"भारत का संविधान- दसवीं अनुसूची": अवतरणों में अंतर

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;3. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का दल विभाजन की दशा में लागू न होना-
;3. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का दल विभाजन की दशा में लागू न होना-
जहाँ सदन का कोई सदस्य यह दावा करता है कि वह और उसके विधान-दल के कोई अन्य सदस्य ऐसे गुट का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह गठित करते हैं जो उसके मूल राजनीतिक दल के विभाजन के परिणामस्वरुप उत्पन्ना हुआ है और ऐसे समूह में ऐसे विधान-दल के कम से कम एक तिहाई सदस्य हैं
जहाँ सदन का कोई सदस्य यह दावा करता है कि वह और उसके विधान-दल के कोई अन्य सदस्य ऐसे गुट का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह गठित करते हैं जो उसके मूल राजनीतिक दल के विभाजन के परिणामस्वरूप उत्पन्ना हुआ है और ऐसे समूह में ऐसे विधान-दल के कम से कम एक तिहाई सदस्य हैं


वहाँ -
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13:18, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

(अनुच्छेद 102 (2) और अनुच्छेद 191 (2))[1]

दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में उपबंध

1. निर्वचन-

इस अनुसूची में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) 'सदन' से, संसद का कोई सदन या किसी राज्य की, यथास्थिति, विधान सभा या, विधान-मंडल का कोई सदन अभिप्रेत है;

(ख) सदन के किसी ऐसे सदस्य के संबंध में जो, यथास्थिति, पैरा 2 या पैरा 3 या पैरा 4 के उपबंधों के अनुसार किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, 'विधान-दल' से, उस सदन के ऐसे सभी सदस्यों का समूह अभिप्रेत है जो उक्त उपबंधों के अनुसार तत्समय उस राजनीतिक दल के सदस्य हैं;

(ग) सदन के किसी सदस्य के संबंध में, 'मूल राजनीतिक दल' से ऐसा राजनीतिक दल अभिप्रेत है जिसका वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए सदस्य है;

(घ) 'पैरा' से इस अनुसूची का पैरा अभिप्रेत है।

2. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता-

(1) पैरा 3, पैरा 4 और पैरा 5 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सदन का कोई सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, सदन का सदस्य होने के लिए उस दशा में निरर्हित होगा जिसमें[2]-

(क) उसने ऐसे राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है; या

(ख) वह ऐसे राजनीतिक दल द्वारा जिसका वह सदस्य है अथवा उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दिए गए किसी निदेश के विरुद्ध, ऐसे राजनीतिक दल, व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे राजनीतिक दल, व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर माफ नहीं किया है। स्पष्टीकरण- इस उपपैरा के प्रयोजनों के लिए, -

(क) सदन के किसी निर्वाचित सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का, यदि कोई हो, सदस्य है जिसने उसे ऐसे सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में खड़ा किया था;

(ख) सदन के किसी नामनिर्देशित सदस्य के बारे में, -

(1) उस दशा में, जिसमें वह ऐसे सदस्य के रूप में अपने नामनिर्देशन की तारीख को किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का सदस्य है;

(2) किसी अन्य दशा में, यह समझा जाएगा कि वह उस राजनीतिक दल का सदस्य है जिसका, यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के पश्चात्‌ अपना स्थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाप्ति के पूर्व वह, यथास्थिति, सदस्य बनता है या पहली बार बनता है।

(2) सदन का कोई निर्वाचित सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी से भिन्न रूप में सदस्य निर्वाचित हुआ है, सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह ऐसे निर्वाचन के पश्चात्‌ किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाता है।

(3) सदन का कोई नामनिर्देशित सदस्य, सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह, यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के पश्चात्‌ अपना स्थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाप्ति के पश्चात्‌ किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाता है।

(4) इस पैरा के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जो, संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारंभ पर, सदन का सदस्य है (चाहे वह निर्वाचित सदस्य हो या नामनिर्देशित) -

(1) उस दशा में, जिसमें वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले किसी राजनीतिक दल का सदस्य था वहाँ, इस पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी के रूप में ऐसे सदन का सदस्य निर्वाचित हुआ है;

(2) किसी अन्य दशा में, यथास्थिति, इस पैरा के उपपैरा (2) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह सदन का ऐसा निर्वाचित सदस्य है जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी से भिन्न रूप में सदस्य निर्वाचित हुआ है या, इस पैरा के उपपैरा (3) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह सदन का नामनिर्देशित सदस्य है।

3. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का दल विभाजन की दशा में लागू न होना-

जहाँ सदन का कोई सदस्य यह दावा करता है कि वह और उसके विधान-दल के कोई अन्य सदस्य ऐसे गुट का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह गठित करते हैं जो उसके मूल राजनीतिक दल के विभाजन के परिणामस्वरूप उत्पन्ना हुआ है और ऐसे समूह में ऐसे विधान-दल के कम से कम एक तिहाई सदस्य हैं

वहाँ -

(क) वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि-

(1) उसने अपने मूल राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है; या

(2) उसने ऐसे दल द्वारा अथवा उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दिए गए किसी निदेश के विरुद्ध, ऐसे दल, व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, ऐसे सदन में मतदान किया है या वह मतदान करने से विरत रहा है और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे दल, व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर माफ नहीं किया है; और

(ख) ऐसे दल विभाजन के समय से, ऐसे गुट के बारे में यह समझा जाएगा कि वह, पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, ऐसा राजनीतिक दल है जिसका वह सदस्य है और वह इस पैरा के प्रयोजनों के लिए उसका मूल राजनीतिक दल है।

4. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का विलय की दशा में लागू न होना-

(1) सदन का कोई सदस्य पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन निरर्हित नहीं होगा यदि उसके मूल राजनीतिक दल का किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो जाता है और वह यह दावा करता है कि वह और उके मूल राजनीतिक दल के अन्य सदस्य-

(क) यथास्थिति, ऐसे अन्य राजनीतिक दल के या ऐसे विलय से बने नए राजनीतिक दल के सदस्य बन गए हैं; या

(ख) उन्होंने विलय स्वीकार नहीं किया है और एक पृथक्‌ समूह के रुप में कार्य करने का विनिश्चय किया है, और ऐसे विलय के समय से, यथास्थिति, ऐसे अन्य राजनीतिक दल या नए राजनीतिक दल या समूह के बारे में यह समझा जाएगा कि वह, पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, ऐसा राजनीतिक दल है जिसका वह सदस्य है और वह इस उपपैरा के प्रयोजनों के लिए उसका मूल राजनीतिक दल है।

(2) इस पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, सदन के किसी सदस्य के मूल राजनीतिक दल का विलय हुआ तभी समझा जाएगा जब संबंधित विधान-दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य ऐसे विलय के लिए सहमत हो गए हैं।

5. छूट-

इस अनुसूची में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति, जो लोक सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा के उपसभापति अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति अथवा किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुआ है, इस अनुसूची के अधीन निरर्हित नहीं होगा,-

(क) यदि वह, ऐसे पद पर अपने निर्वाचन के कारण ऐसे राजनीतिक दल की जिसका वह ऐसे निर्वाचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ देता है और उसके पश्चात्‌ जब तक वह पद धारण किए रहता है तब तक, उस राजनीतिक दल में पुनः सम्मिलित नहीं होता है या किसी दूसरे राजनीतिक दल का सदस्य नहीं बनता है; या

(ख) यदि वह, ऐसे पद पर अपने निर्वाचन के कारण, ऐसे राजनीतिक दल की जिसका वह ऐसे निर्वाचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता छोड़ देता है और ऐसे पद पर न रह जाने के पश्चात्‌ ऐसे राजनीतिक दल में पुनः सम्मिलित हो जाता है।

6. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रश्नों का विनिश्चय-

(1) यदि यह प्रश्न उठता है कि सदन का कोई सदस्य इस अनुसूची के अधीन निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न, ऐसे सदन के, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष के विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा: परंतु जहाँ यह प्रश्न उठता है कि सदन का सभापति या अध्यक्ष निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं वहाँ वह प्रश्न सदन के ऐसे सदस्य के विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा जिसे वह सदन इस निमित्त निर्वाचित करे और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।

(2) इस अनुसूची के अधीन सदन के किसी सदस्य की निरर्हता के बारे में किसी प्रश्न के संबंध में इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन सभी कार्यवाहियों के बारे में यह समझा जाएगा कि वे, यथास्थिति, अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियां हैं या अनुच्छेद 212 के अर्थ में राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाहियाँ हैं।

7. न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-

इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, किसी न्यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के किसी सदस्य की निरर्हता से संबंधित किसी विषय के बारे में कोई अधिकारिता नहीं होगी।[3]

8. नियम-

(1) इस पैरा के उपपैरा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सदन का सभापति या अध्यक्ष, इस अनुसूची के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगा तथा विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्‌ :-

(क) सदन के विभिन्न सदस्य जिन राजनीतिक दलों के सदस्य हैं, उनके बारे में रजिस्टर या अन्य अभिलेख रखना;

(ख) ऐसा प्रतिवेदन जो सदन के किसी सदस्य के संबंध में विधान-दल का नेता, उस सदस्य की बाबत पैरा 2 के उपपैरा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकृति की माफी के संबंध में देगा, वह समय जिसके भीतर और वह प्राधिकारी जिसको ऐसा प्रतिवेदन दिया जाएगा।

(ग) ऐसे प्रतिवेदन जिन्हें कोई राजनीतिक दल सदन के किसी सदस्य को ऐसे राजनीतिक दल में प्रविष्ट करने के संबंध में देगा और सदन का ऐसा अधिकारी जिसको ऐसे प्रतिवेदन दिए जाएँगे; और

(घ) पैरा 6 के उपपैरा (1) में निर्दिष्ट किसी प्रश्न का विनिश्चय करने की प्रक्रिया जिसके अंतर्गत ऐसी जाँच की प्रक्रिया है, जो ऐसे प्रश्न का विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए की जाए।

(2) सदन के सभापति या अध्यक्ष द्वारा इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन बनाए गए नियम, बनाए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखे जाएँगे। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी।

वे नियम तीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर प्रभावी होंगे जब तक कि उनका सदन द्वारा परिवर्तनों सहित या उनके बिना पहले ही अनुमोदन या अननुमोदन नहीं कर दिया जाता है। यदि वे नियम इस प्रकार अनुमोदित कर दिए जाते हैं तो वे, यथास्थिति, ऐसे रूप में जिसमें वे रखे गए थे या ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होंगे। यदि नियम इस प्रकार अनुमोदित कर दिए जाते हैं तो वे निष्प्रभाव हो जाएँगे।

(3) सदन का सभापति या अध्यक्ष, यथास्थिति, अनुच्छेद 105 या अनुच्छेद 194 के उपबंधों पर और किसी ऐसी अन्य शक्ति पर जो उसे इस संविधान के अधीन प्राप्त है, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यह निदेश दे सकेगा कि इस पैरा के अधीन बनाए गए नियमों के किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किए गए किसी उल्लंघन के बारे में उसी रीति से कार्रवाई की जाए जिस रीति से सदन के विशेषाधिकार के भंग के बारे में की जाती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया।
  2. संविधान (एक्यानवेवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 5 द्वारा "या पैरा 3" लोप किया गया।
  3. पैरा 7 को किहोतो होलोहन बनाम जोचिल्हु और अन्य (1992) 1 एस.सी.सी. 309 में बहुमत की राय के अनुसार अनुच्छेद 368 के खंड (2) के परंतुक के अनुसार अधिसूचना के अभाव में अविधिमान्य घोषित किया गया।

बाहरी कड़ियाँ

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