"गांधारी से संवाद (1) -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:कविता" to "Category:कविता Category:हिन्दी कविता Category:पद्य साहित्य Category:काव्य कोश [[Category:साहित्य को�) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
|कवि =[[कुलदीप शर्मा]] | |कवि =[[कुलदीप शर्मा]] | ||
|जन्म= | |जन्म= | ||
|जन्म स्थान=([[ | |जन्म स्थान=([[उना हिमाचल|उना]], [[हिमाचल प्रदेश]]) | ||
|मुख्य रचनाएँ= | |मुख्य रचनाएँ= | ||
|यू-ट्यूब लिंक= | |यू-ट्यूब लिंक= | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
अब जबकि बिल्कुल निहत्थे हो गए हो तुम | अब जबकि बिल्कुल निहत्थे हो गए हो तुम | ||
और शत्रु कर चुका है जयघोष | और शत्रु कर चुका है जयघोष | ||
लड़ना और भी | लड़ना और भी ज़रूरी हो गया है | ||
अब जबकि खण्ड खण्ड गिरी पड़ी है अस्मिता | अब जबकि खण्ड खण्ड गिरी पड़ी है अस्मिता | ||
और सारा युद्ध क्षेत्र | और सारा युद्ध क्षेत्र | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
जहां से लड़ा जा सके | जहां से लड़ा जा सके | ||
अपने पक्ष में | अपने पक्ष में | ||
लड़ना और भी | लड़ना और भी ज़रूरी हो गया है | ||
अब जबकि लगता है | अब जबकि लगता है | ||
कि लड़ाई का नहीं है कोई अर्थ | कि लड़ाई का नहीं है कोई अर्थ | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 57: | ||
इसलिए लड़ो कि | इसलिए लड़ो कि | ||
इस हहराते अंधकार को | इस हहराते अंधकार को | ||
झिलमिल उजाले में बदलने के लिए | |||
ज़रूरी है लड़ना | ज़रूरी है लड़ना | ||
बेशक बदल दिए है उन्होंने | |||
रातों रात युद्ध के सारे नियम | रातों रात युद्ध के सारे नियम | ||
अपने पक्ष में कर लिए हैं सारे शस्त्र | अपने पक्ष में कर लिए हैं सारे शस्त्र | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 66: | ||
जीती जा सकती है लड़ाई | जीती जा सकती है लड़ाई | ||
तुम सच मानो | तुम सच मानो | ||
कि लड़ना और भी | कि लड़ना और भी ज़रूरी हो गया है | ||
और यह भी कि | और यह भी कि | ||
हर लड़ाई जीत के लिए नहीं लड़ी जाती | हर लड़ाई जीत के लिए नहीं लड़ी जाती |
10:49, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||
|
|