"माघ स्नान": अवतरणों में अंतर

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आरम्भिक कालों से ही [[गंगा नदी|गंगा]] या किसी बहते जल में प्रातःकाल [[माघ मास]] में [[स्नान]] करना प्रशंसित रहा है। सर्वोत्तम काल वह है जब [[नक्षत्र]] अब भी दीख पड़ रहे हों, उसके उपरान्त वह काल अच्छा है जब तारे दिखाई पड़ रहे हों किन्तु अभी वास्तव में दिखाई नहीं पड़ा हो, जब सूर्योदय हो जाता है तो वह काल स्नान के लिए अच्छा काल नहीं कहा जाता है। मास के स्नान का आरम्भ [[पौष]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] 11 या पौष [[पूर्णिमा]] (पूर्णिमान्त गणना के अनुसार) से हो जाना चाहिए और व्रत (एक मास का) माघ शुक्ल 12 या पूर्णिमा को समाप्त हो जाना चाहिए; कुछ लोग इसे सौर गणना से संयुज्य कर देते हैं और व्यवस्था देते हैं कि वह स्नान जो माघ में प्रातःकाल उस समय किया जाता है, जबकि [[सूर्य देवता|सूर्य]] [[मकर राशि]] में हो, पापियों को स्वर्गलोक में भेजता है।<ref>वर्षक्रियाकौमुदी (491, पद्मपुराण से उद्धरण)</ref>  
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==पौराणिक संदर्भ==
सभी नर-नारियों के लिए यह व्यवस्थित है; सबसे अत्यन्त पुण्यकारी माघस्नान [[गंगा नदी|गंगा]] एवं [[यमुना नदी|यमुना]] के [[संगम (इलाहाबाद)|संगम]] पर है।<ref>[[पद्म पुराण]] 6, जहाँ अध्याय 219 से 250 तक 2800 श्लोकों में माघस्नान के माहात्म्य का उल्लेख है</ref>
*हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि, वत0 2, 781-794</ref>; वर्षक्रिया कौमुदी<ref>वर्ष क्रियाकौमुदी, 490-491</ref>; राजमार्तण्ड<ref>राजमार्तण्ड, 1398</ref>; निर्णयसिन्धु<ref>निर्णयसिन्धु, 213-216</ref>; स्मृतिकौस्तुभ<ref>स्मृतिकौस्तुभ,  439-441</ref>; पद्म पुराण<ref>पद्मपुराण, 6|237|49-50</ref>, एवं कृत्यतत्व<ref>कृत्यतत्त्व, 455-457</ref> ने दोनों नियमों की विधि का वर्णन किया है।
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*हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि (वत0 2, 781-794)</ref>; वर्षक्रिया कौमुदी<ref>वर्ष क्रियाकौमुदी(490-491)</ref>; राजमार्तण्ड<ref>राजमार्तण्ड (1398)</ref>; निर्णयसिन्धु<ref>निर्णयसिन्धु (213-216)</ref>; स्मृतिकौस्तुभ<ref>स्मृतिकौस्तुभ (439-441)</ref>; पद्म पुराण<ref>पद्मपुराण (6|237|49-50</ref>, एवं कृत्यतत्व<ref>कृत्यतत्त्व (455-457)</ref> ने दोनों नियमों की विधि का वर्णन किया है।
*[[विष्णु धर्मसूत्र]]<ref>विष्णु धर्मसूत्र (90)</ref> के अन्तिम श्लोक में [[माघ]] एवं [[फाल्गुन]] में प्रातःकाल [[स्नान]] की प्रशंसा गायी गयी है।<ref>इंडियन एण्टीक्वेरी (जिल्द 11, पृ0 88, माघ मेला)</ref>
 
यह स्नान पौष मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर माघ की पूर्णिमा तक होता है अर्थात पौष शुक्ल पूर्णिमा माघ स्नान की आरम्भिक तिथि है। पूरा माघ [[प्रयाग]] में कल्पवास करके त्रिवेणी स्नान करने का अंतिम दिन 'माघ पूर्णिमा' ही है। माघ पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। स्नान पर्वों का यह अंतिम प्रतीक है। इस पर्व में [[यज्ञ]]], तप तथा [[दान]] का विशेष महत्त्व है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान [[विष्णु]] का पूजन, पितरों का [[श्राद्ध]] और भिखारियों को दान करने का विशेष फल है। निर्धनों को भोजन, वस्त्र, तिल, कम्बल, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न, पादुका आदि का दान करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने का माहात्म्य व्रत करने से ही होता है। इस दिन [[गंगा नदी|गंगा]] स्नान करने से मनुष्य की भवबाधाएं कट जाती हैं।
   
   
माघ मास में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी आदि के शुद्ध जल से [[स्नान]] करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। पूरे माघ मास भगवान [[मधुसूदन]] की प्रसन्नता के लिए नित्य ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देना अथवा मगद के लड्डू जिसके अंदर स्वर्ण या रजत छिपा दी जाती है, प्रतिदिन स्नान करके ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए। [[मकर संक्राति]] के समान ही तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है। माघ स्नान करने वाले पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं तथा उसे सुख-सौभाग्य, धन-संतान तथा स्वर्गादि उत्तम लोकों में निवास तथा देव विमानों में विहार का अधिकार देते हैं। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को ही कृपा अनुग्रह से प्राप्त होता है। माघ [[स्नान]] का संपूर्ण विधान वैशाख मास के स्नान के समान ही होता है। [[सूर्य देवता|सूर्य]] को अर्ध्य देते समय मन्त्र को बोलना चाहिए-
माघ मास में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी आदि के शुद्ध जल से [[स्नान]] करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। पूरे माघ मास भगवान मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए नित्य ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देना अथवा मगद के लड्डू जिसके अंदर स्वर्ण या रजत छिपा दी जाती है, प्रतिदिन स्नान करके ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए। [[मकर संक्राति]] के समान ही [[तिल]] के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है। माघ स्नान करने वाले पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं तथा उसे सुख-सौभाग्य, धन-संतान तथा स्वर्गादि उत्तम लोकों में निवास तथा देव विमानों में विहार का अधिकार देते हैं। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को ही कृपा अनुग्रह से प्राप्त होता है। माघ [[स्नान]] का संपूर्ण विधान [[वैशाख मास]] के स्नान के समान ही होता है। [[सूर्य देवता|सूर्य]] को अर्ध्य देते समय [[मन्त्र]] को बोलना चाहिए-


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==टीका टिप्पणी==
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.hindi.vrindavantoday.org/2013/01/%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%98-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A1%E0%A5%81%E0%A4%AC/ माघ स्नान से होती है स्वर्ग की प्राप्ति]
*[http://www.hindi.vrindavantoday.org/2013/01/%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%98-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A1%E0%A5%81%E0%A4%AC/ यमुना में माघ स्नान की डुबकी लगाएंगे श्रद्धालु]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
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05:20, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

माघ स्नान
माघ स्नान का एक दृश्य
माघ स्नान का एक दृश्य
अनुयायी हिंदू धर्म
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक
धार्मिक मान्यता नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित अन्य जीवनदायनी नदियों में स्नान करने से मनुष्य को पापों से छुटकारा मिल जाता है और स्वर्गलोकारोहण का मार्ग खुल जाता है।
प्रसिद्धि इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए।
अन्य जानकारी इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन, पितरों का श्राद्ध और भिखारियों को दान करने का विशेष फल है।

हिंदू धर्म शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक माघ मास में पवित्र नदी नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित अन्य जीवनदायनी नदियों में स्नान करने से मनुष्य को पापों से छुटकारा मिल जाता है और स्वर्गलोकारोहण का मार्ग खुल जाता है। आरम्भिक कालों से ही गंगा या किसी बहते जल में प्रातःकाल माघ मास में स्नान करना प्रशंसित रहा है। सर्वोत्तम काल वह है जब नक्षत्र अब भी दीख पड़ रहे हों, उसके उपरान्त वह काल अच्छा है जब तारे दिखाई पड़ रहे हों किन्तु अभी वास्तव में दिखाई नहीं पड़ा हो, जब सूर्योदय हो जाता है तो वह काल स्नान के लिए अच्छा काल नहीं कहा जाता है। मास के स्नान का आरम्भ पौष शुक्ल 11 या पौष पूर्णिमा (पूर्णिमान्त गणना के अनुसार) से हो जाना चाहिए और व्रत (एक मास का) माघ शुक्ल 12 या पूर्णिमा को समाप्त हो जाना चाहिए; कुछ लोग इसे सौर गणना से संयुज्य कर देते हैं और व्यवस्था देते हैं कि वह स्नान जो माघ में प्रातःकाल उस समय किया जाता है, जबकि सूर्य मकर राशि में हो, पापियों को स्वर्गलोक में भेजता है।[1]

पौराणिक संदर्भ

सभी नर-नारियों के लिए यह व्यवस्थित है; सबसे अत्यन्त पुण्यकारी माघस्नान गंगा एवं यमुना के संगम पर है।[2]

यह स्नान पौष मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर माघ की पूर्णिमा तक होता है अर्थात पौष शुक्ल पूर्णिमा माघ स्नान की आरम्भिक तिथि है। पूरा माघ प्रयाग में कल्पवास करके त्रिवेणी स्नान करने का अंतिम दिन 'माघ पूर्णिमा' ही है। माघ पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। स्नान पर्वों का यह अंतिम प्रतीक है। इस पर्व में यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन, पितरों का श्राद्ध और भिखारियों को दान करने का विशेष फल है। निर्धनों को भोजन, वस्त्र, तिल, कम्बल, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न, पादुका आदि का दान करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने का माहात्म्य व्रत करने से ही होता है। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य की भवबाधाएं कट जाती हैं।

माघ मास में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी आदि के शुद्ध जल से स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। पूरे माघ मास भगवान मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए नित्य ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देना अथवा मगद के लड्डू जिसके अंदर स्वर्ण या रजत छिपा दी जाती है, प्रतिदिन स्नान करके ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्राति के समान ही तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है। माघ स्नान करने वाले पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं तथा उसे सुख-सौभाग्य, धन-संतान तथा स्वर्गादि उत्तम लोकों में निवास तथा देव विमानों में विहार का अधिकार देते हैं। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को ही कृपा अनुग्रह से प्राप्त होता है। माघ स्नान का संपूर्ण विधान वैशाख मास के स्नान के समान ही होता है। सूर्य को अर्ध्य देते समय मन्त्र को बोलना चाहिए-

'ज्योति धाम सविता प्रबल, तुमरे तेज़ प्रताप।
छार-छार है जल बहै, जनम-जनम गम पाप॥'

टीका टिप्पणी

  1. वर्षक्रियाकौमुदी, 491, पद्मपुराण से उद्धरण
  2. पद्म पुराण 6, जहाँ अध्याय 219 से 250 तक 2800 श्लोकों में माघस्नान के माहात्म्य का उल्लेख है
  3. हेमाद्रि, वत0 2, 781-794
  4. वर्ष क्रियाकौमुदी, 490-491
  5. राजमार्तण्ड, 1398
  6. निर्णयसिन्धु, 213-216
  7. स्मृतिकौस्तुभ, 439-441
  8. पद्मपुराण, 6|237|49-50
  9. कृत्यतत्त्व, 455-457
  10. विष्णु धर्मसूत्र, 90
  11. इंडियन एण्टीक्वेरी, जिल्द 11, पृ0 88, माघ मेला

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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