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'''बासौड़ा''' या '''बसौड़ा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Basoda'') माता शीतला की पूजा को समर्पित त्योहार है, जो [[होली]] के अठारहवें दिन यानी [[चैत्र|चैत्र माह]] में [[कृष्ण पक्ष]] [[अष्टमी]] को मनाया जाता है। बासौड़ा को 'शीतला अष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है। कुछ स्थानों पर बासौड़ा होली के बाद पहले [[सोमवार]] या [[गुरुवार]] को भी मनाया जाता है। बासौड़ा [[दक्षिण भारत]] की तुलना में [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[उत्तर प्रदेश]] और [[दिल्ली]] जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अधिक लोकप्रिय है।
==नामकरण==
==नामकरण==
इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। सातवें दिन का बना बासी भोजन ही खाया जाता है। चूँकि इस व्रत में प्रसाद के रूप में बासी भोजन ग्रहण किया जाता है, इसलिए इस त्यौहार को बासौड़ा कहा जाता है।
इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। सातवें दिन का बना बासी भोजन ही खाया जाता है। चूँकि इस व्रत में प्रसाद के रूप में बासी भोजन ग्रहण किया जाता है, इसलिए इस त्यौहार को बासौड़ा कहा जाता है।

05:57, 8 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

बासौड़ा
माता शीतला
माता शीतला
विवरण बासौड़ा के दिन माँ शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता।
अन्य आम बसौड़ा, शीतलाष्टमी, शीतला अष्टमी
देश भारत
माह चैत्र
तिथि अष्टमी
वर्ष 2024 2 अप्रॅल
संबंधित लेख शीतला चालीसा, शीतला माता की आरती एवं शीतला मन्दिर गुड़गाँव
अन्य जानकारी बासौड़ा दक्षिण भारत की तुलना में गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अधिक लोकप्रिय है।

बासौड़ा या बसौड़ा (अंग्रेज़ी: Basoda) माता शीतला की पूजा को समर्पित त्योहार है, जो होली के अठारहवें दिन यानी चैत्र माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। बासौड़ा को 'शीतला अष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है। कुछ स्थानों पर बासौड़ा होली के बाद पहले सोमवार या गुरुवार को भी मनाया जाता है। बासौड़ा दक्षिण भारत की तुलना में गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अधिक लोकप्रिय है।

नामकरण

इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। सातवें दिन का बना बासी भोजन ही खाया जाता है। चूँकि इस व्रत में प्रसाद के रूप में बासी भोजन ग्रहण किया जाता है, इसलिए इस त्यौहार को बासौड़ा कहा जाता है।

विधि

शीतला अष्टमी व्रत की तैयारियां एक दिन पहले यानी कृष्ण पक्ष सप्तमी से ही शुरू हो जाती हैं। सप्तमी की रात को रसोई की सफाई करके भोजन तैयार करके ये तैयारियां पूरी की जाती हैं। भोजन में मुख्य रूप से दही, गुड़ और रबड़ी का प्रयोग किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन सुबह व्रत के नियमों का पालन करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद माता शीतला का व्रत, चालीसा, भजन और आरती का क्रम चलता है। इसके बाद सप्तमी की रात को तैयार प्रसाद शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थान पर पूजा करने का विधान है और अंत में अपने घर के बड़ों का आशीर्वाद लें। अंत में उसी प्रसाद को प्रसाद के रूप में स्वयं ग्रहण करते हैं।

स्वास्थ्य संबंधी प्रेरणाएं

  • शीतला अष्टमी के बाद गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है और गर्मियों में बासी खाना खाने से बीमारी होने का खतरा रहता है। इसलिए शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना खाने के बाद आगे से बासी खाना न खाएं।
  • माता शीतला को स्वास्थ्य की देवी माना जाता है। इसलिए मान्यताओं के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा और व्रत करने से चेचक और खसरा जैसी बीमारियां दूर हो जाती हैं और भक्त का शरीर स्वस्थ रहता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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