"घोड़ा": अवतरणों में अंतर
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'''घोड़ा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Horse'') मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी न किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी<ref>Equidae</ref> कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, ज़ेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड-खर एवं खच्चर भी हैं। आदिनूतन युग<ref>Eosin period</ref> के ईयोहिप्पस<ref>Eohippus</ref> नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं। | '''घोड़ा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Horse'') मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी न किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी<ref>Equidae</ref> कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, ज़ेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड-खर एवं खच्चर भी हैं। आदिनूतन युग<ref>Eosin period</ref> के ईयोहिप्पस<ref>Eohippus</ref> नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं। | ||
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घोड़े का वैज्ञानिक नाम '''ईक्वस'''<ref>Equus</ref> लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरी छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस<ref>Equus caballus</ref> है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जाते हैं। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापित करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्हीं पालतू घोड़ों के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते हैं। यद्यपि कुछ लोग [[मध्य एशिया]] के [[मंगोलिया|पश्चिमी मंगोलिया]] और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलने वाले ईक्वस प्रज्वेलस्की<ref>Equus przwalski</ref> नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते हैं, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजों में से है। | घोड़े का वैज्ञानिक नाम '''ईक्वस'''<ref>Equus</ref> लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरी छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस<ref>Equus caballus</ref> है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जाते हैं। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापित करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्हीं पालतू घोड़ों के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते हैं। यद्यपि कुछ लोग [[मध्य एशिया]] के [[मंगोलिया|पश्चिमी मंगोलिया]] और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलने वाले ईक्वस प्रज्वेलस्की<ref>Equus przwalski</ref> नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते हैं, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजों में से है। | ||
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घोड़े को पालतू बनाने का वास्तविक इतिहास अज्ञात है। कुछ लोगों का मत है कि 7,000 [[वर्ष]] पूर्व दक्षिणी [[रूस]] के पास [[आर्य|आर्यों]] ने प्रथम बार घोड़े को पाला। बहुत से विज्ञानवेत्ताओं और लेखकों ने इसके [[आर्य]] इतिहास को बिल्कुल गुप्त रखा और इसके पालतू होने का स्थान दक्षिणी पूर्वी एशिया में कहा, परंतु वास्तविकता यह है कि अनंत काल पूर्व हमारे आर्य पूर्वजों ने ही घोड़े को पालतू बनाया, जो फिर [[एशिया]] से [[यूरोप]], [[मिस्र]] और शनै: शनै: [[अमरीका]] आदि देशों में फैला। संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक '''शालिहोत्र''' है, जिसे [[शालिहोत्र|शालिहोत्र ऋषि]] ने [[महाभारत|महाभारत काल]] से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि 'शालिहोत्र' द्वारा अश्व-चिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण [[प्राचीन भारत]] में '''पशुचिकित्सा विज्ञान'''<ref>Veterinary Science</ref> को 'शालिहोत्र शास्त्र' नाम दिया गया। महाभारत युद्ध के समय [[नल|राजा नल]] और [[पांडव|पांडवों]] में [[नकुल]] अश्व विद्या के प्रकांड पंडित थे और उन्होंने भी शालिहोत्र शास्त्र पर पुस्तकें लिखी थीं। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्व चिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। [[भारत]] में अनिश्चित काल से देशी अश्व चिकित्सक को 'शालिहोत्री' कहा जाता है। | घोड़े को पालतू बनाने का वास्तविक इतिहास अज्ञात है। कुछ लोगों का मत है कि 7,000 [[वर्ष]] पूर्व दक्षिणी [[रूस]] के पास [[आर्य|आर्यों]] ने प्रथम बार घोड़े को पाला। बहुत से विज्ञानवेत्ताओं और लेखकों ने इसके [[आर्य]] इतिहास को बिल्कुल गुप्त रखा और इसके पालतू होने का स्थान दक्षिणी पूर्वी एशिया में कहा, परंतु वास्तविकता यह है कि अनंत काल पूर्व हमारे आर्य पूर्वजों ने ही घोड़े को पालतू बनाया, जो फिर [[एशिया]] से [[यूरोप]], [[मिस्र]] और शनै: शनै: [[अमरीका]] आदि देशों में फैला। संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक '''शालिहोत्र''' है, जिसे [[शालिहोत्र|शालिहोत्र ऋषि]] ने [[महाभारत|महाभारत काल]] से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि 'शालिहोत्र' द्वारा अश्व-चिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण [[प्राचीन भारत]] में '''पशुचिकित्सा विज्ञान'''<ref>Veterinary Science</ref> को 'शालिहोत्र शास्त्र' नाम दिया गया। महाभारत युद्ध के समय [[नल|राजा नल]] और [[पांडव|पांडवों]] में [[नकुल]] अश्व विद्या के प्रकांड पंडित थे और उन्होंने भी शालिहोत्र शास्त्र पर पुस्तकें लिखी थीं। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्व चिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। [[भारत]] में अनिश्चित काल से देशी अश्व चिकित्सक को 'शालिहोत्री' कहा जाता है। | ||
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08:20, 12 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
घोड़ा
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जगत | जीव-जंतु |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | मेमेलिया (Mammalia) |
गण | अर्टिओडाक्टायला (Artiodactyla) |
कुल | ईक्यूडी (Equidae) |
जाति | ईक्वस (Equus) |
प्रजाति | ई. फेरस (E. ferus) |
द्विपद नाम | ईक्वस फेरस (Equus ferus) |
विशेष | विवाहोत्सव और धार्मिक जलूसों में सजे-धजे घोड़ों को देखकर उत्साह का संचार हो जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जयंती, महाराणा प्रताप जयंती और रामनवमी के शुभ अवसर पर सुसज्जित अश्व भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं। |
अन्य जानकारी | हाथी और ऊँट की भांति घोड़ा भी उपयोगी पशु है। संस्कृत में इसे 'अश्व' और अंग्रेज़ी में 'हॉर्स' (Horse) कहा जाता है। घोड़ा मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी न किसी रूप में सेवा की है। |
घोड़ा (अंग्रेज़ी: Horse) मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी न किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी[1] कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, ज़ेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड-खर एवं खच्चर भी हैं। आदिनूतन युग[2] के ईयोहिप्पस[3] नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं।
परिचय
घोड़े का वैज्ञानिक नाम ईक्वस[4] लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरी छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस[5] है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जाते हैं। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापित करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्हीं पालतू घोड़ों के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते हैं। यद्यपि कुछ लोग मध्य एशिया के पश्चिमी मंगोलिया और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलने वाले ईक्वस प्रज्वेलस्की[6] नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते हैं, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजों में से है।
इतिहास
घोड़े को पालतू बनाने का वास्तविक इतिहास अज्ञात है। कुछ लोगों का मत है कि 7,000 वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने प्रथम बार घोड़े को पाला। बहुत से विज्ञानवेत्ताओं और लेखकों ने इसके आर्य इतिहास को बिल्कुल गुप्त रखा और इसके पालतू होने का स्थान दक्षिणी पूर्वी एशिया में कहा, परंतु वास्तविकता यह है कि अनंत काल पूर्व हमारे आर्य पूर्वजों ने ही घोड़े को पालतू बनाया, जो फिर एशिया से यूरोप, मिस्र और शनै: शनै: अमरीका आदि देशों में फैला। संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्र है, जिसे शालिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि 'शालिहोत्र' द्वारा अश्व-चिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान[7] को 'शालिहोत्र शास्त्र' नाम दिया गया। महाभारत युद्ध के समय राजा नल और पांडवों में नकुल अश्व विद्या के प्रकांड पंडित थे और उन्होंने भी शालिहोत्र शास्त्र पर पुस्तकें लिखी थीं। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्व चिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्व चिकित्सक को 'शालिहोत्री' कहा जाता है।
शारीरिक विशेषताएँ
10,00,000 वर्ष पूर्व से अब तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि के अनुसार घोड़े को पालतू बनाया और अन्यान्य अच्छी अच्छी नस्लों को पैदा किया। बोझा खींचने, घुड़दौड़ में दौड़ाने, सवारी करने और रथ आदि में चलने वाले अलग अलग प्रकार के घोड़ों की उत्पत्ति हुई है। विदेशों में घोड़ों के नाम उनके जीवनक्रम के अनुसार दिए गए हैं। भारत में घोड़ों को उनके रंग तथा वंश के अनुसार मुश्की, अरबी आदि नाम दिए जाते हैं।
नस्ल
भारत राजा-महाराजाओं का देश रहा है। आज भी देश के कई हिस्सों में राज घराने मौजूद हैं। इन राजा-महाराजाओं के जमाने में आम आदमी के लिए सवारी की बड़ी समस्या थी, उस समय राजघराने ही घोड़ों से चलते थे। जैसे-जैसे ट्रेंड बदला वैसे ही आदतें और तौर तरीके भी बदलते चले गए। जब देश में गाड़ियों का प्रचलन बढ़ा तो सवारी की समस्या भी कम होती चली गयी। जो राजघराने घोड़ों का इस्तेमाल करते थे वो भी अब गाड़ियों से चलने लगे थे। लेकिन घोड़ों के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। बेहतर नस्ल वाले घोड़ों को फौज में इस्तेमाल किया जाने लगा। जो लोग घोड़ा पालन करते हैं, वह अच्छी कमाई करते हैं। घोड़ा पालन करने वाले लोग इनका वाणिज्यिक इस्तेमाल करने लगे। यानी बेहतरीन नस्ल वाले घोड़ों को पालकर उनको घुडसवारी के शौक़ीन, खेल में इस्तेमाल करने के लिए बेचते हैं।[8]
महत्त्वपूर्ण तथ्य
घोड़े से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं[9]-
- घोड़ों की लगभग 300 से ज्यादा नस्लें हैं। अरबी नस्ल को घोड़ों की सबसे पुरानी जीवित नस्ल माना जाता है, लगभग 4500 साल पुरानी। दूसरे घोड़ों की बजाय अरबी घोड़ों की पसली में एक हड्डी कम होती है।
- घोड़ों पर लिखी हुई पहली पुस्तक ‘शालिहोत्रसंहिता‘ है। ये पुस्तक शालिहोत्र ऋषि के द्वारा महाभारत काल से भी पहले लिखी गई थी।
- घोड़े खड़े-खड़े सो सकते हैं, क्योंकि उनके अगले और पिछले पैर की बनावट इस तरह होती है कि वह आराम करते हुए भी नहीं गिरेंगे। सोते तो ये लेट कर भी हैं, लेकिन लेट कर सोने से उनके पेट के अंगों पर दबाव पड़ता है जो उनके लिए हानिकारक है।
- घोड़े के दाँत बहुत बड़े होते हैं। दाँत उसके दिमाग के मुकाबले ज्यादा जगह घेरते हैं। घोड़े की उम्र और उसके कंकाल की पहचान (घोड़ा है या घोड़ी) उसके दाँतों को गिनकर ही पता लगती
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