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[[चित्र:Devidhura1.JPG|thumb|250px|देवीधुरा कस्बे का विहंगम दृष्य]]
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[[उत्तराखण्ड]] जनपद [[चम्पावत]] के [[टनकपुर]] उप संभाग के पर्वतीय अंचल में स्थित यह स्थल [[चम्पावत]] [[हल्द्वानी]] मोटर मार्ग पर चम्पावत से लगभग 60 किमी की दूरी पर समुद्र सतह से लगभग 6500 फिट कीउंचाई पर स्थित है।  
'''देवीधुरा''' [[उत्तराखण्ड]] में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष [[रक्षाबंधन]] के अवसर पर श्रावणी [[पूर्णिमा]] को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है। इस मेले को देवीधुरा मेला कहते हैं। इसकी ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं।
==मेला कब==
==मेला कब और कहाँ==
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[[चित्र:Devidhura2.JPG|thumb|left|250px|माँ बाराही की गुफ़ा का उत्तरी प्रवेश मार्ग ]]
[[श्रावण]] मास की [[पूर्णिमा]] को हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पौराणिक धार्मिक एवं एतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है।  
[[श्रावण]] मास की [[पूर्णिमा]] को हज़ारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पौराणिक धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे [[भारत]] प्रसिद्ध है। श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश में एक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर, युद्ध के [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं। यह स्थान है [[उत्तराखण्ड]] राज्य का सिद्धपीठ माँ वाराही का देवीधुरा स्थल।  
श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश में ऐक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं। यह स्थान है उत्राखण्ड राज्य का सिद्धपीठ माँ वाराही का देवीधुरा स्थल।   
 
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उत्राखण्ड राज्य में प्रवेश करने के लिये तराई श्रेत्र में स्थित अनेक प्रवेश द्धारों मे से एक टनकपुर से आगे बढने के साथ ही जहाँ आपको ठेठ पर्वतीय संस्कृति के दर्शन मिलने लगते हैं वहीं प्राकृतिक दृष्यों की मनमोहनी छटा भी देखने को मिलती है । टनकपुर से प्रसिद्ध सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ जाने के लिये राष्ट्रीय मार्ग एन एच 09 पर लगभग अस्सी किलोमीटर दूर स्थित है कस्बा लोहाघाट । लोहाघाट से साठ किलोमीटर दूर स्थित है शक्तिपीठ माँ वाराही का मंदिर जिसे देवीधुरा के नाम से जाना जाता हैं।  
उत्तराखण्ड राज्य में प्रवेश करने के लिये तराई क्षेत्र में स्थित अनेक प्रवेश द्धारों मे से एक [[टनकपुर]] से आगे बढने के साथ ही जहाँ आपको ठेठ पर्वतीय संस्कृति के दर्शन मिलने लगते हैं, वहीं प्राकृतिक दृश्यों की मनमोहनी छटा भी देखने को मिलती है। टनकपुर से प्रसिद्ध सीमान्त जनपद [[पिथौरागढ़]] जाने के लिये राष्ट्रीय मार्ग एन. एच. 09 पर लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है क़स्बा [[लोहाघाट]]। लोहाघाट से साठ किलोमीटर दूर स्थित है शक्तिपीठ माँ वाराही का मंदिर जिसे देवीधुरा के नाम से जाना जाता हैं। समुद्रतल से लगभग 1850 मीटर (लगभग पाँच हजार फीट) की उँचाई पर स्थित है।<ref name="NT"> {{cite web |url=http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/aashokshuklaa/entry/%E0%A4%B8-%E0%A4%A6-%E0%A4%A7%E0%A4%AA-%E0%A4%A0-%E0%A4%AE-%E0%A4%B5-%E0%A4%B0-%E0%A4%B9-%E0%A4%AE-%E0%A4%B0%E0%A4%95-%E0%A4%B7-%E0%A4%AC-%E0%A4%A7%E0%A4%A8-%E0%A4%95-%E0%A4%A6-%E0%A4%A8 |title=सिद्धपीठ माँ वाराही में रक्षाबंधन का दिन.. |accessmonthday=25 सितम्बर |accessyear=2012 |last=शुक्ला |first=अशोक कुमार |authorlink= |format=|publisher=नवभारत टाइम्स |language=हिन्दी }}</ref>
इस मार्ग से यात्रा आरंभ करना बड़ा सुखद लगता है बडा दुरूह लते जाने के मार्ग में इस जनपद मुख्यालय से लगभग अस्सी किलोमीटर दूर एक स्थान है देवीधुरा । समुद्रतल से लगभग अट्ठारह सौ पचास मीटर (लगभग पाँच हजार फिट) की उँचाई पर स्थित है ।
 
==इतिहास==
==इतिहास==
पौराणिक धार्मिक एवं एतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है। यह शक्ति पीठ है तथा इसे भगवान विष्णु के दशमअवतारों में तीसरे अवतार बाराह के लिये जाना जाता है।
[[चित्र:Devidhura4.JPG|thumb|250px|मंदिर परिसर में रखीं बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) में बचाव के उपयोग में लायी जाने वाली ढालें]]  
[[चित्र:Devidhura3.JPG|thumb|250px|गुफा में प्रवेश का दक्षिणी मार्ग]]
ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के पूर्व सम्पूर्ण [[पृथ्वी]] जलमग्न थी तब प्रजापति ने [[वाराह अवतार|वाराह]] बनकर उसका [[दाँत|दाँतो]] से उद्धार किया उस स्थिति में अब दृष्यमान भूमाता दंताग्र भाग में समाविष्ट अंगुष्ट प्रादेश मात्र परिमित थी। ‘‘ओ पृथ्वी! तुम क्यों छिप रही हो?’’ ऐसा कहकर इसके पतिरूप मही वाराह ने उसे जल मे मघ्य से अपने दन्ताग्र भाग में उपर उठा लिया। यही सृष्टि माँ वाराही हैं। देवीधुरा में सिद्धपीठ माँ वाराही के मंदिर परिसर के आस पास भी पर्यटकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अन्य स्थलों में खोलीगाँड, दुर्वाचौड, गुफ़ा के अंदर बाराही शक्ति पीठ का दर्शन, परिसर में ही स्थित संस्कृत महाविद्यालय परिसर, शंखचक्र घंटाधर गुफ़ा, भीमशिला और गवौरी प्रवेश द्वार आदि प्रमुख हैं।
ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के पूर्व सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न थी तब प्रजापति ने बाराह बनकर उसका दाँतो से उद्धार किया उस स्थिति में अब दृष्यमान भूमाता दंताग्र भाग में समाविष्ट अंगुष्ट प्रादेश मात्र परिमित थी । ‘‘ओ पृथ्वी! तुम क्यों छिप रही हो?’’ ऐसा कहकर इसके पतिरूप मही बाराह ने उसे जल मे मघ्य से अपने दन्ताग्र भाग में उपर उठा लिया । यही सृष्टि माँ बाराही हैं।
==बग्वाल==
[[चित्र:Devidhura4.JPG|thumb|left|250px|मंदिर परिसर में रखीं बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) में बचाव के उपयोग में लायी जाने वाली ढालें ]]
{{Main|बग्वाल}}
प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ बाराही धाम में श्रावणी पूणिमा (रक्षाबंधन के दिन) को यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।


देवीधुरा में सिद्धपीठ माँ वाराही के मंदिर परिसर के आस पास भी पर्यटकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्य स्थलों में खोलीगाँड, दुर्वाचौड, गुफा के अंदर बाराही शक्ति पीठ का दर्शन, परिसर में ही स्थित संस्कृत महाविद्यालय परिसर, शंखचक्र घंटाधर गुफा, भीमशिला और गवौरी प्रवेश द्वार आदि प्रमुख हैं।
==विशेषता ==
[[चित्र:Devidhura5.JPG|thumb|250px|बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) का स्थल ]]
इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल [[कुमाऊँ]] की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाड़े तक यहाँ मेला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात् 'बग्वाल का दिवस' होता है। धार्मिक आस्था के साथ ही इस स्थल से लगभग 300 कि.मी. लम्बी हिम श्रंखलाओं के भव्य दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
==[[बग्वाल]]==
प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ बाराही धाम में श्रावणी पूणिमा (रक्षाबंधन के दिन) केा यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरो को अस्त्र के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।
[[चित्र:Devidhura6.JPG|thumb|left|250px|बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) का स्थल]]
इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाँऊ की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाडे तक यहाँ मेंला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात बग्वाल का दिवस होता है।
[[चित्र:Devidhura7.JPG|thumb|250px| भीम शिला ]]
बढती व्यवसायिकता ने कुमाँऊ की संस्कृति की इस प्रमुख परंपरा ने अपनी चपेट में ले लिया है जिसका जीता जागता उदाहरण मुख्य बग्वाल स्थल (पत्थर मार युद्ध स्थल ) के ठीक बीचों बीच लगा एक होर्डिग है जिसे लगाया तो गया है, देवीधुरा मेले में आने वाले दर्शनार्थियों के स्वागत पट के रूप मे परन्तु इस होर्डिग पर प्रायोजकों के विज्ञापन के साथ यह स्वागत संदेश छोटे छोटे शब्दों में ठीक उसी तरह लिखा हुआ प्रतीत होता है जैसा सिगरेट की डिब्बियों पर लिखा हुआ चेतावनी संदेश।


स्थानीय लोगों ने बताया कि पत्थर मार युद्ध के दौरान स्वागत संदेश जगह जगह से फट गया है परन्तु आश्चर्य यह देखकर होता है कि बग्वाल का एक भी पत्थर इस स्वागतपट में अंकित प्रायोजक के विज्ञापन वाले भाग को क्षतिग्रस्त नहीं कर सका है।
==चित्र वीथिका==
== विशेषता ==
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इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाँऊ की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाडे तक यहाँ मेंला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात बग्वाल का दिवस होता है।
चित्र:Devidhura5.JPG|[[बग्वाल]] (पत्थर मार युद्ध) का स्थल
धार्मिक आस्था के साथ ही इस स्थल से लगभग 300 किमी लम्बी हिम श्रंखलाओं के भव्य दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
चित्र:Devidhura3.JPG|गुफ़ा में प्रवेश का दक्षिणी मार्ग
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चित्र:Devidhura6.JPG|बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) का स्थल
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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07:48, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

देवीधुरा कस्बे का विहंगम दृष्य

देवीधुरा उत्तराखण्ड में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है। इस मेले को देवीधुरा मेला कहते हैं। इसकी ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं।

मेला कब और कहाँ

माँ बाराही की गुफ़ा का उत्तरी प्रवेश मार्ग

श्रावण मास की पूर्णिमा को हज़ारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पौराणिक धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है। श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश में एक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर, युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं। यह स्थान है उत्तराखण्ड राज्य का सिद्धपीठ माँ वाराही का देवीधुरा स्थल।


उत्तराखण्ड राज्य में प्रवेश करने के लिये तराई क्षेत्र में स्थित अनेक प्रवेश द्धारों मे से एक टनकपुर से आगे बढने के साथ ही जहाँ आपको ठेठ पर्वतीय संस्कृति के दर्शन मिलने लगते हैं, वहीं प्राकृतिक दृश्यों की मनमोहनी छटा भी देखने को मिलती है। टनकपुर से प्रसिद्ध सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ जाने के लिये राष्ट्रीय मार्ग एन. एच. 09 पर लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है क़स्बा लोहाघाट। लोहाघाट से साठ किलोमीटर दूर स्थित है शक्तिपीठ माँ वाराही का मंदिर जिसे देवीधुरा के नाम से जाना जाता हैं। समुद्रतल से लगभग 1850 मीटर (लगभग पाँच हजार फीट) की उँचाई पर स्थित है।[1]

इतिहास

मंदिर परिसर में रखीं बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) में बचाव के उपयोग में लायी जाने वाली ढालें

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के पूर्व सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न थी तब प्रजापति ने वाराह बनकर उसका दाँतो से उद्धार किया उस स्थिति में अब दृष्यमान भूमाता दंताग्र भाग में समाविष्ट अंगुष्ट प्रादेश मात्र परिमित थी। ‘‘ओ पृथ्वी! तुम क्यों छिप रही हो?’’ ऐसा कहकर इसके पतिरूप मही वाराह ने उसे जल मे मघ्य से अपने दन्ताग्र भाग में उपर उठा लिया। यही सृष्टि माँ वाराही हैं। देवीधुरा में सिद्धपीठ माँ वाराही के मंदिर परिसर के आस पास भी पर्यटकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अन्य स्थलों में खोलीगाँड, दुर्वाचौड, गुफ़ा के अंदर बाराही शक्ति पीठ का दर्शन, परिसर में ही स्थित संस्कृत महाविद्यालय परिसर, शंखचक्र घंटाधर गुफ़ा, भीमशिला और गवौरी प्रवेश द्वार आदि प्रमुख हैं।

बग्वाल

प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ बाराही धाम में श्रावणी पूणिमा (रक्षाबंधन के दिन) को यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को अस्त्र के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।

विशेषता

इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाऊँ की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाड़े तक यहाँ मेला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात् 'बग्वाल का दिवस' होता है। धार्मिक आस्था के साथ ही इस स्थल से लगभग 300 कि.मी. लम्बी हिम श्रंखलाओं के भव्य दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।

चित्र वीथिका


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शुक्ला, अशोक कुमार। सिद्धपीठ माँ वाराही में रक्षाबंधन का दिन.. (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 25 सितम्बर, 2012।

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