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'''अलसी''' या 'तीसी' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Flax'') समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, [[रंग]], साबुन, रोगन, पेन्ट आदि तैयार करने में किया जाता है।
'''अलसी''' या 'तीसी' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Flax'') समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, [[रंग]], साबुन, रोगन, पेन्ट आदि तैयार करने में किया जाता है। अलसी के तेल में यह गुण होता है कि [[वायु]] के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह [[ठोस]] अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।  


*तीसी [[भारत|भारतवर्ष]] में भी पैदा होती है। [[लाल रंग|लाल]], [[सफ़ेद रंग|श्वेत]] तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं। इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल [[रंग]], वार्निश और छापने की स्याही बनाने के काम आता है।
*तीसी [[भारत|भारतवर्ष]] में भी पैदा होती है। [[लाल रंग|लाल]], [[सफ़ेद रंग|श्वेत]] तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं। इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल [[रंग]], वार्निश और छापने की स्याही बनाने के काम आता है।
*इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है, जिसको निरंगकर लिनेन<ref>एक प्रकार का कपड़ा</ref> बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं, जो [[गाय]] तथा [[भैंस]] को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है।
*इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है, जिसको निरंगकर लिनेन<ref>एक प्रकार का कपड़ा</ref> बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं, जो [[गाय]] तथा [[भैंस]] को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है।
*[[चीन]] सन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रेशे के लिए सन को उपजाने वाले देशों में [[रूस]], पोलैण्ड, नीदरलैण्ड, [[फ़्राँस]], चीन तथा बेल्जियम प्रमुख हैं और बीज निकालने वाले देशों में [[भारत]], [[संयुक्त राज्य अमरीका]] तथा अर्जेण्टाइना के नाम उल्लेखनीय हैं। सन के प्रमुख निर्यातक रूस, बेल्जियम तथा अर्जेण्टाइना हैं।
*[[चीन]] सन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रेशे के लिए सन को उपजाने वाले देशों में [[रूस]], पोलैण्ड, नीदरलैण्ड, [[फ़्राँस]], चीन तथा बेल्जियम प्रमुख हैं और बीज निकालने वाले देशों में [[भारत]], [[संयुक्त राज्य अमरीका]] तथा अर्जेण्टाइना के नाम उल्लेखनीय हैं। सन के प्रमुख निर्यातक रूस, बेल्जियम तथा अर्जेण्टाइना हैं।
 
*आयुर्वेद में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है।
*गरम [[पानी]] में डालकर अलसी के केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर, क्वाथ (काढ़ा) बनाया जाता है, जो रक्तातिसार और मूत्र संबंधी में उपयोगी कहा गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=255 |url=}}</ref>


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05:37, 3 जून 2018 के समय का अवतरण

अलसी या 'तीसी' (अंग्रेज़ी: Flax) समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, रंग, साबुन, रोगन, पेन्ट आदि तैयार करने में किया जाता है। अलसी के तेल में यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।

  • तीसी भारतवर्ष में भी पैदा होती है। लाल, श्वेत तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं। इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल रंग, वार्निश और छापने की स्याही बनाने के काम आता है।
  • इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है, जिसको निरंगकर लिनेन[1] बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं, जो गाय तथा भैंस को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है।
  • चीन सन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रेशे के लिए सन को उपजाने वाले देशों में रूस, पोलैण्ड, नीदरलैण्ड, फ़्राँस, चीन तथा बेल्जियम प्रमुख हैं और बीज निकालने वाले देशों में भारत, संयुक्त राज्य अमरीका तथा अर्जेण्टाइना के नाम उल्लेखनीय हैं। सन के प्रमुख निर्यातक रूस, बेल्जियम तथा अर्जेण्टाइना हैं।
  • आयुर्वेद में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है।
  • गरम पानी में डालकर अलसी के केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर, क्वाथ (काढ़ा) बनाया जाता है, जो रक्तातिसार और मूत्र संबंधी में उपयोगी कहा गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक प्रकार का कपड़ा
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 255 |

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