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==प्रारंभिक जीवन==
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वह तीनों [[गोलमेज सम्मेलन]] के लिए एक प्रतिनिधि थे और [[1934]] से [[1936]] के वर्षों के दौरान 'लीग ऑफ नेशनल' की विधानसभा के प्रतिनिधि थे। वी.टी. कृष्णमाचारी भारतीय संघ में शामिल होने के लिए प्रमुख भारतीय रियासतों के लिए उनके समर्थन में कट्टर थे। [[जयपुर]] के एक प्रतिनिधि के रूप में कृष्णामचारी [[28 अप्रैल]], [[1948]] को [[संविधान सभा]] में शामिल हो गए। [[भारत]] में विभाजन के फैसले के बाद [[जुलाई]], [[19 47]] में, संविधान सभा ने अपनी उपाधियां संशोधित कीं, जिसमें दो उपराष्ट्रपति थे और एक सुझाव था कि उनमें से एक रियासतों से हो सकता है। जब [[16 जुलाई]] को विधानसभा ने इन उपराष्ट्रपतियों का चुनाव किया तो वहां केवल दो नामांकन हुए, इसलिए वी.टी. कृष्णमाचारी (जयपुर) का चयन डॉ. हरेंद्र कुमार मुखर्जी ([[पश्चिम बंगाल]]) के साथ किया गया।
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==सम्मान==
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#सन [[1933]] में वी.टी. कृष्णमाचारी को नाइट बैचलर बनाया गया।
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==संबंधित लेख==
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वी.टी. कृष्णमाचारी
वी.टी. कृष्णमाचारी
वी.टी. कृष्णमाचारी
पूरा नाम वांगल थिरुवेंकटाचारी कृष्णमाचारी
जन्म 8 फ़रवरी, 1881
मृत्यु 14 फ़रवरी, 1964
मृत्यु स्थान मद्रास
अभिभावक पिता- वांगल थिरुवेनकट्टाचारी
पति/पत्नी रामलमल
संतान तीन पुत्र, दो पुत्रियाँ
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अन्य जानकारी 1913 से 1919 तक वी.टी. कृष्णमाचारी मद्रास बोर्ड के अतिरिक्त सचिव और 1919 से 1922 तक विजयनगरम एस्टेट के ट्रस्टी थे। इसके बाद वे 1927 में बड़ौदा के दीवान नियुक्त हुए।

वांगल थिरुवेंकटाचारी कृष्णमाचारी (अंग्रेज़ी: V. T. Krishnamachari, जन्म- 8 फ़रवरी, 1881; मृत्यु- 14 फ़रवरी, 1964, मद्रास) भारतीय सिविल सेवक और प्रशासक थे। उन्होंने सन 1927 से 1944 तक बड़ौदा के दीवान और तत्कालीन जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री के पद पर 1946 से 1949 तक कार्य किया। वे 1961 से 1964 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

प्रारंभिक जीवन

वी.टी. कृष्णमाचारी का जन्म 8 फ़रवरी, 1881 को तत्कालीन करूर ज़िले में वांगल गांव में हुआ था। वह एक अमीर और शक्तिशाली व्यक्ति वांगल थिरुवेनकट्टाचारी (1837-1934) के चौथे और सबसे छोटे पुत्र थे। वी.टी. कृष्णमाचारी की प्रारंभिक शिक्षा वांगल में हुई और प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास और मद्रास लॉ कॉलेज से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा पूरी होने पर कृष्णाचारी ने भारतीय सिविल सेवा के लिए योग्यता प्राप्त की। कृष्णाचारी जी ने रामलमल से 26 अप्रैल, 1895 को विवाह किया। इस दंपति के तीन बेटे और दो बेटियां थीं।

कार्यक्षेत्र

सन 1913 से 1919 तक वी.टी. कृष्णमाचारी मद्रास बोर्ड के अतिरिक्त सचिव और 1919 से 1922 तक विजयनगरम एस्टेट के ट्रस्टी थे। इसके बाद वे 1927 में बड़ौदा के दीवान नियुक्त हुए। उन्होंने 1927 से 1944 तक इस पद पर सेवा की। कृष्णमाचारी बड़ौदा राज्य के लम्बी अवधि तक दीवान रहे। दीवान के रूप में सेवा करते समय उन्होंने 1941 से 1944 तक भारतीय मंत्रियों की समिति में भी कार्य किया। रियासत में एक विशाल ग्रामीण पुनर्निर्माण कार्यक्रम की शुरुआत भी उन्होंनी की थी। वी.टी. कृष्णमाचारी ने 1946 से 1949 तक जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने भारतीय वित्त जांच समिति में 1948 से 1949 तक और 1949 में भारतीय वित्तीय आयोग में कार्य किया।

वह तीनों गोलमेज सम्मेलन के लिए एक प्रतिनिधि थे और 1934 से 1936 के वर्षों के दौरान 'लीग ऑफ नेशनल' की विधानसभा के प्रतिनिधि थे। वी.टी. कृष्णमाचारी भारतीय संघ में शामिल होने के लिए प्रमुख भारतीय रियासतों के लिए उनके समर्थन में कट्टर थे। जयपुर के एक प्रतिनिधि के रूप में कृष्णामचारी 28 अप्रैल, 1948 को संविधान सभा में शामिल हो गए। भारत में विभाजन के फैसले के बाद जुलाई, 1947 में, संविधान सभा ने अपनी उपाधियां संशोधित कीं, जिसमें दो उपराष्ट्रपति थे और एक सुझाव था कि उनमें से एक रियासतों से हो सकता है। जब 16 जुलाई को विधानसभा ने इन उपराष्ट्रपतियों का चुनाव किया तो वहां केवल दो नामांकन हुए, इसलिए वी.टी. कृष्णमाचारी (जयपुर) का चयन डॉ. हरेंद्र कुमार मुखर्जी (पश्चिम बंगाल) के साथ किया गया।

सम्मान

  1. सन 1933 में वी.टी. कृष्णमाचारी को नाइट बैचलर बनाया गया।
  2. सन 1926 में उन्हें भारतीय साम्राज्य (सीआईई) के कमान के रूप में नियुक्त किया गया।
  3. सन 1936 में वी.टी. कृष्णमाचारी को 'नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द इंडियन एम्पायर' के रूप में नियुक्त किया गया था। सन 1946 में उन्हें इसके अलावा 'नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द स्टार ऑफ़ इंडिया' बनाया गया था।


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