"महाभियोग": अवतरणों में अंतर
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==प्रक्रिया== | ==प्रक्रिया== | ||
महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है, जब [[संविधान]] का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो | महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है, जब [[संविधान]] का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गयी हो। नियमों के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव [[संसद]] के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। किंतु- | ||
#[[लोकसभा]] में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के | #[[लोकसभा]] में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। | ||
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इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें | इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें, वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं; तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है। उस समिति में एक [[उच्चतम न्यायालय]] के न्यायाधीश, एक [[उच्च न्यायालय]] के मुख्य न्यायाधीश और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है, जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें। | ||
==महाभियोग | ==महाभियोग सदन में== | ||
यदि यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं। दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है। जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है, जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं। यदि जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है। यदि दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए [[राष्ट्रपति]] | यदि यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं। दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है। जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है, जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं। यदि जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है। यदि दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए [[राष्ट्रपति]] के पास भेजा जाता है। किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है।<ref>{{cite web |url=https://www.bbc.com/hindi/india-43585864|title= क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव?|accessmonthday=21 अप्रॅल|accessyear= 2018|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com|language=हिंदी }}</ref> | ||
== | ==संविधान में महाभियोग== | ||
*संविधान की धारा 124 (4) कहती है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया [[संसद]] से ही संभव है। संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ये प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।<ref>{{cite web |url=https://hindi.news18.com/news/nation/what-is-the-process-of-impeachment-motion-against-chief-justice-of-india-1350131.html|title= कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग?|accessmonthday=21 अप्रॅल|accessyear= 2018|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=news18.com|language=हिंदी }}</ref> | *संविधान की धारा 124 (4) कहती है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया [[संसद]] से ही संभव है। संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ये प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।<ref>{{cite web |url=https://hindi.news18.com/news/nation/what-is-the-process-of-impeachment-motion-against-chief-justice-of-india-1350131.html|title= कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग?|accessmonthday=21 अप्रॅल|accessyear= 2018|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=news18.com|language=हिंदी }}</ref> | ||
*महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास किया जाना चाहिए। | *महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास किया जाना चाहिए। | ||
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*इसके बाद राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से इस बारे में आदेश जारी करते हैं। | *इसके बाद राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से इस बारे में आदेश जारी करते हैं। | ||
*अन्यथा मुख्य न्यायाधीश 65 साल की उम्र तक अपने पद पर बने रहेंगे। | *अन्यथा मुख्य न्यायाधीश 65 [[साल]] की उम्र तक अपने पद पर बने रहेंगे। | ||
*जज | *जज इन्क्वॉयरी एक्ट, 1968 कहता है कि मुख्य न्यायाधीश या अन्य किसी जज को सिर्फ दुराचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है, लेकिन दुराचार और अक्षमता की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। हालांकि इसमें आपराधिक गतिविधि या अन्य न्यायिक अनैतिकता शामिल है। | ||
== | ==असफल महाभियोग== | ||
[[भारत]] में आज तक किसी न्यायाधीश को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया, क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में | [[भारत]] में आज तक किसी न्यायाधीश को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया, क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्रवाई कभी पूरी ही नहीं हो सकी। या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया। हालांकि इस पर विवाद है। | ||
[[कोलकाता उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे न्यायाधीश थे, जिन्हें [[2011]] में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला था, जो राज्यसभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा; हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया। | *सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला '''पहला न्यायाधीश''' माना जाता है। उनके ख़िलाफ़ [[मई]] [[1993]] में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। यह प्रस्ताव [[लोकसभा]] में गिर गया, क्योंकि उस वक़्त सत्ता में मौजूद [[कांग्रेस]] ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला। | ||
== | *[[कोलकाता उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे न्यायाधीश थे, जिन्हें [[2011]] में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला था, जो [[राज्यसभा]] में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा; हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया। | ||
==इतिहास में महाभियोग== | |||
*वर्ष [[2011]] में ही सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। | *वर्ष [[2011]] में ही सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। | ||
*[[2015]] में गुजरात उच्च न्यायालय के जस्टिस जे.बी. पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली। | *[[2015]] में गुजरात उच्च न्यायालय के जस्टिस जे.बी. पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली। | ||
*2015 में ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस एस.के. गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके। | *2015 में ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस एस.के. गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके। | ||
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09:02, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
महाभियोग
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विवरण | महाभियोग राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की एक प्रक्रिया है। |
उल्लेख | संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में महाभियोग का उल्लेख मिलता है। |
प्रक्रिया | महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में पेश करने हेतु कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर तथा राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। |
विशेष | किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है। |
संबंधित लेख | उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत का संविधान, राष्ट्रपति के विधायी अधिकार |
अन्य जानकारी | संविधान की धारा 124 (4) में उल्लेख है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया संसद से ही संभव है। संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ये प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। |
महाभियोग (अंग्रेज़ी: Impeachment) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की एक प्रक्रिया है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज पर कदाचार, अक्षमता और भ्रष्टाचार को लेकर संसद के किसी सदन में न्यायाधीश के खिलाफ़ महाभियोग लाया जा सकता है।
प्रक्रिया
महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है, जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गयी हो। नियमों के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। किंतु-
- लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
- राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर ज़रूरी होते हैं।
इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें, वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं; तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है। उस समिति में एक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है, जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें।
महाभियोग सदन में
यदि यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं। दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है। जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है, जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं। यदि जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है। यदि दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है।[1]
संविधान में महाभियोग
- संविधान की धारा 124 (4) कहती है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया संसद से ही संभव है। संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ये प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।[2]
- महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास किया जाना चाहिए।
- साथ ही राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिलनी चाहिए।
- महाभियोग के लिए पुख्ता आधार भी होना चाहिए।
- इसके बाद राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से इस बारे में आदेश जारी करते हैं।
- अन्यथा मुख्य न्यायाधीश 65 साल की उम्र तक अपने पद पर बने रहेंगे।
- जज इन्क्वॉयरी एक्ट, 1968 कहता है कि मुख्य न्यायाधीश या अन्य किसी जज को सिर्फ दुराचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है, लेकिन दुराचार और अक्षमता की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। हालांकि इसमें आपराधिक गतिविधि या अन्य न्यायिक अनैतिकता शामिल है।
असफल महाभियोग
भारत में आज तक किसी न्यायाधीश को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया, क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्रवाई कभी पूरी ही नहीं हो सकी। या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया। हालांकि इस पर विवाद है।
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला न्यायाधीश माना जाता है। उनके ख़िलाफ़ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया, क्योंकि उस वक़्त सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला।
- कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे न्यायाधीश थे, जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला था, जो राज्यसभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा; हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया।
इतिहास में महाभियोग
- वर्ष 2011 में ही सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
- 2015 में गुजरात उच्च न्यायालय के जस्टिस जे.बी. पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली।
- 2015 में ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस एस.के. गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके।
- आंध्र प्रदेश/तेलंगाना उच्च न्यायालय के जस्टिस सी.वी. नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 2017 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव? (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 21 अप्रॅल, 2018।
- ↑ कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग? (हिंदी) news18.com। अभिगमन तिथि: 21 अप्रॅल, 2018।
बाहरी कड़ियाँ
- क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव, अब तक कभी पूरा नहीं हुआ
- महाभियोग एवं उसके अनुपालन की प्रक्रिया
- जानिए क्या होता है महाभियोग
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