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'''जलविमान ( | '''जलविमान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hydroplane'') एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित [[जल]] का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है, पर जलविमान में ऐसा नहीं होता। | ||
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जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र [[चाल]] से चलते हैं। इससे जल के संसर्ग वाला तल कम हो जाता है, पर शेष भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं, तब वे द्रवस्थैतिक बल<ref>hydrostatic force</ref> पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं, तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानत: द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभान की चाल इंजन शक्ति से चलने वाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्ति वाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। [[1953]] ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है। | |||
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जलविमान का विचार पहले-पहले ससेक्स के एक अंग्रेज़ पादरी रेवरेंड चार्ल्स मीडं रेमन<ref>Rev. Charles Meade Raman</ref>के मन में [[1870]] ई. में उठा था, पर हल्के इंजन के अभाव में वे उसे व्यावहारिक रूप न दे सके। बाद में जब पेट्रोल इंजन का उपयोग शुरू हुआ तब जलविमान का विचार फिर उठा और [[1906]] ई. में पहला रिकोचेट जलविमान <ref>Ricochet hydroplane</ref> बना। इस जलविमान का पेंदा | जलविमान का विचार पहले-पहले ससेक्स के एक [[अंग्रेज़]] पादरी रेवरेंड चार्ल्स मीडं रेमन<ref>Rev. Charles Meade Raman</ref> के मन में [[1870]] ई. में उठा था, पर हल्के इंजन के अभाव में वे उसे व्यावहारिक रूप न दे सके। बाद में जब पेट्रोल इंजन का उपयोग शुरू हुआ, तब जलविमान का विचार फिर उठा और [[1906]] ई. में पहला रिकोचेट जलविमान<ref>Ricochet hydroplane</ref> बना। इस जलविमान का पेंदा चपटा था और नति के उपयुक्त कोण से इसका उतराना संभव हो सका। अन्य प्रकार के जलविमानों के पेंदे अनुप्रस्थ काट<ref>cross section</ref> में चपटे थे, पर उनका आकार आरे के सदृश लंबा था और उनमें अनेक नत समतल थे। | ||
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10:03, 14 मार्च 2022 के समय का अवतरण
जलविमान (अंग्रेज़ी: Hydroplane) एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित जल का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है, पर जलविमान में ऐसा नहीं होता।
बनावट
जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र चाल से चलते हैं। इससे जल के संसर्ग वाला तल कम हो जाता है, पर शेष भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं, तब वे द्रवस्थैतिक बल[1] पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं, तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानत: द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभान की चाल इंजन शक्ति से चलने वाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्ति वाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। 1953 ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है।
इतिहास
जलविमान का विचार पहले-पहले ससेक्स के एक अंग्रेज़ पादरी रेवरेंड चार्ल्स मीडं रेमन[2] के मन में 1870 ई. में उठा था, पर हल्के इंजन के अभाव में वे उसे व्यावहारिक रूप न दे सके। बाद में जब पेट्रोल इंजन का उपयोग शुरू हुआ, तब जलविमान का विचार फिर उठा और 1906 ई. में पहला रिकोचेट जलविमान[3] बना। इस जलविमान का पेंदा चपटा था और नति के उपयुक्त कोण से इसका उतराना संभव हो सका। अन्य प्रकार के जलविमानों के पेंदे अनुप्रस्थ काट[4] में चपटे थे, पर उनका आकार आरे के सदृश लंबा था और उनमें अनेक नत समतल थे।
नावों के संबंध में सर जॉन थॉर्निक्रॉफ्ट[5] अनेक प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने जलविमान तैयार करने की संभावनाओं पर विचार किया और अनुकूल प्रतीत होने पर जलविमान तैयार करने की संभावनाओं पर विचार किया और अनूकूल प्रतीत होने पर जलविमान तैयार करने में लग गए। उनका जलविमान एकपदीय नाव थी, जो दो नम समतलों से बनी थी। इन दोनों समतलों पर उसका भार बँटा हुआ था। अमरीका में फैबर[6] और जॉर्ज क्राउच[7] ने ऐसे ही जलविमान बनाए। फिर एकपदीय जलविमान का व्यवहार व्यापक रूप से होने लगा, यद्यपि द्विपाद या बहुपाद किस्म के भी विमान बने। सन 1950 के लगभग ऐसे जलविमान बनें, जिनमें कोई पद नहीं था। ऐसी नावों के पेंदे 'V' आकार के होते थे और पिछला भाग[8] चोड़ा होता जाता था।[9]
1930 ई. के लगभग अमरीका में एक नये प्रकार का जलविमान बना, जिसका विकास ऐडोल्फ आपेल[10] ने किया था। यह तीन संकेतक[11] जलविमान था। यह त्रिभुजाकार तीन समतलों से बना हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक नए प्रकार का जलविमान बना, जिसमें नोदक आरोही[12] लगा हुआ था। इससे जलविमान की चाल और भी अधिक बढ़ गई है।
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