- मथैरणा कला
- उस्ता कला
- रंगाई व छपाई कला
- चर्म कला
- मूर्तिकला
- थेवा कला
- टेराकोटा कला
- फड़ चित्रांकन
- रमकड़ा कला उद्योग
- तूडिया हस्तशिल्प
- तारकशी कला
- पिछवाई कला
- कोफ्त गिरी
- काष्ठ कला
- कुंदन कला
- पेचवर्क कला
राजस्थानी साड़ियाँ
- फूल-पत्ती की छपाई वाली साड़ियाँ- जोबनेर (जयपुर) में बनाई जाती हैं।
- स्प्रे पेन्टिंग्स की साड़ियाँ - नाथद्वारा (राजसमंद) में बनाई जाती हैं।
- सानिया साड़ियाँ - जालौर में बनाई जाती हैं।
- सूंठ की साड़ियाँ - सवाई माधोपुर में बनाई जाती हैं।
- बंधेज की साड़ियाँ - जोधपुर में बनाई जाती हैं।
- चुनरी, लहरिया व पोमचे - जयपुर में बनाई जाती हैं।
बन्धेज का कार्य
- बन्धेज के कार्य के लिए जयपुर व जोधपुर प्रसिद्ध है।
- लहरिया, चुनरी व पौमचे जयपुर के प्रसिद्ध है।
- सर्वोत्तम किस्म की बन्धेज के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं
- साफ़ा -
- बावरा:- पांच रंग युक्त बन्धेज का साफा।
- मोठडा - दो रंग युक्त बंधेज का साफा।
कढ़ाई एवं कसीदाकारी का कार्य
- इस कार्य के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध है।
- कपड़े पर कांच की कढ़ाई के लिए जैसलमेर, बाड़मेर प्रसिद्ध है।
ज़री-गोटे का कार्य
- ज़री-गोटे के कार्य के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- गोटा-किनारी की बल्कि शैली के लिए खण्डेला (सीकर) प्रसिद्ध है।
- गोटे के प्रकार - लप्पा, लप्पी, लहर, किरण, गोखरू बांकडी, नक्षी, सितारा दबका आदि।
गलीचे, नमदे व दरियां
- गलीचों के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- बीकानेर जेल में वियना तथा फारसी डिजाइन में गलीचे तैयार किए जाते है, जो विष्व प्रसिद्ध है।
- नमदों के लिए टोंक प्रसिद्ध है।
- अजमेर, टोंक, नागौर, जोधपुर ज़िले दरियों के लिए प्रसिद्ध है।
- गांव - सालावस (जोधपुर), टाकला (नागौर), लवाण (दौसा) दरी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
- खेस के लिए चैमूं (जयपुर) प्रसिद्ध है।
- खेसला के लिए लेटाग्राम (जालौर) प्रसिद्ध है।
- लेटागांव को सौ बुनकरों का गांव कहते हैं।
कुट्टी / पेपर पेशी
- कुट्टी / पेपर मेशी कार्य के लिए सांगानेर (जयपुर) प्रसिद्ध है।
अन्य हस्त कलाएँ
- तलवार निर्माण के लिए सिरोही प्रसिद्ध है।
- खेल का सामान के लिए हनुमानगढ़ प्रसिद्ध है।
- कृषि यंत्र के लिए गजसिंहपुर, सांगरिया प्रसिद्ध है।
- आधुनिक कृषि यंत्र के लिए कोटा प्रसिद्ध है।
- गरासियों की फाग के लिए सोजत (पाली) प्रसिद्ध है।
- मेहंदी के लिए सोजत (पाली) प्रसिद्ध है।
- छाते- फालना (पाली) प्रसिद्ध है।
- डूंगरशाही ओढनी के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है।
- नान्दणे (कलात्मक घाघरे) के लिए भीलवाड़ा प्रसिद्ध है।
- पाव रजाई -जयपुर प्रसिद्ध है।
- संगमरमर की मूर्तियां - जयपुर व किशोरी गांव (अलवर) प्रसिद्ध है।
- पशु-पक्षियों का सैट के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- कठपुतली निर्माण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है।
- ऊनी बरड़ी/पट्टू के लिए जैसलमेर प्रसिद्ध है।
- ऊनी लोई के लिए नापासर (बीकानेर) प्रसिद्ध है।
- सुराही, मटके के लिए रामसर (बीकानेर) प्रसिद्ध है।
- बादला नामक बर्तन (जिंक निर्मित) के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है।
- लाख के सामान के लिए जोधपुर, उदयपुर, जयपुर प्रसिद्ध है।
- काली, लाल व हरी चूडियों के लिए जोधुपर प्रसिद्ध है।
- हाथी दांत की चूडियों के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- चांदी का कार्य के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है।
- सुक्ष्म चित्रण (मिनिएचर पेंटिंग्स) के लिए जयपुर, किशनगढ़ प्रसिद्ध है।
- धातु के कार्य के लिए नागौर प्रसिद्ध है।
- पीतल पर मुरादाबादी शैली का कार्य करने के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- कांसे के बर्तन के लिए भीलवाडा प्रसिद्ध है।
- गोल्डन पेंटिग्स के लिए नागौर प्रसिद्ध है।
- लकड़ी के झुलों के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है।
- लकडी के फर्नीचर पर चित्रकारी के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है।
- मृण मूर्तियों के लिए मोलेला (राजसमंद) प्रसिद्ध है।
- बकरी के बालों की जट पटिृयों के लिए जसोल (बाड़मेर) प्रसिद्ध है।
शिल्प ग्राम
राजस्थान राज्य के दो शिल्पग्राम निम्नलिखित हैं-
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख