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||[[चित्र:Prithvi-Raj-Chauhan-Statue-Ajmer.jpg|right|100px|पृथ्वीराज चौहान]]'[[पृथ्वीराज चौहान]]' अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह [[चौहान वंश]] का सबसे वीर तथा प्रसिद्ध राजा था। [[पृथ्वीराज चौहान]] [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा [[अनंग पाल]] का दौहित्र (बेटी का बेटा) था। वह अनंग पाल के बाद [[दिल्ली]] का राजा हुआ था। पृथ्वीराज के अधिकार में दिल्ली से लेकर [[अजमेर]] तक का विस्तृत भू-भाग था। राजा बनने के बाद उसने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया। उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने विशाल रूप देकर पूरा किया। [[किंवदंती|किंवदंतियों]] के अनुसार [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें से 17 बार ग़ोरी ने पराजय का स्वाद चखा था। | ||[[चित्र:Prithvi-Raj-Chauhan-Statue-Ajmer.jpg|right|100px|पृथ्वीराज चौहान]]'[[पृथ्वीराज चौहान]]' अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह [[चौहान वंश]] का सबसे वीर तथा प्रसिद्ध राजा था। [[पृथ्वीराज चौहान]] [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा [[अनंग पाल]] का दौहित्र (बेटी का बेटा) था। वह अनंग पाल के बाद [[दिल्ली]] का राजा हुआ था। पृथ्वीराज के अधिकार में दिल्ली से लेकर [[अजमेर]] तक का विस्तृत भू-भाग था। राजा बनने के बाद उसने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया। उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने विशाल रूप देकर पूरा किया। [[किंवदंती|किंवदंतियों]] के अनुसार [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें से 17 बार ग़ोरी ने पराजय का स्वाद चखा था। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पृथ्वीराज चौहान]], [[चौहान वंश]] | ||
{[[चित्तौड़]] के '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' का निर्माण किसने करवाया था? | {[[चित्तौड़]] के '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' का निर्माण किसने करवाया था? | ||
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-[[राणा प्रताप]] | -[[राणा प्रताप]] | ||
-[[राणा उदय सिंह]] | -[[राणा उदय सिंह]] | ||
||[[चित्र:Kirti-Stambh-Chittorgarh-1.jpg|right|80px|कीर्ति स्तम्भ]]'राणा कुम्भा' [[मेवाड़]] के एक महान् योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी [[राणा कुम्भा]] हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी [[मालवा]] के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में [[चित्तौड़]] में एक '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' की स्थापना करवाई। उसने [[कुम्भलगढ़]] के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायी थीं। | ||[[चित्र:Kirti-Stambh-Chittorgarh-1.jpg|right|80px|कीर्ति स्तम्भ]]'राणा कुम्भा' [[मेवाड़]] के एक महान् योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी [[राणा कुम्भा]] हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी [[मालवा]] के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में [[चित्तौड़]] में एक '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' की स्थापना करवाई। उसने [[कुम्भलगढ़]] के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायी थीं। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राणा कुम्भा]], [[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]] | ||
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-[[अकबर]]- [[हल्दीघाटी का युद्ध]] | -[[अकबर]]- [[हल्दीघाटी का युद्ध]] | ||
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||[[चित्र:Jahangir-Khusrau-Parviz.jpg|right|120px|अपने पुत्रों के साथ जहाँगीर]]'नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर' का जन्म [[फ़तेहपुर सीकरी]] में स्थित [[सलीम चिश्ती|शेख़ सलीम चिश्ती]] की कुटिया में [[भारमल|राजा भारमल]] की बेटी 'मरियम ज़मानी' के गर्भ से [[30 अगस्त]], 1569 ई. को हुआ था। अपने आरंभिक जीवन में [[जहाँगीर]] शराबी और आवारा शाहज़ादे के रूप में बदनाम था। उसके [[पिता]] [[अकबर]] ने उसकी बुरी आदतें छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अपने शासनकाल में जहाँगीर ने न्याय व्यवस्था ठीक रखने की ओर विशेष ध्यान दिया। न्यायाधीशों के अतिरिक्त वह स्वयं भी जनता के दु:ख-दर्द को सुनता था। उसके लिए उसने अपने निवास−स्थान से लेकर नदी के किनारे तक एक जंजीर बंधवाई थी। यदि किसी को कुछ फरियाद करनी हो, तो वह उस जंजीर को पकड़ कर खींच सकता था, ताकि उसमें बंधी हुई घंटियों की आवाज़ सुनकर बादशाह उस फरियादी को अपने पास बुला सके। | ||[[चित्र:Jahangir-Khusrau-Parviz.jpg|right|120px|अपने पुत्रों के साथ जहाँगीर]]'नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर' का जन्म [[फ़तेहपुर सीकरी]] में स्थित [[सलीम चिश्ती|शेख़ सलीम चिश्ती]] की कुटिया में [[भारमल|राजा भारमल]] की बेटी 'मरियम ज़मानी' के गर्भ से [[30 अगस्त]], 1569 ई. को हुआ था। अपने आरंभिक जीवन में [[जहाँगीर]] शराबी और आवारा शाहज़ादे के रूप में बदनाम था। उसके [[पिता]] [[अकबर]] ने उसकी बुरी आदतें छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अपने शासनकाल में जहाँगीर ने न्याय व्यवस्था ठीक रखने की ओर विशेष ध्यान दिया। न्यायाधीशों के अतिरिक्त वह स्वयं भी जनता के दु:ख-दर्द को सुनता था। उसके लिए उसने अपने निवास−स्थान से लेकर नदी के किनारे तक एक जंजीर बंधवाई थी। यदि किसी को कुछ फरियाद करनी हो, तो वह उस जंजीर को पकड़ कर खींच सकता था, ताकि उसमें बंधी हुई घंटियों की आवाज़ सुनकर बादशाह उस फरियादी को अपने पास बुला सके। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]], [[मुग़ल वंश]] | ||
{निम्नलिखित संगठनों में से किसने 'शुद्धि आन्दोलन' का समर्थन किया? | {निम्नलिखित संगठनों में से किसने 'शुद्धि आन्दोलन' का समर्थन किया? | ||
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-[[ब्रह्म समाज]] | -[[ब्रह्म समाज]] | ||
-[[प्रार्थना समाज]] | -[[प्रार्थना समाज]] | ||
||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|90px|दयानंद सरस्वती]][[स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने संभवत: [[7 अप्रैल]] या [[10 अप्रैल]] सन [[1875]] ई. को [[बम्बई]] में '[[आर्य समाज]]' की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य [[वैदिक धर्म]] को पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास, [[भारत]] को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न और पाश्यात्य प्रभाव को समाप्त करना आदि था। [[दयानंद सरस्वती]] द्वारा चलाये गये 'शुद्धि आन्दोलन' के अन्तर्गत उन लोगों को पुनः [[हिन्दू धर्म]] में आने का मौका मिला, जिन्होंने किसी कारणवश [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार कर लिया था। [[एनी बेसेंट]] ने कहा था कि- "स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि 'भारत भारतीयों के लिए है'।" | ||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|90px|दयानंद सरस्वती]][[स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने संभवत: [[7 अप्रैल]] या [[10 अप्रैल]] सन [[1875]] ई. को [[बम्बई]] में '[[आर्य समाज]]' की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य [[वैदिक धर्म]] को पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास, [[भारत]] को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न और पाश्यात्य प्रभाव को समाप्त करना आदि था। [[दयानंद सरस्वती]] द्वारा चलाये गये 'शुद्धि आन्दोलन' के अन्तर्गत उन लोगों को पुनः [[हिन्दू धर्म]] में आने का मौका मिला, जिन्होंने किसी कारणवश [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार कर लिया था। [[एनी बेसेंट]] ने कहा था कि- "स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि 'भारत भारतीयों के लिए है'।" - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आर्य समाज]], [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] | ||
{'इण्डिया डिवाइडेड' नाम की पुस्तक के लेखक कौन थे? | {'इण्डिया डिवाइडेड' नाम की पुस्तक के लेखक कौन थे? | ||
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-[[नरेन्द्र देव]] | -[[नरेन्द्र देव]] | ||
-[[अरुणा आसफ़ अली]] | -[[अरुणा आसफ़ अली]] | ||
||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|100px|right|डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]'डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद' [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे। [[बिहार]] प्रान्त के एक छोटे-से गाँव [[जीरादेयू]] में [[3 दिसम्बर]], [[1884]] ई. में [[राजेन्द्र प्रसाद]] का जन्म हुआ था। राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और | ||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|100px|right|डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]'डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद' [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे। [[बिहार]] प्रान्त के एक छोटे-से गाँव [[जीरादेयू]] में [[3 दिसम्बर]], [[1884]] ई. में [[राजेन्द्र प्रसाद]] का जन्म हुआ था। राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और विद्वान् व्यक्तियों में से एक थे। ज्ञान के प्रति लगाव होने के कारण ही राजेन्द्र प्रसाद धनी और दरिद्र दोनों के घरों में प्रकाश लाना चाहते थे। उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की थी, जिनमें 'चम्पारन में सत्याग्रह' ([[1922]] ई.), 'इंडिया डिवाइडेड' ([[1946]] ई.), 'महात्मा गांधी एंड बिहार', 'सम रेमिनिसन्सेज' ([[1949]] ई.) आदि मुख्य थीं। सन [[1962]] में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें '[[भारत रत्न]]' की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया था। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] | ||
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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