"केसर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(8 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 37 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}<!-- कृपया इस साँचे को हटाएँ नहीं (डिलीट न करें)। इसके नीचे से ही सम्पादन कार्य करें। -->
{{सूचना बक्सा वृक्ष
;परिचय --
|चित्र=Saffron crocus morphology.jpg
*केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) है। अंग्रेज़ी में इसे सैफरन (saffron) नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है।
|जगत=पादप
|संघ=
|वर्ग=
|उप-वर्ग=
|गण=
|उपगण=
|अधिकुल=क्रोकोएडियेइ
|कुल=इरिडेशियेई
|जाति=क्रोकस
|प्रजाति=सी. सैटिवस
|द्विपद नाम=क्रोकस सैटिवस
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''केसर''' का वानस्पतिक नाम '''क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus)''' है। [[अंग्रेज़ी]] में इसे '''सैफरन (saffron)''' नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान [[यूरोप|दक्षिण यूरोप]] है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - [[फ्रांस]], स्पेन, [[भारत]], [[ईरान]], [[इटली]], ग्रीस, [[जर्मनी]], [[जापान]], [[रूस]], आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, [[चीन]], [[पाकिस्तान]] के [[क्वेटा]] एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है।
 
==भारत में केसर==
केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में '''[[जम्मू]] के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर)''' के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, [[लाल रंग]] वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोत्तम मानी गई है। एक समय था जब [[कश्मीर]] का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। [[उत्तर प्रदेश]] के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है।


*केसर की खेती भारत के जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। परंतु कुछ राजनैतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। उत्तर प्रदेश के चौबटिया जिले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है।
[[जम्मू-कश्मीर]] की राजधानी [[श्रीनगर]] से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है। वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं। और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है। इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब 75 हज़ार फूल लगते हैं।


==केसर का पौधा==
*'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।  
*'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।  


*केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है।  
*केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात् नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग [[बैंगनी रंग|बैंगनी]], [[नीला रंग|नीला]] एवं [[सफेद रंग|सफेद]] होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है।  
*इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।  
{| class="bharattable-purple" style="margin:2px; float:right; text-align:center"
इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक, और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है।
|+ '''केसर'''
|-
| [[चित्र:saffron-field.jpg|200px|केसर की खेती]]
|-
| <small>केसर की खेती</small>
|-
| [[चित्र:Saffron plant.jpg|200px|केसर का पौधा]]
|-
| <small>केसर का पौधा</small>
|-
| [[चित्र:saffron flower.jpg|200px|केसर का फूल]]
|-
| <small>केसर का फूल</small>
|-
| [[चित्र:saffron bk.jpg|200px|केसर]]
|-
| <small>केसर</small>
|}
 
*इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।  


*'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है।
*इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक, और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है।


;वैज्ञानिकों के अनुसार --
*'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - '''मागरा, लच्छी, गुच्छी''' आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है।
*'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है।
 
==वैज्ञानिकों के अनुसार==
*'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा [[पीला रंग]] देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। यह घुलनशील होता है, साथ ही अत्यंत पीला भी। प्रमुख वर्णको में '''कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन''' आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है।
*केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है।
*केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है।


;असली केसर की पहचान --
==असली केसर की पहचान==
*असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है। केसर को पानी में भिगोकर कपड़े पर रगडने से यदि पीला केसरिया रंग निकले तो उसे असली केसर समझना चाहिए और यदि पहले लाल रंग निकले व बाद में पीला पड़े तो नकली केसर समझना चाहिए।
*असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है। केसर को पानी में भिगोकर कपड़े पर रगडने से यदि पीला केसरिया रंग निकले तो उसे असली केसर समझना चाहिए और यदि पहले लाल रंग निकले व बाद में पीला पड़े तो नकली केसर समझना चाहिए।


;आयुर्वेद के अनुसार --
==आयुर्वेद के अनुसार==
*चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है।
*केसर का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य व्यंजनों में और देव पूजा आदि में तो केसर का उपयोग होता ही था पर अब पान मसालों और गुटकों में भी इसका उपयोग होने लगा है। केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त होती है। यह कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, मस्तिष्क को बल देने वाली, [[हृदय]] और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे [[दूध]]) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
*चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, आर्तवजनक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली, कामोत्तेजक, त्रिदोष नाशक, आक्षेपहर, वातशूल शामक, दीपक, पाचक, रुचिकर, मासिक धर्म साफ़ लाने वाली, गर्भाशय व योनि संकोचन, त्वचा का रंग उज्ज्वल करने वाली, रक्तशोधक, धातु पौष्टिक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली, कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, वातनाड़ियों के लिए शामक, बल्य, वृष्य, मूत्रल, स्तन (दूध) वर्द्धक, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे दूध) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
*आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।
*आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।
*केसर बुखार की प्रारिम्भक अवस्था, दाने, चेचक, चिकन पोक्स व आन्त्रज्वर को बाहर निकालता है लेकिन दाने निकल आने पर विशेषत: बुखार आदि पित्त के लक्षणों में केसर का उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
[[चित्र:Saffron.jpg|thumb|250px|left|केसर]]
*उदर संबंधित अनेक परेशानियों, जैसे अपच, पेट में दर्द, वायु विकार आदि में केसर उपयोगी है। चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है। महिलाओं में अनियमित मासिक स्राव एवं इस दौरान होने वाले दर्द को ठीक करता है। गर्भाशय की सूजन में लाभकारी है। मानसिक अवसाद एवं उदासीनता में भी महिलाओं को दिया जाता है। यह सभी 'केसर' के घरेलू उपचार एवं उपयोग हैं, लेकिन किसी वैद्य के परामर्श द्वारा इसका विशेष लाभ उठाया जा सकता है। इतने सारे मानवोपयोगी गुणों को संजोए 'केसर' सच में एक अनमोल वनस्पति एवं अद्भुत औषधि है।
*केसर बुखार की प्रारिम्भक अवस्था, दाने, [[चेचक]], चिकन पोक्स व आन्त्रज्वर को बाहर निकालता है लेकिन दाने निकल आने पर विशेषत: बुखार आदि पित्त के लक्षणों में केसर का उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
*इसका उपयोग यूनानी और आयुर्वेदिक दवाईयों में इसका बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। महिलाओं के कष्टार्तव को दूर करने के लिए, 2-2 रत्ती केसर दूध में घोलकर दिन में तीन बार देना गुणकारी होता है।
*केसर की पेसरी गर्भाशय की तकलीफ दूर करने में भी प्रयुक्त की जाती है। ल्यूकोरिया एवं हिस्टीरिया की स्थिति में ग्रहण करने से पीड़ित महिला को फ़ायदा पहुंचता है।
*किसी भी नवजात शिशु के जन्म से पूर्व उसकी माता को अनिवार्य रूप से प्रतिदिन दूध में केसर घोलकर पीने को दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि केसर का दूध पीने से शिशु का रंग गोरा होता है परंतु इसके कई आयुर्वेदिक गुणों की वजह से यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। गर्भवती स्त्री और उसके बच्चे को इन सभी बीमारियों के प्रभाव से बचाने के लिए उन्हें केसर का सेवन कराया जाता है। साथ ही केसर सामान्य महिलाओं के लिए भी बहुपयोगी है। इससे स्त्रियों में होने वाली अनियमित मासिक स्राव एवं इस दौरान होने वाले दर्द में लाभ मिलता है। यदि किसी स्त्री के गर्भाशय की सूजन है तो उसके लिए केसर का सेवन फ़ायदेमंद रहता है।
*पुरुषों में वीर्य शक्ति बढ़ाने हेतु [[शहद]], [[बादाम]] और केसर लेने से फ़ायदा होता है।
*उदर संबंधित अनेक परेशानियों, जैसे अपच, पेट में दर्द, वायु विकार आदि में केसर उपयोगी है।  
*चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है।  
*त्वचा रोग होने पर खरोंच और जख्मों पर केसर लगाने से जख्म जल्दी भरते हैं।
*चन्दन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से, सिर, [[नेत्र]] और मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति और ऊर्जा मिलती है, [[नाक]] से [[रक्त]] गिरना बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है।
*अगर सर्दी लग गई हो तो रात्रि में एक गिलास दूध में एक चुटकी केसर और एक चम्मच शहद डालकर यदि मरीज़ को पिलाया जाये तो उसे अच्छी नींद आती है।
*केसर बच्चों के शीत रोगों की रामबाण औषधि है। बच्चों को सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर केसर की एक पँखुड़ी पानी में घोंटकर इसका लेप छाती पीठ और गले पर करने से आराम होता है।
*शिशु को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पँखुड़ी 2-4 बूँद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ।
*बाल्यकाल में शिशुओं को अगर सर्दी जकड़ ले और नाक बंद हो जाये तो माँ के दूध में केसर मिलाकर उसके माथे और नाक पर मला जाये तो सर्दी का प्रकोप कम होता है और उसे आराम मिलता है।
*माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें।
*गंजे लोगों के लिये तो यह संजीवनी बूटी की तरह कारगर है। जिनके बाल बीच से उड़ जाते हैं, उन्हें थोड़ी सी मुलहठी को दूध में पीस लेना चाहिए। तत्पश्चात् उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।
*रूसी की समस्या हो या फिर बाल झाड़ रहे हों, ऐसी स्थिति में भी उपरोक्त फार्मूला अपनाना चाहिए।
*यह सभी 'केसर' के घरेलू उपचार एवं उपयोग हैं, लेकिन किसी वैद्य के परामर्श द्वारा इसका विशेष लाभ उठाया जा सकता है। इतने सारे मानवोपयोगी गुणों को संजोए 'केसर' सच में एक अनमोल वनस्पति एवं अद्भुत औषधि है।
*'''सावधानी''' चूंकि यह उष्णतावर्धक है, अत: कम से कम सेवन करना चाहिये। गर्भवती महिलाएं अधिक मात्रा में केसर का सेवन न करे, अन्यथा गर्भपात हो जाने की आशंका रहती है।
;विभिन्न भाषाओं में केसर के नाम
{| class="bharattable-purple" border="1"
|-
! भाषा
! नाम
|-
|[[हिन्दी]]
|केशर, केसर
|-
|[[अंग्रेज़ी]]
| सैफ्राम
|-
|[[संस्कृत]]
|कुंकुभ, घुसृण, रक्त काश्मीर
|-
|[[मराठी]]
|केशर
|-
|[[गुजराती भाषा|गुजराती]]
| केशर
|-
|[[बंगाली भाषा|बंगाली]]
|कुकम
|-
|तैलगी
|कुकुम पुवु
|-
|[[फारसी भाषा|फारसी]]
| करकीमास
|-
|[[अरबी भाषा|अरबी]]
|जाफरान
|-
|लैटिन
|क्रोकस सेटाइवस
|}


 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
==संबंधित लेख==
{{औषधीय पौधे}}
[[Category:वनस्पति]][[Category:वनस्पति_कोश]][[Category:औषधि]][[Category:औषधीय_पौधे]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

07:50, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

केसर
जगत पादप
अधिकुल क्रोकोएडियेइ
कुल इरिडेशियेई
जाति क्रोकस
प्रजाति सी. सैटिवस
द्विपद नाम क्रोकस सैटिवस

केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) है। अंग्रेज़ी में इसे सैफरन (saffron) नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है।

भारत में केसर

केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोत्तम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। उत्तर प्रदेश के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है।

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है। वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं। और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है। इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब 75 हज़ार फूल लगते हैं।

केसर का पौधा

  • 'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।
  • केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात् नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है।
केसर
केसर की खेती
केसर की खेती
केसर का पौधा
केसर का पौधा
केसर का फूल
केसर का फूल
केसर
केसर
  • इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।
  • इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक, और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है।
  • 'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार

  • 'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। यह घुलनशील होता है, साथ ही अत्यंत पीला भी। प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है।
  • केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है।

असली केसर की पहचान

  • असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है। केसर को पानी में भिगोकर कपड़े पर रगडने से यदि पीला केसरिया रंग निकले तो उसे असली केसर समझना चाहिए और यदि पहले लाल रंग निकले व बाद में पीला पड़े तो नकली केसर समझना चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार

  • केसर का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य व्यंजनों में और देव पूजा आदि में तो केसर का उपयोग होता ही था पर अब पान मसालों और गुटकों में भी इसका उपयोग होने लगा है। केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त होती है। यह कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे दूध) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
  • चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, आर्तवजनक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली, कामोत्तेजक, त्रिदोष नाशक, आक्षेपहर, वातशूल शामक, दीपक, पाचक, रुचिकर, मासिक धर्म साफ़ लाने वाली, गर्भाशय व योनि संकोचन, त्वचा का रंग उज्ज्वल करने वाली, रक्तशोधक, धातु पौष्टिक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली, कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, वातनाड़ियों के लिए शामक, बल्य, वृष्य, मूत्रल, स्तन (दूध) वर्द्धक, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे दूध) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
  • आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।
केसर
  • केसर बुखार की प्रारिम्भक अवस्था, दाने, चेचक, चिकन पोक्स व आन्त्रज्वर को बाहर निकालता है लेकिन दाने निकल आने पर विशेषत: बुखार आदि पित्त के लक्षणों में केसर का उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
  • इसका उपयोग यूनानी और आयुर्वेदिक दवाईयों में इसका बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। महिलाओं के कष्टार्तव को दूर करने के लिए, 2-2 रत्ती केसर दूध में घोलकर दिन में तीन बार देना गुणकारी होता है।
  • केसर की पेसरी गर्भाशय की तकलीफ दूर करने में भी प्रयुक्त की जाती है। ल्यूकोरिया एवं हिस्टीरिया की स्थिति में ग्रहण करने से पीड़ित महिला को फ़ायदा पहुंचता है।
  • किसी भी नवजात शिशु के जन्म से पूर्व उसकी माता को अनिवार्य रूप से प्रतिदिन दूध में केसर घोलकर पीने को दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि केसर का दूध पीने से शिशु का रंग गोरा होता है परंतु इसके कई आयुर्वेदिक गुणों की वजह से यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। गर्भवती स्त्री और उसके बच्चे को इन सभी बीमारियों के प्रभाव से बचाने के लिए उन्हें केसर का सेवन कराया जाता है। साथ ही केसर सामान्य महिलाओं के लिए भी बहुपयोगी है। इससे स्त्रियों में होने वाली अनियमित मासिक स्राव एवं इस दौरान होने वाले दर्द में लाभ मिलता है। यदि किसी स्त्री के गर्भाशय की सूजन है तो उसके लिए केसर का सेवन फ़ायदेमंद रहता है।
  • पुरुषों में वीर्य शक्ति बढ़ाने हेतु शहद, बादाम और केसर लेने से फ़ायदा होता है।
  • उदर संबंधित अनेक परेशानियों, जैसे अपच, पेट में दर्द, वायु विकार आदि में केसर उपयोगी है।
  • चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है।
  • त्वचा रोग होने पर खरोंच और जख्मों पर केसर लगाने से जख्म जल्दी भरते हैं।
  • चन्दन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से, सिर, नेत्र और मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति और ऊर्जा मिलती है, नाक से रक्त गिरना बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है।
  • अगर सर्दी लग गई हो तो रात्रि में एक गिलास दूध में एक चुटकी केसर और एक चम्मच शहद डालकर यदि मरीज़ को पिलाया जाये तो उसे अच्छी नींद आती है।
  • केसर बच्चों के शीत रोगों की रामबाण औषधि है। बच्चों को सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर केसर की एक पँखुड़ी पानी में घोंटकर इसका लेप छाती पीठ और गले पर करने से आराम होता है।
  • शिशु को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पँखुड़ी 2-4 बूँद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ।
  • बाल्यकाल में शिशुओं को अगर सर्दी जकड़ ले और नाक बंद हो जाये तो माँ के दूध में केसर मिलाकर उसके माथे और नाक पर मला जाये तो सर्दी का प्रकोप कम होता है और उसे आराम मिलता है।
  • माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें।
  • गंजे लोगों के लिये तो यह संजीवनी बूटी की तरह कारगर है। जिनके बाल बीच से उड़ जाते हैं, उन्हें थोड़ी सी मुलहठी को दूध में पीस लेना चाहिए। तत्पश्चात् उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।
  • रूसी की समस्या हो या फिर बाल झाड़ रहे हों, ऐसी स्थिति में भी उपरोक्त फार्मूला अपनाना चाहिए।
  • यह सभी 'केसर' के घरेलू उपचार एवं उपयोग हैं, लेकिन किसी वैद्य के परामर्श द्वारा इसका विशेष लाभ उठाया जा सकता है। इतने सारे मानवोपयोगी गुणों को संजोए 'केसर' सच में एक अनमोल वनस्पति एवं अद्भुत औषधि है।
  • सावधानी चूंकि यह उष्णतावर्धक है, अत: कम से कम सेवन करना चाहिये। गर्भवती महिलाएं अधिक मात्रा में केसर का सेवन न करे, अन्यथा गर्भपात हो जाने की आशंका रहती है।
विभिन्न भाषाओं में केसर के नाम
भाषा नाम
हिन्दी केशर, केसर
अंग्रेज़ी सैफ्राम
संस्कृत कुंकुभ, घुसृण, रक्त काश्मीर
मराठी केशर
गुजराती केशर
बंगाली कुकम
तैलगी कुकुम पुवु
फारसी करकीमास
अरबी जाफरान
लैटिन क्रोकस सेटाइवस


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख