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'''अणकिटणकी''' [[महाराष्ट्र]] के वला ताल्लुका में एक प्राचीन स्थान है। अणकिटणकी में [[जैन धर्म]] से संबद्ध सात गुफ़ाएं है जो यहां एक पहाड़ी के भीतर कटी हुई हैं जिनमें अनेक मूर्तियां बनी हैं। | '''अणकिटणकी''' [[महाराष्ट्र]] के वला ताल्लुका में एक प्राचीन स्थान है। अणकिटणकी में [[जैन धर्म]] से संबद्ध सात गुफ़ाएं है जो यहां एक पहाड़ी के भीतर कटी हुई हैं जिनमें अनेक मूर्तियां बनी हैं। | ||
* | * गुफ़ाओं का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है किंतु फिर भी अनेक मूर्तियां शिल्प की दृष्टि से प्रशंसनीय हैं। | ||
* | * गुफ़ाओं की अवशिष्ट भित्तियां सर्वत्र मूर्तिकारी से पूर्ण हैं। यह स्थान जो अब '''अंकाईतकाई''' नाम से प्रसिद्ध है, मध्यकालीन जैन-संस्कृति का एक केन्द्र था। | ||
* जैनकवि मेघविजय ने अपने एक विज्ञप्ति-पत्र में इस स्थान का वर्णन इस प्रकार किया- | * जैनकवि मेघविजय ने अपने एक विज्ञप्ति-पत्र में इस स्थान का वर्णन इस प्रकार किया- | ||
<blockquote>'गत्यौत्सुक्येऽप्यणकिटणकी दुर्गयोस्थेयमेवपार्श्व: स्वामी स इह विहृत: पूर्वमुर्वाशसेव्य: जाग्रद्रु ये विपदिशरणं स्वर्गलोकेऽभिवन्द्यम्। अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धितेज:।' | <blockquote>'गत्यौत्सुक्येऽप्यणकिटणकी दुर्गयोस्थेयमेवपार्श्व: स्वामी स इह विहृत: पूर्वमुर्वाशसेव्य: जाग्रद्रु ये विपदिशरणं स्वर्गलोकेऽभिवन्द्यम्। अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धितेज:।'<ref>विज्ञप्ति-लेखसंग्रह, पृ0 101</ref></blockquote> | ||
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*ऐतिहासिक स्थानावली | * ऐतिहासिक स्थानावली| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ संख्या - 17 | ||
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10:22, 3 मई 2018 के समय का अवतरण
अणकिटणकी महाराष्ट्र के वला ताल्लुका में एक प्राचीन स्थान है। अणकिटणकी में जैन धर्म से संबद्ध सात गुफ़ाएं है जो यहां एक पहाड़ी के भीतर कटी हुई हैं जिनमें अनेक मूर्तियां बनी हैं।
- गुफ़ाओं का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है किंतु फिर भी अनेक मूर्तियां शिल्प की दृष्टि से प्रशंसनीय हैं।
- गुफ़ाओं की अवशिष्ट भित्तियां सर्वत्र मूर्तिकारी से पूर्ण हैं। यह स्थान जो अब अंकाईतकाई नाम से प्रसिद्ध है, मध्यकालीन जैन-संस्कृति का एक केन्द्र था।
- जैनकवि मेघविजय ने अपने एक विज्ञप्ति-पत्र में इस स्थान का वर्णन इस प्रकार किया-
'गत्यौत्सुक्येऽप्यणकिटणकी दुर्गयोस्थेयमेवपार्श्व: स्वामी स इह विहृत: पूर्वमुर्वाशसेव्य: जाग्रद्रु ये विपदिशरणं स्वर्गलोकेऽभिवन्द्यम्। अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धितेज:।'[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ संख्या - 17
- ↑ विज्ञप्ति-लेखसंग्रह, पृ0 101
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