"सोलह सिंगी धार -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर
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<poem> | <poem> | ||
आज बरसों | आज बरसों बाद देखा तुम्हें | ||
तो नज़र आई तुम्हारे चेहरे पर | तो नज़र आई तुम्हारे चेहरे पर | ||
चिन्ता की इतनी गहरी लकीरें | चिन्ता की इतनी गहरी लकीरें | ||
कि | कि माँ याद आई बहुत | ||
आज बरसों बाद | आज बरसों बाद | ||
सुनाई दी तुम्हारी कराह | सुनाई दी तुम्हारी कराह | ||
पहली बार | पहली बार | ||
दिखी तुम | दिखी तुम | ||
माँ सी असहाय किन्तु संघर्षरत | |||
जाने कब रूठ कर चले गए | जाने कब रूठ कर चले गए | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 49: | ||
दु:खों का टिड्डीदल | दु:खों का टिड्डीदल | ||
मैंने सुना था तुम्हें गाते माँ के संग | |||
तीज-त्यौहारो ब्याह-शादियों पर | तीज-त्यौहारो ब्याह-शादियों पर | ||
गूगा की बाट गाते समय | गूगा की बाट गाते समय | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
इतनी बेचैन नहीं थी तुम | इतनी बेचैन नहीं थी तुम | ||
सदियों तक | सदियों तक बर्दाश्त किये तुमने | ||
मौसमों और राजा कुटलैहड़िया के आखेट | मौसमों और राजा कुटलैहड़िया के आखेट | ||
अपनी सर्पीली पगडंडियों से | अपनी सर्पीली पगडंडियों से | ||
पंक्ति 110: | पंक्ति 110: | ||
कूड़ा ढोता चरणू | कूड़ा ढोता चरणू | ||
लकड़ी पाटता होपू | लकड़ी पाटता होपू | ||
मवेशी चराता कालू | |||
ढाबे मे बर्तन मांजता मुंडु | ढाबे मे बर्तन मांजता मुंडु | ||
यहां तक कि बड़े दप्तर में | यहां तक कि बड़े दप्तर में | ||
पंक्ति 129: | पंक्ति 129: | ||
जगराते में भी रहते हैं | जगराते में भी रहते हैं | ||
सबसे पिछली पांत में | सबसे पिछली पांत में | ||
जूतों की रखवाली में लगा दिये जाते हैं | |||
सेवा के नाम पर | सेवा के नाम पर | ||
पंक्ति 135: | पंक्ति 135: | ||
एक ही शक्ल के लोग | एक ही शक्ल के लोग | ||
एकाएक घुस आए हैं मेरी कविता में | एकाएक घुस आए हैं मेरी कविता में | ||
और | और ख़ाली स्थान देख | ||
ठस्के से अग्रिम पांत में बैठ गए हैं | ठस्के से अग्रिम पांत में बैठ गए हैं | ||
अब कौन रहेगा | अब कौन रहेगा निशाने पर | ||
कविता या ये सब? | कविता या ये सब? | ||
पंक्ति 164: | पंक्ति 164: | ||
वे सब जो शहरी विकास प्राधिकरण से | वे सब जो शहरी विकास प्राधिकरण से | ||
लौटे हैं | लौटे हैं | ||
ऊँचे तेवरों और | ऊँचे तेवरों और प्रश्नवाचक मुद्राओं के साथ | ||
डन सबको किसान दिखा रहा है | डन सबको किसान दिखा रहा है | ||
एक उगता हुआ बिरवा | एक उगता हुआ बिरवा | ||
पंक्ति 174: | पंक्ति 174: | ||
गोबर से लीपा गया गया अपना घर | गोबर से लीपा गया गया अपना घर | ||
जिनके ज़हन में आकार ले रही हैं | जिनके ज़हन में आकार ले रही हैं | ||
अटृलिकाओं की आगामी पीढ़ियां | |||
शहर की सीमा पर किसान | शहर की सीमा पर किसान | ||
पंक्ति 189: | पंक्ति 189: | ||
और उससे भी पार | और उससे भी पार | ||
जहां पालतू पशु | जहां पालतू पशु | ||
और | और ग़रीब बच्चे खेलते हैं साथ साथ | ||
शहर की सीमा पर किसान | शहर की सीमा पर किसान |
09:19, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
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